धूल में मिली दिग्गजों की साख

Webdunia
रविवार, 8 मार्च 2009 (21:55 IST)
वैश्विक कंपनी क्षेत्र का हाल बुरा है। यह संकट किस हद तक पहुँच गया है, इसका अंदाज दुनिया के वित्तीय बाजार की धुरी अमेरिकी वॉल स्ट्रीट के दिग्गजों को देख कर लगाया जा सकता है।

सिटी बैंक, एआईजी, जीएम और फोर्ड जैसी वॉल स्ट्रीट की जिन कंपनियों के नाम दुनियाभर में बड़ी आशा से लिए जाते थे, उनकी साख पर आज बट्टा लगा हुआ है। कभी निवेशकों की आँख के तारे रहे उनके शेयरों का बाजार बैठ चुका है।

दुनिया की सबसे बड़ी बीमा कंपनी रही एआईजी का शेयर लुढ़के-लुढ़कते आधा डॉलर (25-26 रुपए) पर आ गया है। कभी न सोने वाला सिटी ग्रुप एक डॉलर से थोड़ा ऊपर अटका हुआ है।

अपना दिवाला पिटने से बचने के लिए अमेरिकी प्रशासन से मदद की गुहार कर रही जनरल मोटर और फोर्ड जैसी विश्व विख्यात कार कंपनियों के शेयर भी अब एक डॉलर से कुछ ही ऊपर हैं। सिटी का शेयर 2007 के मध्य में 50 डॉलर के आसपास था। एआईजी एक वर्ष पहले 50 डॉलर पर था। फोर्ड और सिटी के शेयर दो वर्ष पहले क्रमशः 10 और 40 डॉलर पर चल रहे थे।

अभी एक वर्ष भी नहीं हुआ है, जबकि निवेशक इन शेयरों के सपने देखा करते थे। अमेरिकी गृह ऋण बाजार में भुगतान के संकट के गहराने से गत वर्ष सितंबर में वहाँ के वित्तीय बाजार में जो तूफान खड़ा हुआ, उसने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला रखा है।

यूरोप, अमेरिका और जापान की अर्थव्यवस्थाएँ सिमट रही हैं। विश्व के केंद्रीय बैंक स्थिति संभालने के लिए ब्याज दरों में कटौती कर रहे हैं। अमेरिका में नीतिगत ब्याज दरें 0 से 0.25 प्रतिशत तक आ गई है। बैंक ऑफ जापान ने दर एक प्रतिशत कर दी है। ब्रिटेन, कनाडा, स्विट्जरलैंड और हांगकांग में ब्याज दरें आधा प्रतिशत पर आ गई हैं। भारत और चीन में ये दरें 3.5 और 5.31 प्रतिशत हैं। मुद्रा स्फीति और राजकोषीय घाटे की चिंता की जगह आर्थिक वृद्धि ने ले ली है।

पूरी दुनिया में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट है। भारत और चीन में यह वृद्धि क्रमशः पाँच प्रतिशत से ऊपर और आठ प्रतिशत रहने की उम्मीद है, पर तमाम विकसित औद्योगिक देशों का जीडीपी घट रहा है।

कई देशों में मुद्रास्फीति की दर भी शून्य की ओर बढ़ रही है। एचडीएफसी बैंक की अर्थशास्त्री ज्योतीन्द्र कौर ने कहा कि भारत में अप्रैल अक्टूबर-09 के दौरान मुद्रा अपस्फीति (सामान्य कीमत स्तर के गिरने) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। क्रिसिल के डीके जोशी की राय में अप्रैल तक मुद्रास्फीति 0 से नीचे जा सकती है। ब्रिटेन भी आने वाले महीनों में ऐसी ही स्थिति की संभावना है।

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