नाममात्र कृषि भूमि की मालकिन हैं महिलाएँ

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भारत समेत विश्व के ज्यादातर हिस्सों में महिलाएँ मालिकाना हक के मामले में पुरुषों से बहुत पीछे हैं। यह कहना है खाद्य एवं कृषि संगठन का। मसलन भारत में जमीन पर मालिकाना हक रखने वाले 1 करोड़ 19 लाख किसानों में मात्र 9. 21 फीसद महिलाएँ हैं। देश में 2008 में खेतिहर मजदूरों में 32 फीसद महिलाएँ थीं।

एफएओ ने महिला पुरुष भेद के आधार पर जमीन के अधिकार के बारे में पेश आँकड़े में कहा कि विश्व के ज्यादातर हिस्सों में महिलाएँ कृषि भूमि के मालिकाना हक और जमीन से आय कमाने के अधिकार के मामलें में पुरुषों से पीछे हैं हालाँकि अनाज उत्पादन में महिलाएँ की प्रमुख भूमिका हैं।

एफएओ ने कहा पारंपरिक मानदंड, धार्मिक मान्यता और सामाजिक तौर-तरीकों के कारण जमीन के मालिकाना हक में फर्क आता हैं। जमीन का मालिकाना हक उन्हें नहीं मिलना ग्रामीण विकास और खाद्य सुरक्षा के मामले में बाधा पेश करता है।

एफएओ के नए आँकड़े में 78 देशों में महिलाओं और पुरूषों के जमीन से जुड़े कानूनी अधिकारों में फर्क को पेश किया गया है।

औरतों को अलग-थलग रखाने या पर्दा जैसे सामाजिक, सांस्कृतिक रिवाज और कानूनी अड़चनों के कारण भारत में सिर्फ 12.98 लाख महिलाओं को जमीन का मालिकाना हक है। इंडोनेशिया को छोड़ एशिया के 17 देशों में से ज्यादातर में बहुत कम महिलाओं के पास जमीन का मालिकाना हक है।

इस आँकड़े के मुताबिक जमीन का मालिकाना हक रखने वाले इंडोनेशिया के 20 लाख किसानों में 17 लाख महिलाएँ हैं जबकि बांग्लादेश में 29 लाख जमीन का कानूनी अधिकार रखने वाले किसानों में महिलाओं की तादाद 7.9 लाख है और नेपाल कुल 33 लाख किसानों में से जमीन के कानूनी अधिकार से लैस महिलाओं की तादाद 2. 71 लाख है।

एफएओं की एक अधिकारी जोरैदा गार्सिया ने माना कि कई मामलों में तो राष्ट्रीय संविधान में महिलाओं एवं पुरुषों को बराबरी का अधिकार है लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी बिल्कुल अलग है।

उन्होंने कहा उन अधिकारों का हनन विरोधाभासी कानूनों या लंबी परंपरा और उन संस्थानों के काम.काज के कारण होता है जो जमीन का मालिकाना हक परिवार के पुरुष को प्रदान करते हैं। (भाषा)

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