दबाव में नही लिया फैसला:कुंबले

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नई दिल्ली । भारत के सबसे कामयाब गेंदबाज और टेस्ट कप्तान अनिल कुंबले ने अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट से अपने संन्यास की घोषणा करते हुए आज कहा कि उन्होंने यह फैसला किसी तरह के दबाव में नही ं लिया।

कुंबले ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच फिरोजशाह कोटला मैदान में तीसरे टेस्ट के ड्रॉ होने के बाद खचाखच भरे संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मैंने आलोचनाओं से घबराकर या दबाव में आकर यह फैसला नहीं लिया। मैं पिछले कुछ समय से ऐसा महसूस कर रहा था।

पिछले पाँच-छह मैचों में मेरा प्रदर्शन भी स्तर के अनुरूप नहीं रहा था। अब शरीर भी पूरा साथ नहीं दे रहा था। पिछले मैच में कंधे की चोट के कारण नहीं खेल पाया और इस मैच में हाथ में चोट लग गई।

38 वर्षीय कुंबले ने कहा कि हालाँकि मैं लगातार संघर्ष कर रहा था। सर्जरी हुई, कुछ चोटें आईं और शरीर ने कहा अब थम जाओ। मैंने अन्तत: फैसला कर लिया कि संन्यास लेने का यह सही समय है। भावुक नजर आ रहे कुंबले ने कहा कि मेरे लिए यह फैसला लेना बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं था, क्योंकि अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट में आपको देखना पड़ता है कि आपका शरीर आपका कितना साथ दे रहा है।

कुंबले ने कहा कि वैसे नागपुर में आखिरी टेस्ट में संन्यास लेना चाहता था, लेकिन हाथ की चोट ने मुझे यहीं यह फैसला लेने पर मजबूर कर दिया1 वैसे भी इस समय मैं अपनी सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी नहीं कर पा रहा था। मेरे दिल और दिमाग दोनों ने यही सोचा कि संन्यास लेने का यह सही समय है।

उन्होंने कहा कि मैं अब नागपुर टीम के साथ नहीं जाऊँगा, लेकिन आखिरी टेस्ट के दौरान मैं ड्रेसिंग रूम में मौजूद रहूँगा। में सौरभ गांगुली को उनका आखिरी टेस्ट, वीवीएस लक्ष्मण को उनका 100वाँ टेस्ट और भारत को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ श्रृंखला जीतते हुए देखना चाहता हूँ।

अपने 132 टेस्टों के करियर में 619 विकेट लेने वाले कुंबले ने अपने परिवार, पत्नी और भाई तथा अपने असंख्य प्रशंसकों का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा ‍‍कि अच्छा लग रहा है कि मैं अब घर लौटकर अपने परिवार के साथ कुछ समय बिताऊँगा। कुंबले ने खासतौर पर अपने भाई को शुक्रिया अदा किया, जिन्होंने उन्हें लेग स्पिन डालने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा ‍‍कि वैसे मैं आज भी सीख रहा हूँ कि लेग स्पिन कैसे डाली जाए।

उन्होंने मीडिया का भी उसके समर्थन के लिए शुक्रिया अदा किया और कहा कि अब आप लोग भी मुझसे 'बाइट' माँगोगे। मैं ऐसे खिलाड़ी के रूप में याद किया जाना पसंद करूँगा, जिसने खेल को एक नई ऊँचाई दी। टेस्ट में 619 विकेट लेकर मैंने दूसरों के सामने एक ऊँचा स्तर रखा हैं।

अपने संन्यास की घोषणा के बाद कुंबले संवाददाता सम्मेलन में उस कैप को पहनकर बैठे थे, जो 1999 में फिरोजशाह कोटला मैदान में उनके 'परफेक्ट टेन' की गवाह रही थी। उस मैच में सचिन ने उनकी यह कैप अम्पायर को थमाई थी, जिसके बाद से यह सिलसिला चला आ रहा था कि कुंबल के गेंदबाजी में उतरते समय सचिन उनकी कैप अम्पायर को थमाते थे। आज भी ऐसा हुआ लेकिन कुंबले अपनी आखिरी पारी में कोई विकेट नहीं ले पाए।

कोटला में सात मैचों में 58 विकेट लेने वाले कुंबले ने कहा कि मुझे थोड़ा अफसोस है कि मैं अपनी आखिरी पारी में कोई विकेट नहीं ले पाया। दिल्ली को अपने लिए यादगार बताते हुए कुंबले ने कहा कि दिल्ली का मेरे मन में विशेष स्थान है और मुझे लगा कि अपने करियर को विराम देने के लिए यही उपयुक्त जगह है।

अपने 18 वर्षों के करियर पर नजर डालते हुए 38 वर्षीय कुंबले ने कहा कि मैं जानता हूँ कि इतने लम्बे समय तक अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट में खेलते रहना कितना मुश्किल होता है और वह भी तब जब आप एक अरब लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हों। सबको संतुष्ट करना बहुत मुश्किल होता है। हमने यदि आपको थोड़ा दु:ख दिया है तो बहुत सारी खुशियाँ भी दी हैं।

फिरोजशाह कोटला की विशाल टीवी स्क्रीन पर चायकाल के तुरंत बाद जैसे ही कुंबले के संन्यास की खबर फ्लैश हुई, चारों तरफ सन्नाटा छा गया। कुंबले ने अपना आखिरी अन्तरराष्ट्रीय मैच उस मैदान पर खेला, जहाँ उन्होंने नौ साल पहले एक टेस्ट पारी में सभी 10 विकेट लेने का कारनामा किया था।

अपने संन्यास की घोषणा के बाद कुंबले जब ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी में मैदान पर उतरे उस समय भारतीय खिलाडी उनके सम्मान में कतार में खड़े थे। ऑस्ट्रेलिया के ओपनरों साइमन कैटिच और मैथ्यू हैडन ने हाथ मिलाकर उनका अभिवादन किया।

मैच खत्म होने के बाद भारतीय खिलाड़ियों ने अपने कप्तान को कंधे पर उठा लिया। मैदान का चक्कर लगाते हुए कुंबले ने अपने सम्मान में खडे़ सभी दर्शकों का हाथ हिलाकर शुक्रिया अदा किया।

कुंबले ने टीम साथियों, दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष अरुण जेटली और चयन समिति के प्रमुख कृष्णमाचारी श्रीकांत को अपने फैसले की जानकारी पहले से ही दे दी थी, लेकिन देश के करोड़ों क्रिकेटप्रेमियों के लिए उनका यह कदम किसी जबरदस्त सदमे से कम नहीं था। कुंबले को कोटला मैदान से तालियों की गड़गड़ाहट और फिर संवाददाता सम्मेलन में तालियों के सम्मान के साथ विदा किया गया। (वार्ता)

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