कोलकाता की ट्रामों में श्रेणियां खत्म

Webdunia
गुरुवार, 7 जून 2012 (13:27 IST)
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कोलकाता में ब्रिटिश समय से चली आ रही ट्राम में फर्स्ट क्लास और सेकंड क्लास का भेद खत्म कर दिया गया है। दोनों में होंगी एक जैसी सुविधाएं ।

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में चलने वाली ट्रामें अंग्रेजी शासनकाल खत्म होने के छह दशक बाद भी एक ब्रिटिश परंपरा को ढो रही थी। किसी दौर में ट्रामें ही इस महानगर में आवाजाही का सबसे सुलभ और प्रमुख साधन थीं। लेकिन अपनी धीमी रफ्तार की वजह से पिछड़ते हुए अब इसका दायरा धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है। बावजूद इसके कोलकाता आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों के लिए इन ट्रामों का आकर्षण जस का तस है।

भेद खत्म : इन ट्रामों में दो डिब्बे होते हैं। वर्ष 1900 में अंग्रेजों ने इसमें एक और डिब्बा जोड़ दिया। तब अगला डिब्बा प्रथम श्रेणी का कर दिया गया और पिछला डिब्बा द्वितीय श्रेणी की, जिसमें भारतीय बैठते थे। पिछले डिब्बे का किराया कम था। लेकिन अब ममता बनर्जी सरकार ने यह वर्गभेद खत्म कर दिया है।

अब दोनों में एक जैसी सहूलियतें होंगी और उनका किराया भी समान होगा। इस तरह 112 साल पुरानी यह ब्रिटिश परंपरा खत्म हो गई है। ट्राम के दोनों डिब्बों में समान किराया व समान सुविधाएं होंगी। पहले सामने वाले डिब्बे यानी फर्स्ट क्लास का किराया चार रुपए था और दूसरे डिब्बे यानी सेकेंड क्लास का साढ़े तीन रुपए। अब दोनों का किराया चार रुपए होगा।

परिवहन मंत्री मदन मित्र कहते हैं, ‘इस सबसे सुलभ सवारी में वर्गभेद उचित नहीं है। राज्य की पूर्व वाममोर्चा सरकार को ही इसे खत्म कर देना चाहिए था। इसलिए हमने किराया समान कर वर्गभेद खत्म करने का फैसला किया है।'

वैसे, वाममोर्चा सरकार ने अपने कार्यकाल में यह वर्गभेद खत्म करने का प्रयास किया था। लेकिन तब उसे आभिजात्य तबके के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। इस तबके के लोग नहीं चाहते थे कि निम्न-मध्यम तबके के लोग भी उनके साथ फर्स्ट क्लास में सफर करें। भारी विरोध की वजह से सरकार ने यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

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क्लास में फर्क : आखिर ट्राम के फर्स्ट और सेकंड क्लास में क्या अंतर होता है? फर्स्ट क्लास के डिब्बों में सीटें गद्देदार होती हैं और विशालकाय पंखे लगे होते हैं। जबकि सेकेंड क्लास में सीटें लकड़ी की बनी होती हैं और उनमें पंखे भी नहीं होते। इन दोनों के किराए में यह अंतर शुरू से ही था।

सत्तर के दशक तक इन दोनों के किराए में पांच पैसों का फर्क था। तब फर्स्ट क्लास का किराया पंद्रह पैसे और सेकेंड क्लास का दस पैसे था। सरकार के ताजा फैसले के मुताबिक, ट्राम में चाहे जितनी भी दूरी की जाए, किराया चार रुपए ही होगा। ट्रामों में यह वर्गभेद अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ और आजादी के बाद भी यह परंपरा जारी रही।

शुरुआत में घोड़े से चलने वाले ट्राम में एक ही डिब्बा होता था। वर्ष 1900 में एक सेकेंड क्लास का डिब्बा लगाने का भी फैसला किया गया। तब फर्स्ट क्लास में सिर्फ गोरे साहब या उनके वरिष्ठ अधिकारी ही चढ़ सकते थे। पचास व साठ के दशक में यह ट्रामें कोलकाता में वर्गभेद को समझने का सबसे बेहतर जरिया थीं। वर्ष 1978 में कलकत्ता ट्रामवेज कार्पोरेशन (सीटीसी) के गठन के बाद भी यह अंतर जारी रहा।

ऐतिहासिक : 24 फरवरी 1873 को यहां सियालदह से आर्मेनियन स्ट्रीट के बीच पहली ट्राम ने अपनी यात्रा शुरू की थी।उस समय इसे घोड़े खींचते थे। बीच में लगभग चार साल बंद रखने के बाद एक नवंबर 1880 से यह सेवा दोबारा शुरू हुई। इसी दौरान घोड़ों की जगह स्टीम इंजन से भी ट्राम चलाने का प्रयास किया गया लेकिन यह सफल नहीं रहा।

आखिरकार 27 मार्च 1902 को पहली बार बिजली से ट्राम चलाने में सफलता मिली। उससे कोई दो साल पहले ट्राम के डिब्बों की संख्या बढ़ाकर दो कर दी गई थी। अब सरकार ने भारी घाटे के बावजूद इस ऐतिहासिक विरासत को जीवित रखने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। इनके तहत ट्रामों को नया रंग-रूप दिया गया है।

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1930 के दशक में कोलकाता में तीन सौ से ज्यादा ट्रामें चलती थीं। तब यही महानगर की प्रमुख सार्वजनिक सवारी थी। अब सड़कों के प्रसार व वाहनों की तादाद बढ़ने के साथ इनका रूट सिकुड़ गया है। यह ट्रामें सड़कों पर बिछी पटरियों पर ही चलती हैं। इस समय सीटीसी के पास 272 ट्रामें हैं। लेकिन उनमें से सौ ही सड़कों पर उतरती हैं।

सरकार ने इन ट्रामों को आकर्षक बनाने के लिए नई योजनाएं शुरू की है। इसके तहत इस साल दुर्गापूजा के दौरान चार ट्रामों को मोबाइल कैफेटरिया में बदला जाएगा। लोग इन पर सवार होकर अपने मनपसंद खाने का लुत्फ उठाते हुए दुर्गापूजा घूम सकते हैं।

परिवहन मंत्री मदन मित्र कहते हैं, ‘पहले दौर में चार ट्रामों को मोबाइल कैफे में बदला जाएगा। इसके लिए गठित कमिटी एक महीने में अपनी रिपोर्ट दे देगी। इन कैफेटेरिया का संचालन का जिम्मा किसी पेशेवर संस्था पर होगा। इनमें आधुनिक कैफेटेरिया में मिलने वाली सभी सुविधाएं मिलेंगी।'

सरकार की नई योजनाओं से इन ट्रामों के दोबारा पटरी पर लौटने की उम्मीद है। मित्र कहते हैं, ‘यह ट्रामें कोलकाता की पहचान बन चुकी हैं। इसलिए सरकार घाटे के बावजूद उनको चलाना चाहती है।'

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः आभा मोंढे

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