कवि ब्राऊनिंग का पत्र कवयित्री बैरट के नाम

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( ब्राऊनिंग : इंग्लैंड का वह विश्व प्रसिद्ध रोमांटिक कवि, जिसने अनेक महाकाव्य (बैलड्स) लिखे...) शनिवार 1 बजे, 12.9.1846

प्रिये,
तुम थोड़े-से ही शब्दों की उम्मीद करोगी, पर वे होंगे क्या? जब दिल लबालब भरा होता है, तो वह बह निकलता है, असल में भरा हुआ दिल छलकता नहीं।

कल तुमने मुझसे पूछा, 'तुम पछतावा तो नहीं करोगे?' हाँ, मेरी अपनी बै, कहीं वह अतीत वापस लौट सकता और में बाहरी प्रेम प्रदर्शन से अपनी आंतरिक भावना की कुछ और पुष्टि कर सकता। जो कुछ मैंने अब तक कहा है, वह बहुत ही कम है और मेरे पहले प्यार की जरूरतको पूरा नहीं करता, और जब मैं इस अपर्याप्त प्रेम का खयाल करता हूँ तो पछताना तो मुझे चाहिए ही!

शब्दों को किसी तरह भी गढ़ लूँ, उनकी कायापलट कर लूँ... वे तुम्हें नहीं बता सकते कि तुम मुझे कितनी अधिक प्रिय हो... कितनी मेरे हृदय और मेरी आत्मा को तुम पूरी तरह प्यारी हो!

जब मैं बीते दिनों पर नजर डालता हूँ तो तुम्हारे हर शब्द, हर अंदाज, हर पत्र और प्रत्येक चुप्पी पर हर दृष्टि से विचार करने के बाद तुम मुझे इतनी पूर्ण लगती हो कि तुम्हारे एक शब्द और एक दृष्टिपात को भी मैं बदलना नहीं चाहूँगा...

मेरा लक्ष्य और मेरी उम्मीद इस प्यार को बनाए रखने की है, इसे छोड़ने की नहीं। मेरा विश्वास है कि वे भगवान, जिन्होंने यह प्यार मुझे दिया है, मेरी सहायता करेंगे और मैं निःसंदेह इसको इसी प्रकार बनाए रख सकूँगा।

मेरी प्रियतमा, सबसे प्यारी मेरी अपनी बै, यह बहुत काफी है। तुम मुझे प्रेम का महानतम, पूर्णतम वह प्रमाण दे चुकी हो जो कि एक मानव दूसरे को दे सकता है। मैं कितना अहसानमंद हूँ। मुझे तुम पर कितना घमंड है (ठीक कारण से उत्पन्ना हुआ उचित घमंड) कि तुमने मेरे जीवन को इस प्रकार अलंकृत किया है। तुम्हारा अपना रॉबर्ट प्रार्थना करता है कि भगवान तुम पर अपनी कृपा करे।

मैं कल निश्चय ही लिखूँगा। मेरे जीवन का पूरा ध्यान रखना। वह तुम्हारे प्यारे नन्हे हाथों में है। मेरी प्यारी! अपने मन को स्थिर रखो।-ब्राऊनिंग

( कुमारी बैरट ने एक बार उत्सुकतावश अपनी कुछ कविताएँ ठीक कराने के लिए ब्राऊनिंग के पास भेजी थीं। यहाँ से उनके स्थायी संपर्क का आरंभ हुआ।)

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