गलत फैसलों ने बिगाड़ा रिजल्ट

Webdunia
रविवार, 10 मई 2009 (10:30 IST)
माध्यमिक शिक्षा मंडल को 65 फीसदी से कम उपस्थिति वाले छात्रों को भी बतौर नियमित परीक्षार्थी शामिल करने का फैसला भारी पड़ गया। सालभर कक्षा से गायब रहने वाले छात्रों ने इस बार कक्षा 10वीं का रिजल्ट बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मंडल अब अपने इस गलत फैसले पर लीपा-पोती करने के लिए सारा दोष चुनाव पर मढ़ रहा है।

परिणाम घोषणा के दौरान पत्रकारों से चर्चा में मंडल अध्यक्ष स्नेहलता श्रीवास्तव ने बिगड़े रिजल्ट की वजह पाठ्यक्रम में बदलाव व चुनाव ड्यूटी के कारण शिक्षकों की कमी को बताया।

पिछले दो बार के चुनाव के दौरान घोषित रिजल्ट का विश्लेषण कर आसानी से बिगड़े रिजल्ट का ठीकरा चुनाव पर फोड़ा गया। दरअसल इसके पूर्व वर्ष 2003 व 1998 में चुनाव हुए थे। उस दौरान कक्षा 10वीं का परिणाम क्रमशः 25.84 तथा 17 फीसद रहा था। लेकिन दूसरी ओर जानकारों की मानें तो चुनाव रिजल्ट बिगड़ने के लिए मात्र 5 फीसद ही कारण है। इसकी सबसे मुख्य वजह सालभर कक्षा से गायब रहने वाले छात्रों को बतौर नियमित परीक्षार्थी शामिल किया जाना है।

बताया जाता है कि प्राचार्यों पर कम उपस्थिति वाले छात्रों को नियमित श्रेणी में शामिल करने का काफी दबाव था। 65 फीसद से कम उपस्थिति वाले फिसड्डी छात्रों की अलग से कक्षाएँ लगाकर उनकी उपस्थिति पूरी कराई गई। जबकि गत वर्ष मंडल ने कम उपस्थिति वाले छात्रों को बतौर नियमित शामिल करने से साफ इनकार कर दिया था। इससे पिछले साल के परिणाम में उछाल आया था।

पाठ्यक्रम में बदलाव भी वजह : कक्षा 12वीं की ही तरह कक्षा 10वीं के अँगरेजी विषय में किए गए बदलाव को वजह बताया जा रहा है। इस विषय को सीबीएसई पैटर्न पर तैयार तो किया गया लेकिन पढ़ाने वाले शिक्षकों को ठीक से प्रशिक्षित नहीं किया जा सका।

उल्लेखनीय है कि अँगरेजी विषय का पेपर इस बार 50 के बजाए 100 अंकों का था। हालाँकि मंडल अध्यक्ष ने स्वीकार किया कि पाठ्यक्रम में किए गए बदलाव के अनुरूप शिक्षकों को प्रशिक्षित नहीं किया जा सका।

दरअसल इस बार शिक्षकों को बिना हथियार ही फ्रंट पर लड़ने भेजने जैसी स्थिति बन गई थी। सूत्र बताते हैं कि अँगरेजी के प्रशिक्षित शिक्षकों में से अधिकांश इस काबिल भी नहीं थे कि वे बच्चों को सीबीएसई पैटर्न के अनुसार पढ़ा सके।

नहीं हो सकी शिक्षकों की भर्ती : स्कूल शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों के अनुसार दो बार लगी आचार संहिता के चलते शिक्षकों की भर्ती नहीं की जा सकी। हालाँकि अतिथि शिक्षकों की भर्ती का पूरा दारोमदार इस बार प्राचार्य के जिम्मे था। अधिकांश प्राचार्य अतिथि शिक्षकों की भर्ती समय पर करने में नाकाम रहे। इससे स्कूलों में शिक्षकों का टोटा सालभर बना रहा।

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