गाँधीगिरी, गाँधीवाद नहीं है

बापू के पास होता आतंकवाद का समाधान

Webdunia
अशोक जोशी
ND
गाँधी, गाँधीवाद और गाँधीगिरी तीनों जुदा-जुदा हैं, लेकिन तीनों का संबंध एक ऐसे शख्स के साथ है, जो सारी दुनिया में एक ही है- महात्मा गाँधी, जिसे इक्कीसवीं सदी का सबसे ख्यातिप्राप्त व्यक्ति चुना गया था। मोहनदास करमचंद गाँधी हाड़-माँस का एक ऐसा शख्स था जो एक सदी तक सारी दुनिया पर छाया रहा और आज भी किसी न किसी रूप में हमारे बीच उनकी प्रासंगिकता मौजूद है, भले ही वह 'लगे रहो मुन्नाभाई' जैसी फिल्म ही क्यों न हो। गाँधी जितनी सीधी और सरल शख्सियत है, उसे समझना उतना ही टेढ़ा है।

श्रीमद्भगवद्गीता को जितनी बार पढ़ा जाए, हर बार उसका अर्थ अलग-अलग निकलता है। इसी तरह महात्मा गाँधी की आत्मकथा के जितने पन्ने पलटे जाएँ, हर पन्ना उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की कहानी कहता नजर आता है।

वैसे देखा जाए तो गाँधीजी ताउम्र सत्य और अहिंसा की राह चलते रहे। उन्होंने कभी भी अपनी जीवनशैली नहीं बदली, लेकिन दुनिया अपने-अपने मतलबों और स्वार्थ के लिए गाँधीजी की अलग-अलग तरह से व्याख्या करती रही। यहाँ तक की खुद उनकी पार्टी कांग्रेस ने भी स्वतंत्रता के बाद गाँधी के प्रति अपना नजरिया बदल दिया और गाँधी जयंती से लेकर चुनावी मौसम तक उन्हें सीमित कर दिया। विपक्षी दल पाकिस्तान जाकर जिन्ना की तारीफ में कसीदे पढ़ते रहे, लेकिन गाँधी के प्रति विरोध जारी रहा।

रही बात गाँधीवाद की तो वह है- सत्य और अहिंसा की राह पर चलना और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अपनाना। गाँधीवाद अहिंसा की वकालत तो करता है, लेकिन कायरता से उसका दूर-दूर तक नाता नहीं है। ब्रिटिश साम्राज्य पर नाजी फौज के आक्रमण के समय गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार की खिलाफत करने के बजाए उसका साथ दिया क्योंकि गाँधीवाद यही कहता था।

ND
गाँधीवाद का सीधा सादा अर्थ यह है कि जिस काम को आप अपने लिए गलत समझते हैं, वह दूसरों के लिए भी न करो और न ही औरों से उसकी अपेक्षा करो। गाँधीजी ने अहिंसा की खातिर शाकाहार को बढ़ावा दिया और स्वदेशी आंदोलन के पीछे भी अहिंसा थी, क्योंकि ग्रेट ब्रिटेन की मशीनों से उत्पादित विदेशी सामान खरीदने से व्याप्त देशी बेरोजगारी हिंसा का बड़ा कारण बन सकती थी। नगालैंड और कश्मीर का आतंकवाद भी इसी उपेक्षा का परिणाम है। आज अगर गाँधी होते तो शायद उनके पास आतंकवाद का कोई माकूल समाधान होता।

गाँधीगिरी को गाँधीवाद समझने की भूल नहीं की जा सकती है। यह बात सही है कि 'लगे रहो मुन्नाभाई' ने गाँधीजी से प्रेरित होकर सत्य को बढ़ावा दिया है, लेकिन जिस उद्देश्य से उसने गाँधीवाद को अपनाया है, वह वास्तव में गाँधीवाद नहीं बल्कि शुद्धतः गाँधीगिरी है।

गाँधीगिरी में यदि कुछ अच्छा है तो वह है गाँधी का नाम। जिस तरह गाँधी टोपी में टोपी महत्वपूर्ण और गाँधी गौण हो गए हैं, ठीक उसी तरह गाँधीगिरी में भी सब कुछ किया गया है, सब कुछ हुआ है, लेकिन गाँधी गौण हो गए हैं। फिर भी एक बात तय है कि गाँधीगिरी के बहाने ही सही, गाँधीजी एक बार फिर प्रासंगिक हो गए हैं।

Show comments

क्या दूध वाली चाय-कॉफी सेहत को पहुंचा सकती है नुकसान?

गर्मी में वैक्सिंग के बाद दाने और खुजली की समस्या से राहत दिलाते हैं ये नुस्खे

ऑयली स्किन को मॉइश्चराइज और हाइड्रेट रखने के लिए अपनाएं ये 5 टिप्स

गर्मियों में चेहरे को हाइड्रेट रखने के लिए लगाएं गुलाब जल और खीरे से बना फेस मिस्ट

क्या पीरियड्स के दौरान स्तन और बगल में दर्द है चिंता का विषय ?

खरबूजे के भी होते हैं कई प्रकार, हर किसी का स्वाद और बनावट है अलग

Tamari और Soy Sauce में क्या है अंतर? जानें बनाने की प्रक्रिया

ये है आज का चटपटा चुटकुला : दो सगे भाइयों के पिता अलग-अलग कैसे ?

खाने में नमक की जगह मिलाएं ये चीज़ें, ब्लड प्रेशर भी रहेगा कम

महंगे हेयर मास्क छोड़ें, घर में रखी इन 5 चीजों से पाएं खूबसूरत बाल!