24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक महोत्सव

राजश्री कासलीवाल
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर और अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग-तपस्या से ओतप्रोत था। उन्होंने अपने जीवन काल में अहिंसा का भरपूर विकास किया।



 

आइए जानते हैं :-

जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर का महावीर स्वामी का जीवन परिचय।

- चौबीसवें तीर्थंकर का नाम : वर्द्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर, महावीर।
- जन्मस्थान : क्षत्रिय कुण्ड ग्राम (कुंडलपुर-वैशाली) बिहार।
- जन्मतिथि : चैत्र शुक्ल 13 ई.पू. 599।
- जन्म नक्षत्र : उत्तरा फाल्गुनी।
- माता का नाम : त्रिशला।
- पिता का नाम : सिद्धार्थ।
- वंश का नाम : ज्ञातृ वंशीय क्षत्रिय।
- गोत्र का नाम : काश्यप।
- चिह्न : सिंह।
- शरीर वर्ण : सुवर्ण।
- विवाहित/अविवाहित : विवाहित।
- दीक्षा तिथि : मंगसिर वदी 10 ई.पू. 570।
- दीक्षा स्थान : क्षत्रिय कुण्ड।
- प्रथम पारणा (दीक्षा पश्चात) : 2 दिन बाद, खीर से।
- तप काल : 12 वर्ष, 5 मास, 15 दिन।
- कैवल्य ज्ञान प्राप्ति : वैशाख शुक्ल 10 ई.पू. 557।
- कैवल्य ज्ञान प्राप्ति का स्थान : साल वृक्ष।
- ज्ञान प्राप्ति स्थान : बिहार में जम्भक गांव के पास ऋजुकूला नदी-तट।
- गणधरों की संख्या : 11।
- प्रथम गणधर : गौतम स्वामी।
- प्रथम आर्य : चंदनबाला।
- यक्ष का नाम : ब्रह्मशांति।
- यक्षिणी का नाम : सिद्धायिका देवी।
- उपदेश काल : 29 वर्ष 5 मास, 20 दिन।
- निर्वाण तिथि : कार्तिक कृष्ण 30 (कार्तिक अमावस्या) ई.पू. 527।
- निर्वाण भूमि : पावापुरी (बिहार)।
- आयु : लगभग 72 वर्ष।

जानिए भगवान महावीर के 34 भ
 
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भगवान महावीर स्वामी के चौंतीस भव निम्नानुसार हैं :-

1. पुरुरवा भील
2. पहले स्वर्ग में देव
3. भरत पुत्र मारीचि
4. पांचवें स्वर्ग में देव
5. जटिल ब्राह्मण
6. पहले स्वर्ग में देव
7. पुष्यमित्र ब्राह्मण
8. पहले स्वर्ग-देव
9. अग्नि सम-ब्राह्मण
10. तीसरे स्वर्ग-देव
11. अग्नि मित्र-ब्राह्मण
12. चौथे स्वर्ग में देव
13. भारद्वाज ब्राह्मण
14. चौथे स्वर्ग-देव
15. मनुष्य
16. स्थावर ब्राह्मण
17. चौथे स्वर्ग में देव
18. विश्वनंदी
19. दसवें स्वर्ग-देव
20. त्रिपृष्ठ अर्धचक्री
21. सातवें नरक में
22. सिंह
23. पहले नरक में
24. सिंह
25. पहले स्वर्ग-देव
26. विद्याधर
27. सातवें स्वर्ग में देव
28. हरिषेण राजा
29. दसवें स्वर्ग में देव
30. चक्रवर्ती प्रियमित्र
31. 12 वें स्वर्ग-देव
32. राजा नंदन
33. सोलहवें स्वर्ग में इंद्र
34. तीर्थंकर महावीर।

 
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आज से करीब ढाई हजार साल पुरानी बात है। ईसा से 599 वर्ष पहले कुंडलपुर वैशाली (बिहार) के क्षत्रिय परिवार में सिद्धार्थ और त्रिशला के यहां चैत्र शुक्ल तेरस को तीसरी संतान के रूप में महावीर स्वामी का जन्म हुआ। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का आज का जो बसाढ़गांव है, वहीं उस समय का वैशाली के नाम से जाना जाता था।

उनके माता-पिता जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (पार्श्वनाथ महावीर से 250 वर्ष पूर्व हुए थे) के अनुयायी थे। महावीर जब शिशु अवस्था में थे, तब इन्द्रों और देवों ने उन्हें सुमेरू पर्वत पर ले जाकर प्रभु का जन्म कल्याणक मनाया। 
 
महावीर स्वामी का बचपन राजमहल में बीता। युवावस्था में यशोदा नामक राजकन्या से महावीर का विवाह हुआ तथा प्रियदर्शना नामक उन्हें एक पुत्री भी हुई।

जब 28 वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। बड़े भाई नंदीवर्द्धन के आग्रह पर महावीर दो वर्षों तक घर में रहे। आखिर तीस वर्ष के उम्र में उन्होंने मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी के दिन दीक्षा ग्रहण की।

महावीर ने इस अवधि में तप, संयम और साम्य भाव की साधना की और पंच महाव्रत रूपी धर्म चलाया। उन्हें इस बात का अनुभव हो गया था कि इन्द्रियों, विषय-वासनाओं का सुख, दूसरों को दुख पहुंचा करके ही पाए जा सकते है। अत: उन्होंने सबसे प्रेम का व्यवहार करते हुए दुनिया भर को अहिंसा का पाठ पढ़ाया।

विश्व को अध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाले भगवान महावीर ने बहोत्तर वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रि में पावापुरी नगरी में मोक्ष प्राप्त किया। भगवान महावीर के निर्वाण के समय उपस्थित अठारह गणराजाओं ने रत्नों के प्रकाश से उस रात्रि को आलौकित करके भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया।

यह दिवस भारत भर में प्रतिवर्ष दीपावली के रूप में दीपमालाएं प्रज्ज्वलित कर मनाया जाता हैं। ऐसे भगवान महावीर को 'वर्द्धमान', 'वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' आदि नामों से भी जाना जाता है।

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