माँ की पीड़ा कौन सुनेगा

Webdunia
- विशाल मिश्र ा

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एक दिन रास्ते में मुझे मेरे मित्र की माँ दिखीं। मैंने पूछा आंटी कहाँ जा रही हैं। बोलीं बेटा सतीश को देखने जा रही हूँ। कहीं पीकर पड़ा होगा। उसकी उम्र बमुश्किल 18 साल होगी। मैंने कहा लेकिन उसे तो यह आदत नहीं थी। अब बेटा घर से कलाली दूर ही कितनी रह गई है।

एक दिन सुबह-सुबह मुझे सिरदर्द हुआ डिस्प्रिन के लिए चौराहे तक निकल गया। समय था सुबह 8 बजे का। देखता हूँ मेडिकल तो बंद पड़ा है लेकिन शराब की दुकान खुल गई है। मुँह से यही आह निकली वाह रे मालिक दवा तो नहीं दारू की व्यवस्था जरूर है।

प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह जी ने बचपन में यह तो देखा ‍क‍ि माँ ने खुले स्थान पर बच्चे को जन्म दिया और फिर कुछेक घंटों बाद अपने काम पर चल दी। उनके दुख-दर्द को समझते हुए उन्होंने महिलाओं के लिए अस्पतालों में प्रसूति की व्यवस्था करा दी। लेकिन क्या उन्होंने दारू के लिए भटकते युवाओं को भी देखा था जो आज चौराहे-चौराहे पर इन दुकानों को खोलने की अनुमति दे दी है।

आज मेरे प्रदेश (मध्यप्रदेश) में माँ अपने बच्चों को खेल के मैदान से पहले चौराहों पर लगी शराब की दुकानों की तरफ रास्ते भर ढूँढती हुई जाती है कि मेरा बेटा कहीं रास्ते में नशे की हालत में तो नहीं पड़ा है।

वे माँएँ कोस रही हैं राज्य सरकार को ‍कि एक तरफ तो मुख्‍यमंत्री की भांजी (उनकी बेटी) के लिए लाडली लक्ष्मी योजना है तो दूसरी ओर भांजों (उनके बेटों) और भांजा दामादों (बेटियों के पति) के लिए कुकुरमुत्तों की तरह खुली हुई दुकानें हैं। अभी तक तो संगत ही बुरी थी लेकिन घूमते-फिरते कितनी दुकानों के सामने अपने मन को समझाएगा आखिर किसी पर रुक गया तो गिरते-पड़ते घर आएगा।

शिवराज सिंह जी, प्रदेश को आगे ले जाने का सपना तो साकार तब होगा जबकि युवा शक्ति अपनी तन, मन और धन का इस्तेमाल जरूरी कामों में करेगी। स्कूल, कॉलेज विद्यार्थी पढ़ने जाएगा तब प्रदेश का विकास संभव है न कि रास्ते भर दिख रही इन दुकानों से होकर गुजरने पर। नशे की हालत से मुक्त होने पर ही तो कर्मचारी ऑफिस या व्यवसायी दुकान जा सकेगा।

प्रदेश की तरक्की तभी संभव है जब यह अपनी शक्ति सार्थक कामों में लगाएँ न कि केवल आपके म ंत्र िमंडल के विधानसभा भवन पहुँचने से। राज्य के लोगों ने 'शिवराज' के हाथों में सत्ता की बागडोर इसलिए ही सौंपी थी कि प्रदेश का उद्‍धार होगा न कि बंटाढार। मुख्‍यमंत्री जी, इन माँओं की पीड़ा तो सुन रहे हैं ना आप?

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