'गंगा' को मिलेंगे एक अरब डॉलर

Webdunia
मंगलवार, 14 जून 2011 (23:18 IST)
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने मंगलवार को कहा कि कुछ पनबिजली परियोजनाओं के चलते गंगा नदी में जल प्रवाह घट रहा है। उन्होंने नदी को वर्ष 2020 तक गंदे पानी से पूरी तरह मुक्त बनाने के मकसद से विश्व बैंक के साथ करीब एक अरब डॉलर का कर्ज हासिल करने के लिए समझौता किया है।

गंगा नदी की ‘अविरल धारा’ बनाए रखने के मकसद से एक अरब डॉलर यानी करीब 4600 करोड़ रुपए का कर्ज हासिल करने के लिए रमेश और विश्व बैंक के निदेशक (भारत) रॉबर्ट जागा ने आज एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

इस कर्ज के तहत उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल को गंगा नदी के संरक्षण के लिए धनराशि मुहैया कराई जाएगी। गंगा नदी के संबंध में आईआईटी रुड़की के एक अध्ययन को भी पर्यावरण मंत्रालय को सौंपा गया है।

इस बारे में रमेश ने कहा कि अध्ययन से साबित होता है कि भागीरथी और अलकनंदा नदी के भराव क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं। अगर इन दोनों नदियों में पानी नहीं होगा तो गंगा नदी में भी जल प्रवाह काफी कम हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि अध्ययन में कहा गया है कि दोनों नदियों पर पनबिजली परियोजनाओं के कारण गंगा नदी के जल प्रवाह पर असर पड़ रहा है। यह सिफारिश की गयी है कि गंगा में ‘अविरल धारा’ बनाए रखने के लिए दोनों परियोजनाओं के तहत न्यूनतम जल प्रवाह निर्धारित करना होगा। हमने यह सिफारिश स्वीकार कर ली है और अब इस संबंध में कदम उठाए जाएंगे।

रमेश ने विश्व बैंक के साथ हुए समझौते के विवरण देते हुए कहा कि वर्ष 2020 तक हमें गंगा को गंदे पानी और उद्योगों के प्रदूषण से मुक्त बनाना है। इसके लिए विश्व बैंक की मदद से पांच वर्ष की अवधि में राशि खर्च की जाएगी। राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण इस परियोजना का कार्यान्वयन करेगा। विश्व बैंक से मिलने वाले कर्ज की राशि को मिलाकर यह परियोजना कुल सात हजार करोड़ रुपए की है।

रमेश ने कहा कि उनके मंत्रालय ने गंगा नदी के तटीय क्षेत्रों में चल रही 60 इकाइयों को उनके द्वारा प्रदूषण फैलाने पर कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। इनमें से अधिकतर इकाइयां कन्नौज से वाराणसी के बीच के 500 किलोमीटर क्षेत्र में हैं।

सरकार ने विश्व बैंक के साथ दो और समझौते किए हैं। इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जीवनयापन के स्रोतों को मजबूत करने के लिए 1.56 करोड़ डॉलर और जैव विविधता संरक्षण के लिए 81.4 लाख डॉलर का कर्ज मिलेगा।

रमेश ने कहा कि उत्तराखंड के असकोट अभयारण्य और कच्छ के रण के एक हिस्से को स्थानीय समुदाय के जीवनयापन के स्रोतों के संरक्षण के लिए प्रायोगिक परियोजना के तौर पर चुना गया है। (भाषा)

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