आईपीएल फिक्सिंग पर आंख नहीं मूंद सकते-सुप्रीम कोर्ट

Webdunia
बुधवार, 16 अप्रैल 2014 (16:25 IST)
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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड को अपनी स्वायत्तता बनाये रखने के लिए खुद ही सट्टेबाजी तथा स्पाट फिक्सिंग कांड में एन श्रीनिवासन और 12 अन्य के खिलाफ जांच करनी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि न्यायमूर्ति मुकुल मुदगल समिति के आरोपों के प्रति वह ‘आंख नहीं मूंद सकता’ है।

न्यायमूर्ति ए के पटनायक की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुंदर रमण को आईपीएल के सातवें संस्करण में मुख्य संचालन अधिकारी के रूप में काम करते रहने की अनुमति प्रदान कर दी है।

लेकिन न्यायालय ने इन आरोपों की विशेष जांच दल या केन्द्रीय जांच ब्यूरो को जांच करने का आदेश देने पर संकोच व्यक्त करते हुए कहा कि बोर्ड की संस्थागत स्वायत्तता बनाये रखना होगा और बेहतर होगा कि बोर्ड द्वारा गठित समिति इस मसले पर गौर करे।

न्यायाधीशों ने कहा कि आरोपों के स्वरूप को देखते हुए हम अपनी आंख मूंद नहीं सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे व्यक्तियों को लेकर नहीं बल्कि देश में क्रिकेट के खेल को लेकर चिंतित हैं।

न्यायमूर्ति मुद्गल समिति की सीलबंद लिफाफे में पेश पेश का जिक्र करते हुए न्यायाधीशों ने कहा, यह रिपोर्ट कहती है कि सभी आरोप श्रीनिवासन के संज्ञान में लाए गए थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। इसका मतलब यह हुआ कि वह इन आरोपों के बारे में जानते थे ओर उन्होंने इन्हें गंभीरता से नहीं लिया।

इस बीच, न्यायालय ने अबूधाबी में आज से शुरू हो रहे आईपीएल-सात के मुख्य संचालन अधिकारी के रूप में रमण को काम करते रहने की अनुमति प्रदान कर दी।

शीर्ष अदालत द्वारा बोर्ड के अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त वरिष्ठ क्रिकेट खिलाड़ी सुनील गवास्कर ने न्यायालय से अनुरोध किया था कि रमण के भाग्य का फैसला किया जाए। इसके बाद ही न्यायालय ने रमण को इस पद पर काम करते रहने की अनुमति प्रदान की। शीर्ष अदालत ने इससे पहले गास्कर से कहा था कि रमण को पद पर बनाये रखने या हटाने के बारे में वह निर्णय करें।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया थ कि आईपीएल-7 निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही होगा और वह बीसीसीआई तथा श्रीनिवासन के अनुरोध पर सुनवाई के लिये भी तैयार हो गया। दोनों ने ही मुद्गल समिति के साथ भारतीय टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी और श्रीनिवासन की बातचीत की आडियो रिकार्डिंग उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है।

श्रीनिवासन ने कल ही न्यायालय से अपने अंतरिम आदेश पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया था। इस आदेश के तहत न्यायालय से श्रीनिवास को बोर्ड के कामकाज से दूर रहने का निर्देश दिया था। श्रीनिवासन ने अध्यक्ष पद के रूप में अपना शेष कार्यकाल पूरा करने की अनुमति न्यायालय से मांगी थी। उनका कार्यकाल सितंबर में पूरा हो रहा है।

उन्होंने उस घटनाक्रम का सिलसिलेवार विवरण दिया है जिसकी वजह से न्यायालय ने उन्हें बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में काम नहीं करने का आदेश दिया था। उन्होंने दलील दी है कि बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने उनके खिलाफ ‘अनुचित और अप्रमाणित आरोप’ लगाए थे।

श्रीनिवासन ने वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के इस आरोप से इंकार किया था कि वह भ्रष्टाचार और ‘पर्दा डालने’ के दोषी हैं। उन्होंने सद्टेबाजी कांड के दो आरोपी विन्दू दारा सिंह और मयप्पन के बीच बातचीत के बारे में मुद्गल समिति द्वारा सीलबंद लिफाफे में पेश किसी भी ऑडियो टेप के तथ्यों की जानकारी से भी इंकार किया है। (भाषा)

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