आनंदवन आश्रम का संत

Webdunia
रविवार, 10 फ़रवरी 2008 (16:33 IST)
बचपन में माता-पिता उन्हें प्यार से बाबा पुकारा करते थे, वे उनकी अपेक्षाओं और आकांक्षाओं पर तो खरे उतरे ही मानवता और दीन-दुखियों की ऐसी सेवा की कि पूरी दुनिया उन्हें 'बाबा' के नाम से ही पुकारने लगी।

मुरलीधर देवीदास आमटे को बाबा आमटे के तौर पर जानने वाले ज्यादातर लोग समझते हैं कि उन्हें मानवता के प्रति सेवा भाव और साधु-संतों जैसे सरल एवं स्नेही स्वाभाव के कारण बाबा कहा जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि उनके माता-पिता ने उन्हें बचपन में प्यार का यह संबोधन दिया था।

24 दिसंबर 1914 को वर्धा के हिंगाईघाट में जन्मे मुरलीधर देवीदास आमटे ने मानव सेवा की ऐसी मिसाल कायम की कि उनकी प्रत्येक उपलब्धि मील का पत्थर साबित हुई और उन्हें दुनिया भर में एक सच्चे मानवतावादी के तौर पर स्वीकार किया गया।

मुरलीधर देवीदास आमटे का जन्म एक ब्राह्मण जागीरदार परिवार में हुआ था और उस समय के रूढ़िवादी समाज और उनके परिवार के ऊँचे रसूख के बावजूद उन्होंने कुष्ठ रोगियों और तथाकथित छोटी जाति के लोगों के उत्थान के लिए जिस शिद्दत से काम किया उससे लोगों ने उन्हें संत का दर्जा दिया। इसके अलावा महात्मा गाँधी ने उन्हें अभयसाधक कहकर संबोधित किया था।

बाबा आमटे ने कानून की पढ़ाई की और वर्धा में वकील के रूप में कामकाज शुरू किया, लेकिन चंद्रपुर जिले के लोगों की गरीबी और तकलीफों ने उनके मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला और इसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने वकालत छोड़कर झाड़ू लगाने वालों और अन्य लोगों से साथ रात में इस तरह का काम करना शुरू कर दिया।

उनका विवाह वर्ष 1946 में साधना गुलेशास्त्री के साथ हुआ। इन दोनों समाजसेवकों के विवाह के पीछे भी एक वाकया है। दरअसल साधना ने एक पुराने नौकर की खातिर एक विवाह समारोह का बहिष्कार किया था। इससे आमटे काफी प्रभावित हुए और साधना के माता-पिता से उनका हाथ माँगने उनके घर पहुँच गए।

बाबा आमटे ने देश को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए दो बार भारत जोड़ो अभियान आयोजित किया। पहली बार वर्ष 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और दूसरी बार वर्ष 1988 में असम से गुजरात तक।

' आनंदवन आश्रम' बाबा आमटे के ख्वाबों की ताबीर है। यह आश्रम उनकी कर्मभूमि बना, जहाँ उन्होंने मानव कल्याण के अनेक महत्वपूर्ण कार्य पूरा किए। उन्होंने उस समय समाज में व्याप्त कई भ्रांतियों को न केवल तोड़ा बल्कि समाज को अपने कार्यों से एक नई दिशा भी प्रदान की।

आनंदवन एक ऐसा आश्रम है, जहाँ रहने वाले सभी लोग एक साधक की तरह लोक कल्याण की गतिविधियों के लिए समर्पित हैं। यहाँ खादी वस्त्र तैयार करने तथा फल एवं सब्जियाँ उगाने से लेकर लोगों के उत्थान से जुड़े कार्य भी किए जाते हैं। दलाई लामा, लता मंगेशकर आर्थर टार्नोवस्की जैसी महत्वपूर्ण हस्तियाँ बाबा के इस आश्रम में मानवता के कार्यों के गवाह रहे हैं।

बाबा आमटे ने लोक कल्याण को समर्पित 'उत्तरायन स्नेह सावली', बुजुर्गो के लिए 'लोटी रमण गृह', कुष्ठ रोगियों के लिए सुख सदन जैसे संस्थाओं की स्थापना की।

बाबा आमटे के इन्हीं कार्यों को देखते हुए दुनिया ने उन्हें सिर आँखों पर बैठाया। उन्हें वर्ष 1984 में रेमन मैगसेसे, 1986 में पद्म विभूषण, 1971 में पद्मश्री, 1999 में डॉ. अम्बेडकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, 2000 में गाँधी शांति पुरस्कार के अलावा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पुरस्कार, टेम्पल्टन पुरस्कार आदि प्रदान किए गए।


गाँधीवादी बाबा आमटे का निधन

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