प्रधानमंत्री उतरे पचौरी के बचाव में

कहा-आईपीसीसी की प्रक्रिया में पूरा विश्वास

Webdunia
PTI
हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने को लेकर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की अपुष्ट खबरों के लिए आलोचना का शिकार बने आरके पचौरी का प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने आज खुलकर बचाव किया। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने में पचौरी को उनके योगदान के लिए जो अंतरराष्ट्रीय सम्मान और ख्याति मिली है, वे उसके हकदार हैं।

सिंह ने यहाँ 'दिल्ली सतत विकास' के दसवें शिखर सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि आईपीसीसी की प्रक्रिया और उसके नेतृत्व में भारत को पूरा विश्वास है और वह उसका समर्थन करेगा।

उन्होंने हालाँकि यह भी कहा कि आईपीसीसी के कार्य में उसके विज्ञान संबंधी कुछ पहलुओं को आलोचना का सामना करना पड़ा है। उन्होंने कहा ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की दोहरी चुनौतियों का सामना करने में पचौरी के नेतृत्व में ऊर्जा अनुसंधान संस्थान (टेरी) के योगदान को उचित अंतरराष्ट्रीय सम्मान और मान्यता मिली है।

नोबेल पुरस्कार विजेता पचौरी को आईपीसीसी की 2007 की रिपोर्ट के उन पहलुओं के लिए विभिन्न क्षेत्रों से कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार का गलत उल्लेख किया गया है। पचौरी यह कह कर इस्तीफा देने से पहले ही इनकार कर चुके हैं कि यह गलती दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन वे आईपीसीसी मूल्यांकन की पाँचवीं रिपोर्ट तैयार करने के कार्य को पूरा करने में जुटे रहेंगे।

प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर वैश्विक आम राय के अभाव पर खेद प्रकट करते हुए औद्योगिक देशों से कहा कि वे भविष्य के अपने उत्सर्जन को नियंत्रित करने की दिशा में पहल करें। उन्होंने विकसित देशों से यह भी कहा कि वे ग्रीन हाउस गैसों के संग्रह में अपनी भूमिका को और अधिक स्पष्टता से स्वीकार करें।

जलवायु परिवर्तन पर हुए कोपेनहेगन सम्मेलन में सीमित उपलब्धियों पर खेद जताते हुए सिंह ने कहा कि भारत वहाँ हुए समझौते का पूरा समर्थन करता है और उसे आगे ले जाएगा, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि यह स्वैच्छिक प्रतिबद्धता है और बातचीत के जरिए किन्ही कानूनी बाध्यताओं से नहीं बँधी है।

उन्होंने कहा कि पूरी तरह लागू नहीं किए जा सकने वाले महत्वाकांक्षी समझौते से बेहतर तो यही होता कि पूरी तरह लागू किया जा सकने वाला लक्ष्य निर्धारित किया जाता।

सिंह ने कहा यह ऐसा सबक है, जो हमने क्योटो प्रोटोकॉल के संदर्भ में सीखा है। एक महत्वकांक्षी समझौता, जिसे सम्पूर्णता में लागू नहीं किया जा सके, उससे पूरी प्रक्रिया की प्रतिष्ठा ही दाँव पर लगेगी।

हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने पर आईपीसीसी की रिपोर्ट के बारे में चल रही चर्चा के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे संयुक्त राष्ट्र की इकाई के मुख्य अनुमानों को चुनौती नहीं मिलती।

प्रधानमंत्री ने बताया कि सरकार ने देश के 120 अनुसंधान संस्थानों के जरिए जलवायु परिवर्तन के मूल्यांकन के लिए एक व्यापक भारतीय नेटवर्क की स्थापना की है। यह नेटवर्क देश के विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन से हो रहे हर तरह के बदलावों के बारे में नियमित रिपोर्ट पेश किया करेगा।

उन्होंने बताया कि इस नेटवर्क की ऐसी पहली रिपोर्ट इस साल नवंबर में जारी की जाएगी। उन्होंने बताया कि भारत देहरादून में हिमालयन ग्लेशिओलॉजी नेशनल इंस्टिट्यूट स्थापित करने जा रहा है और इसके लिए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी माँगा।

विश्व के नागरिक के रूप में भारत की भूमिका और जिम्मेदारी को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन की वार्ताओं में ‘पूरे लचीलेपन’ से हिस्सेदारी करता रहेगा। उन्होंने कहा कि कोपेनहेगन के बाद की प्रक्रिया को सफल बनाने में भारत अपने योगदान में कोई कोर कसर नहीं रखेगा। (भाषा)

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