ब्रांड नरेन्द्र मोदी बनाम ब्रांड राहुल गांधी

-वेबदुनिया

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देश की दो सबसे बड़ी पार्टियां - कांग्रेस और भाजपा। ...और इन पार्टियों के दो बड़े नेता राहुल गांधी तथा नरेन्द्र मोदी। वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनावों को अभी लगभग एक साल बाकी है। मगर इन दोनों ही नेताओं के बीच 'जंग का एलान' हो चुका है। ...और जनता भी इस रोचक मुकाबले को देखने का मन बना चुकी है।

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मोदी और राहुल के वार-पलटवार से इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि यह मुकाबला अमेरिकी चुनाव जैसा हो सकता है, जहां राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बहस में शरीक होकर राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करते हैं। अमेरिकी नागरिकों की भी प्रत्याशियों पर पैनी नजर होती है। ऐसी ही भावनाएं अब भारत के लोगों में नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी को लेकर दिखाई दे रही हैं। क्योंकि लोग दोनों ही नेताओं को गंभीरता से सुन रहे हैं।

इस मुकाबले में राहुल गांधी के पक्ष में सबसे बड़ी बात जो दिखाई देती है, वह यह कि वे युवा हैं, ऊर्जा से लबरेज हैं और पूरी कांग्रेस पार्टी उनके पीछे एकजुट होकर खड़ी है और उनकी प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी के लिए रह-रहकर आवाजें भी बुलंद होती रहती हैं।

हालांकि राहुल गांधी बार-बार यह कहकर इस बात से किनारा कर लेते हैं कि पीएम बनने का प्रश्न अप्रासंगिक है। सीआईआई के मंच से भी उन्होंने यही कहा। उनकी इस बात में दो ही बातें हो सकती हैं। एक- उनमें आत्मविश्वास की कमी है, दूसरी- शीर्ष पद को लेकर वे उचित अवसर की तलाश में हैं और अपने पत्ते अभी नहीं खोलना चाहते। यहां यह भी देखना होगा कि राहुल गांधी भले ही पार्टी के उपाध्यक्ष हों, लेकिन उन्हें किसी बड़े पद पर काम करने का अनुभव नहीं है। कौन है नरेन्द्र मोदी की राह में रोड़ा...आगे पढ़ें...

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दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी की छवि विकास पुरुष की है और आत्मविश्वास की कमी उनमें तनिक भी दिखाई नहीं देती। हालांकि वे छह करोड़ गुजरातियों की बात कर खुद को राज्य तक सीमित रखने की बात कहते हैं, लेकिन उनकी बातों से अब यह लगने लगा है कि उन्होंने गुजरात छोड़ने का मन बना लिया है और अब वे राष्ट्रीय राजनीति में दो-दो हाथ करने के मूड में हैं।

उन्होंने गांधीनगर में एक समारोह में इस बात के संकेत भी दिए कि गुजरात का कर्ज चुका दिया है और अब भारत मां का कर्ज चुकाना है। इसके मायने यही निकाले जा रहे हैं कि मोदी की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। भाजपा ने संसदीय बोर्ड में शामिल करके उनकी महत्वाकांक्षा पर एक तरह से मोहर भी लगा दी है।

मोदी जनाधार वाले नेता हैं। अच्छे वक्ता हैं, लोग उनके ध्यान से सुनते भी हैं, लेकिन उनकी राह में रोड़ा उनकी अपनी ही पार्टी के लोग बन सकते हैं, जिनकी खुद की नजर प्रधानमंत्री पद पर है। इसके साथ ही भाजपा को जादुई आंकड़ा हासिल नहीं होने की स्थिति में नीतीश जैसे लोग मोदी के नाम पर एनडीए से किनारा भी कर सकते हैं। इसके ठीक उलट राहुल गांधी का न तो कांग्रेस में विरोध है न ही गठबंधन सहयोगियों में।

खैर, परिणाम तो लोकसभा चुनाव के बाद ही तय होंगे, लेकिन यदि राहुल और मोदी लोकसभा चुनाव में आमने-सामने होने से देश को रोचक मुकाबला जरूर देखने को मिलेगा।

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