वैज्ञानिकों के लिए पीएम से मिले थे भाभा

Webdunia
शनिवार, 15 नवंबर 2008 (14:58 IST)
चाँद पर तिरंगा गाड़ने का जश्न मना रहे भारतवासियों को यह सुनकर अचरज होगा कि साढ़े चार दशक पहले परमाणु वैज्ञानिकों को अच्छा खाने उपलब्ध कराने और दो गाड़ियों की व्यवस्था करने के लए प्रसिद्ध वैज्ञानिक होमी जहाँगीर भाभा को प्रधानमंत्री से पैरवी करनी पड़ी थी।

भारत में परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले होमी भाभा की जन्मशती के उपलक्ष्य में प्रकाशित पुस्तक में पंडित जवाहर लाल नेहरू को लिखे गए उनके खत से यह बात सामने आई है।

प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित से प्रख्यात भौतिकशास्त्री गणेश वेंकटरमन की इस पुस्तक में भाभा का एक अगस्त 1956 को तत्कालीन प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र छपा है। इसमें उन्होंने अनुरोध किया कि वैज्ञानिकों को घर से लाने के लिए दो गाड़ियाँ लगाई जाएँ ताकि वे चौबीसों घंटे कभी जरूरत पर पड़ने पर आवागमन कर सकें।

दूसरा अनुरोध भाभा ने यह किया कि वैज्ञानिकों के लिए दोपहर और रात के भोजन का प्रबंध किसी अच्छे होटल से मँगवाकर किया जाए। भाभा ने लिखा कि ये दोनों आदेश सरकारी नियमों के अनुसार नहीं हैं, लिहाजा अपनी इन कार्रवाइयों के लिए मैं प्रधानमंत्री की स्वीकृति चाहता हूँ।

लालफीताशाही पर बारीकी से चोट करते हुए परमाणु वैज्ञानिक ने लिखा ‍कि प्रसंगवश वर्तमान सरकारी नियम कानून तेजी से और दबाव में काम करने के अनुकूल नहीं हैं।

भाभा के इस अनुरोध को तुरंत दिल्ली भेजा गया, जिसे नेहरू ने उसी दिन मैं सहमत हूँ, लिखकर मंजूरी दे दी। देश के पहले रिएक्टर 'अप्सरा' का निर्माण कार्य ट्राम्बे में चल रहा था और भाभा से प्रेरित होकर वैज्ञानिक एवं इंजीनियर चौबीसों घंटे काम पर जुटे रहते थे।

ट्रांबे जगह शहर से बहुत दूर और निर्जन थी और लोगों को वक्त बेवक्त शहर से आने-जाने में दिक्कत होती थी और वैज्ञानिकों के खाने-पीने का ठीक से इंतजाम नहीं हो पाता था।

इस बारे में भाभा ने पंडित नेहरू को लिखा है कि पिछले कई दिन से वैज्ञानिकों ने देर रात तक काम किया है और कभी-कभी तो ये पूरी रात जुटे रहे हैं। शहर के केंद्र से फोर्ट से ट्रांबे पहुचने के लिए गाड़ी से एक घंटा लगता है और कैंटीन भी अभी शुरू नहीं हुई है।

रिएक्टर में ईंधन भरने का काम बहुत मुश्किल है और छोटी सी गलती भी पूरी योजना को हानि पहुँचा सकती है। ऐसी परिस्थिति में लोगों को तनाव मुक्त रखने के लिए जितना करने की आवश्यकता है, वह सब करना जरूरी है।

भाभा ने लिखा है कि कल यह दल रात तीन बजे तक काम करता रहा। अलारडाइस तथा मैंने दोबारा मंगलवार दोपहर से काम शुरू कर सारी रात और सुबह सात बजे तक काम किया।

लिहाजा जिन सरकारी विभागों में इतनी तेजी से काम होता है, वहाँ सरकारी नियमों को हमेशा लागू करने का प्रयत्न अनुचित है। यदि ऐसा किया गया तो इससे कर्मचारियों के काम पर असर पड़ेगा और उनके हौसले भी कम होंगे।

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