अश्वगन्धा (असगंध) : अमृततुल्य जड़ी

Webdunia
शीतकाल में सेवन करने योग्य पौष्टिक, बलवीर्यवर्द्धक तथा स्नायविक संस्थान को बल देने के लिए सर्वाधिक उपयोगी एवं लाभप्रद सिद्ध होने वाली जड़ी-बूटियों में से एक जड़ी है अश्वगन्धा। यह तासीर में गरम और उष्णवीर्य है, इसलिए शीतकाल में इसका सेवन करना निर्विघ्न और निरापद रहता है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- अश्वगन्धा। हिन्दी- असगन्ध। मराठी- आसगन्ध। गुजराती- आसंध। बंगाली- अश्वगन्ध। कन्नड़- आसान्दु, अश्वगन्धी। तेलुगू- पिल्ली आंगा, पनेरु। तमिल- आम कुलांग। फारसी- मेहेमत वररी। इंग्लिश- विण्टर चेरी। लैटिन- विथेनिया सोमनीफेरा।

रासायनिक संघटन : अश्वगंधा की जड़ से क्यूसिओहायग्रीन, एनाहायग्रीन, ट्रॉपीन, एनाफेरीन आदि 13 क्षाराभ निकाले गए हैं। कुल क्षाराभ 0.13-0.31 प्रतिशत होता है। इसके अतिरिक्त अश्वगंधा की जड़ में ग्लाइकोसाइड, विटानिआल, अम्ल, स्टार्च, शर्करा व एमिनो एसिड आदि पाए जाते हैं।

गुण : असगन्ध बलवर्द्धक, रसायन, कड़वी, गरम, वीर्यवर्द्धक तथा वायु, कफ, श्वेतकुष्ठ, शोथ तथा क्षय, इन सबको हरने वाली है। यह हलकी, स्निग्ध, तिक्त, कटु व मधुर रसयुक्त, विपाक में मधुर और उष्णवीर्य है। अत्यन्त शुक्रल अर्थात शुक्र उत्पन्न करने वाली है।

मात्रा : अश्वगंधा के चूर्ण को आधे से एक चम्मच (3 से 6 ग्राम) और इसके काढ़े की मात्रा 4-4 चम्मच सुबह-शाम लेना चाहिए।

परिचय : यह वस्तुतः जड़ी ही है, क्योंकि इसके पौधे की जड़ ही प्रयोग में ली जाती है। यूं तो यह भारत में अनेक प्रान्तों में उत्पन्न होती है, लेकिन पश्चिमोत्तर भारत, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब और हिमालय में 5000 फीट की ऊंचाई तक पाई जाती है। इसकी सर्वाधिक उपज मध्यप्रदेश के मन्दसौर जिले में होती है। इसके बीज वर्षाकाल में बोए जाते हैं और शीतकाल में फसल आ जाती है। इसकी कच्ची जड़ में अश्व (घोड़े) के समान गन्ध आती है इसलिए इसे अश्वगन्धा कहा जाता है। इसका विधिवत ढंग से पूरे शीतकाल सेवन करने पर घोड़े की तरह शक्ति, पुष्टि और स्फूर्ति उपलब्ध होती है, इससे भी इसका नाम सार्थक सिद्ध होता है। यह जड़ी पंसारियों की दुकान पर आसानी से हर गांव-शहर में मिल जाती है।

उपयोग : आयुर्वेद ने अश्वगन्धा का उपयोग वीर्यवद्धर्क, मांसवर्द्धक, स्तन्यवर्द्धक, गर्भधारण में सहायक, वातरोग नाशक, शूल नाशक तथा यौनशक्ति वर्द्धक माना है।

शिशुओं के लिए : रोगमुक्त होने के बाद शिशु के शरीर को सबल, पुष्ट और सुडौल बनाने के लिए असगन्ध का प्रयोग उत्तम है। असगन्ध का चूर्ण 1-2 ग्राम मात्रा में लेकर एक कप दूध में डालकर उबालें, फिर इसमें 8-10 बूंद घी डालकर उतार लें। ठण्डा करके शिशु को पिलाएं। 6-7 वर्ष से 10-12 वर्ष के बालकों के लिए मात्रा दोगुनी करके यह प्रयोग 3-4 माह तक कराएं। यह बना बनाया भी बाजार में मिलता है।

स्तनों में दूध वृद्धि : असगन्ध, शतावर, विदारीकन्द और मुलहठी, सबका महीन पिसा हुआ चूर्ण समान मात्रा में लेकर मिला लें। एक चम्मच चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करते रहने से कुछ दिनों में, स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ जाती है।

शुक्र में वृद्धि व पुष्टि : युवा एवं प्रौढ़, अविवाहित एवं विवाहित पुरुषों को वीर्य वृद्धि, वीर्य पुष्टि, शरीर पुष्टि, शक्ति और चुस्ती-फुर्ती के लिए कम से कम 3 माह तक यह नुस्खा लेना चाहिए- एक चम्मच असगन्ध चूर्ण महीन पिसा हुआ, आधा चम्मच शुद्ध घृत और घृत से तिगुना शहद, तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोने से पहले चाटकर मीठा दूध पीना चाहिए। यह प्रयोग पूरे शीतकाल के दिनों में तो अवश्य ही करना चाहिए। दुबले-पतले, पिचके गाल, धंसी हुई आंखों वाले युवक-युवतियों के लिए यह नुस्खा एक वरदान है। अविकसित स्तनों वाली युवतियों को यह नुस्खा 3-4 माह तक सेवन करना चाहिए। उनके स्तन सुविकसित और सुडौल हो जाएंगे।

स्तम्भन शक्ति : जिन नवविवाहित युवकों अथवा प्रौढ़ विवाहित पुरुषों को शीघ्रपतन की शिकायत हो, उन्हें यह नुस्खा 3-4 माह तक लगातार सेवन करते रहना चाहिए। असगन्ध, विधारा, तालमखाना, मुलहठी और मिश्री, सब 100-100 ग्राम खूब कूट-पीसकर कपड़छान महीन चूर्ण करके मिला लें और तीन बार छानकर शीशी में भरकर एयरटाइट ढक्कन लगाएं। यह चूर्ण एक चम्मच, जरा से घी या शहद में मिलाकर चाट लें। यदि घी लें तो कुनकुना गर्म दूध पी लें और शहद के साथ लें तो दूध ठंडा करके ही पिएं। यह एक बहुत अच्छा और परीक्षित नुस्खा है।

शुक्रक्षीणता : असगन्ध चूर्ण 1 चम्मच, पिसी मिश्री आधा चम्मच, पिप्पली चूर्ण पाव चम्मच, आधा चम्मच घी और डेढ़ चम्मच शहद सबको मिलाकर चाट लें और ऊपर से, असगन्ध चूर्ण एक चम्मच व घी एक चम्मच डालकर औटाया हुआ एक गिलास मीठा दूध बिलकुल ठंडा करके ही पिएं। यह उपयोग सिर्फ सुबह खाली पेट 3-4 माह तक करें। शुक्रक्षीणता दूर हो जाएगी।

रसायन रूप में : असगन्ध का सेवन, रसायन के रूप में, स्त्री-पुरुष और बच्चे, जवान-बूढ़े सभी कर सकते हैं। शीतकाल के दिनों में इस नुस्खे का सेवन अवश्य करना चाहिए। नुस्खा इस प्रकार है- असगन्ध का चूर्ण 10 ग्राम, गिलोय चूर्ण 5 ग्राम और गिलोय सत्व 1 ग्राम, तीनों को थोड़े से घी में मिलाकर चाट लें और ऊपर से मीठा कुनकुना गर्म दूध पी लें। यह प्रयोग सुबह खाली पेट पूरे शीतकाल तक करें।

गर्भवती की निर्बलता : गर्भवती स्त्री का शरीर कमजोर हो तो सुबह एक कप पानी में 10 ग्राम असगन्ध चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी पाव कप (चौथाई भाग) बचे तब छानकर एक चम्मच शकर या पिसी मिश्री डालकर पी लें। यह प्रयोग 2-3 माह तक लगातार करने से गर्भवती और गर्भ दोनों को ही बल-पुष्टि प्राप्त होती है।

श्वेत प्रदर : श्वेत प्रदर से ग्रस्त महिला को सुबह-शाम असगन्ध चूर्ण और पिसी मिश्री एक-एक चम्मच मिलाकर कुनकुने गर्म मीठे दूध के साथ 3-4 माह तक सेवन करना चाहिए।

वात व्याधि : अपच और कब्ज होने पर वात कुपित होता है। वात प्रकोप का शमन करने में 'अश्वगन्धादि घृत' का प्रयोग बहुत गुणकारी सिद्ध होता है। एक-एक चम्मच घृत सुबह-शाम दूध में डालकर पीना चाहिए या असगन्ध, शतावर व मिश्री-समान मात्रा में लेकर पीस लें और मिला लें।

प्रजनन शक्ति : डिम्ब की निर्बलता से कुछ स्त्रियां गर्भ धारण नहीं कर पातीं। ऐसी स्त्रियों को मासिक ऋतुस्राव शुरू होने के 3 दिन बाद से यह नुस्खा 7 दिन तक सेवन करना चाहिए- दस ग्राम असगन्ध जरा से घी में, मन्दी आंच पर अच्छे से सेक लें, फिर एक गिलास उबलते दूध में डालकर 15-20 मिनट तक उबालें। इसके बाद उतार लें। इसमें मिश्री मिलाकर सुबह के समय खाली पेट कुनकुना गर्म पी लें। इस प्रयोग को लाभ होने तक प्रति मास 7 दिन तक इसी ढंग से सेवन करते रहना चाहिए।

आधासीसी : असगन्ध की ताजी जड़ लें। ताजी जड़ न मिले तो सूखी जड़ को 1-2 घंटे पानी में डालकर रखें। चन्दन की तरह इस जड़ को पत्थर पर घिसकर माथे पर लेप करें। सुबह शाम असगन्ध का चूर्ण 1-1 चम्मच दूध के साथ लें। आधासीसी का दर्द दूर हो जाएगा।

आयुर्वेदिक योग

अश्वगन्धादि चूर्ण : असगन्ध और विधारा के चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर यह योग बनाया जाता है। इस चूर्ण को 1-1 चम्मच सुबह-शाम कुनकुने गर्म मीठे दूध के साथ 3-4 माह तक सेवन करना चाहिए। शीतकाल के दिनों में तो इसका सेवन अवश्य करना चाहिए। इसके सेवन से स्नायविक दौर्बल्य, दिमागी कमजोरी, थकावट, शारीरिक निर्बलता, दुबलापन, वात प्रकोप, यौन शक्ति की कमी आदि व्याधियां नष्ट होती हैं। इसे किसी भी आयु के स्त्री-पुरुष सेवन कर सकते हैं। यह इसी नाम से बाजार में मिलता है।

अश्वगन्धादि गुग्गुल : यह योग आमवात की शिकायत दूर करता है। इसकी 2-2 गोली सुबह-शाम, पानी के साथ लेना चाहिए। इसके सेवन से उदरवात, उदरशूल, उदरकृमि और मलावरोध आदि व्याधियां नष्ट होती हैं।

अश्वगन्धारिष्ट : यह सुबह-शाम भोजन के बाद, आधा कप पानी में 2-2 चम्मच अश्वगन्धारिष्ट डालकर पीना चाहिए। यह स्त्री-पुरुष, युवा-प्रौढ़-वृद्ध सबके लिए एक जनरल टॉनिक का काम बखूबी करता है। शरीर को पुष्ट और सबल बनाने के लिए यह उत्तम योग है

अश्वगन्धादि योग : असगन्ध और विधारा 80-80 ग्राम, बड़ी इलायची का चूर्ण और कुक्कुटाण्डत्वक भस्म 20-20 ग्राम, वंग भस्म 10 ग्राम और पिसी मिश्री 100 ग्राम- सबको महीन चूर्ण कर मिला लें और शीशी में भर लें। इसे आधा-आधा चम्मच (लगभग 3-4 ग्राम) दूध के साथ लें। यह चूर्ण स्त्रियों का परम मित्र योग है जो श्वेत प्रदर रोग दूर कर स्त्रियों के शरीर को सबल, सुडौल और पुष्ट बनाता है। यह बना बनाया बाजार में नहीं मिलता इसलिए बनाएं और सेवन कर लाभ उठाएं।

दादी-नानी की भोजन की ये 8 आदतें सेहत के लिए हैं बहुत लाभकारी

ये है सनबर्न का अचूक आयुर्वेदिक इलाज

गर्मियों में ट्राई करें ये 5 लिपस्टिक शेड्स, हर इंडियन स्किन टोन पर लगेंगे खूबसूरत

गर्मियों में हाथों को खूबसूरत बनाएंगे ये 5 तरह के नेल आर्ट

आखिर भारत कैसे बना धार्मिक अल्पसंख्यकों का सुरक्षित ठिकाना

कैसे बनाएं बीटरूट का स्वादिष्ट चीला, नोट करें रेसिपी

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

घर में बनाएं केमिकल फ्री ब्लश

बच्चे के शरीर में है पोषक तत्वों की कमी अपनाएं ये 3 टिप्स

सुकून की नींद लेने के लिए कपल्‍स अपना रहे हैं स्‍लीप डिवोर्स ट्रेंड