पांडव/भीमसेनी ग्यारस का महत्व

निर्जला एकादशी का पौराणिक आख्यान

Webdunia
भारतीय ऋषि और मनीषी मात्र तपस्वी एवं त्यागी ही नहीं थे, उनके कुछ प्रयोगों, व्रतों, उपवासों, अनुष्ठानों के विधि-विधान एवं निर्देशों से तो प्रतीत होता है कि वे बहुत ऊंचे दर्जे के मनस्विद, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विचारक भी थे। अब ज्येष्ठ मास (मई-जून) में जब गर्मी अपने चरम पर हो, ऐसे में निर्जला एकादशी का नियम-निर्देश केवल संयोग नहीं हो सकता।
FILE

यदि हम ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में एक दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक बिना पानी के उपवास करें तो बिना बताए ही हमें जल की आवश्यकता, अपरिहार्यता, विशेषता पता लग जाएगी- जीवन बिना भोजन, वस्त्र के कई दिन संभाला जा सकता है, परंतु जल और वायु के बगैर नहीं।

शायद उन दूरदर्शी महापुरुषों को काल के साथ ही शुद्ध पेयजल के भीषण अभाव और त्रासदी का भी अनुमान होगा ही इसीलिए केवल प्रवचनों, वक्तव्यों से जल की महत्ता बताने के बजाए उन्होंने उसे व्रत श्रेष्ठ एकादशी जैसे सर्वकालिक सर्वजन हिताय व्रतोपवास से जोड़ दिया।

निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्व और आख्यान भी कम रोचक नहीं है।

जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊंगा?

पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा - नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे।

इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है।

देवदेव ऋषीकेश संसारार्णवतारक
उद्कुम्भ प्रदानेन नय मां परमां गतिम।

तो उसे इस दान-पुण्य का कई गुना फल प्राप्त होता है और पेयजल के संरक्षण, संवर्द्धन एवं सदुपयोग का संदेश भी।

वेबदुनिया पर पढ़ें

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Vrishabha Sankranti 2024: सूर्य के वृषभ राशि में प्रवेश से क्या होगा 12 राशियों पर इसका प्रभाव

Khatu Syam Baba : श्याम बाबा को क्यों कहते हैं- 'हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा'

Maa lakshmi : मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तुलसी पर चढ़ाएं ये 5 चीज़

Shukra Gochar : शुक्र करेंगे अपनी ही राशि में प्रवेश, 5 राशियों के लोग होने वाले हैं मालामाल

Guru Gochar 2025 : 3 गुना अतिचारी हुए बृहस्पति, 3 राशियों पर छा जाएंगे संकट के बादल

सभी देखें

धर्म संसार

Shani sade sati: कब और किस समय शुरू होगी इन 3 राशियों पर शनि की साढ़े साती?

Buddha purnima 2024: बुद्ध पूर्णिमा कब है, जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

Chankya niti : करोड़पति बना देगा इन 4 चीजों का त्याग, जीवन भर सफलता चूमेगी कदम

Lakshmi prapti ke upay: माता लक्ष्मी को करना है प्रसन्न तो घर को इस तरह सजाकर रखें

Shukra Gochar : शुक्र करेंगे अपनी ही राशि में प्रवेश, 5 राशियों के लोग होने वाले हैं मालामाल