पतित पावन माँ नर्मदा

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- इकबालसिंह खेड़ ा

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स्कंद पुराण में कहा गया है कि 'त्रिभिः सारस्वतं पुण्यं समाहेन तु यामुनम्‌। साद्यः पुनाति गांगेयं दर्शनादेव नर्मदा॥' यानी संसार में सरस्वती का जल 3 दिन में, यमुना का जल 7 दिन में तथा गंगा मात्र स्नान से जीव को पवित्र कर देती है, किंतु नर्मदा जल के दर्शन मात्र से जीव सभी पापों से मुक्त हो जाता है। पतित पावनी माँ नर्मदा की महिमा अनंत है। पुण्यसलिला माँ नर्मदा, माता गंगा से भी प्राचीन है।

स्कंद पुराण में कहा गया है कि 'गंगा कनखले पुण्या कुरुक्षेत्रे सरस्वती। ग्रामे वा यदि वाऽरण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा॥' यानी गंगा कनखल (हरिद्वार) में पुण्य देने वाली है। पश्चिम में सरस्वती पुण्यदा है। दक्षिण में गोदावरी पुण्यवती है और नर्मदा सब स्थानों में पुण्यवती और पूजनीय है। भारत में वैसे तो अनेक पुण्यप्रदाता नदियाँ हैं पर उनका स्थान विशेष पर महत्व है। उदाहरणार्थ गंगा हरिद्वार, प्रयाग, काशी और गंगासागर में पुण्यदेने वाली मानी जाती है।

सरस्वती नदी तो अब लोप हो चुकी है। गोदावरी का नासिक में महत्वपूर्ण तीर्थ है। लेकिन नर्मदा पग-पग पर पूजनीय है। नर्मदा की उत्पत्ति के बारे में शास्त्र कहते हैं कि भगवान शिव और शक्तिस्वरूपा माता पार्वती के बीच हास-परिहास से उत्पन्न पसीने की बूँदों से माता नर्मदा का जन्म हुआ। भगवान शिव की इला नामक कला ही नर्मदा है।

आदि सतयुग में शिवजी समस्त प्राणियों से अदृश्य होकर 10 हजार वर्षों तक ऋष्य पर्वत विंध्याचल पर तपस्या करते रहे। उसी समय शिव-पार्वती परिहास से उत्पन्न पसीने की बूँदों से एक परम सुंदरी कन्या उत्पन्न हो गई। उस कन्या ने सतयुग में 10 हजार वर्ष तक भगवान शंकर का तप किया। भगवान शंकर ने तपस्या से प्रसन्न होकर कन्या को दर्शन देकर वर माँगने हेतु कहा। कन्या (श्री नर्मदाजी) ने हाथ जोड़कर भगवान शंकर से वर माँगते हुए कहा- 'मैं प्रलयकाल में भी अक्षय बनी रहूँ तथा मुझमें स्नान करने से सभी श्रद्धालु पापों से मुक्त हो जाएँ।

मैं संसार में दक्षिणगंगा के नाम से देवताओं से पूजित होऊँ। पृथ्वी के सभी तीर्थों के स्नान का जो फल होता है वह भक्तिपूर्वक मेरे दर्शनमात्र से हो जाए। ब्रह्महत्या जैसे पापी भी मुझमें स्नान करने से पापमुक्त हो जाएँ।' भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर कहा- 'हे कल्याणी पुत्री! जैसा वरदान तूने माँगा है, वैसा ही होगा और सभी देवताओं सहित मैं भी तुम्हारे तट पर निवास करूँगा। इसी कारण भारतवर्ष में केवल नर्मदा की ही प्रदक्षिणा की जाती है।'

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मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के अमरकंटक क्षेत्र से नर्मदाजी प्रकट हुईं। यह स्थान जहाँ नर्मदाजी का जन्म हुआ, वहाँ आमों के वृक्षों के नीचे एक छोटे से कुंड में से नर्मदाजी का जल गौमुखी धार होकर प्रकट हुआ है। यह कुछ दूरी पर जाकर एक कुंड में विलीन हो जाता है, जिसे माई की बगिया के नाम से जाना जाता है। वहाँ से 5-6 कि.मी. दूर अमरकंटक में एक कुंड से कपिलधारा के रूप में द्रुतगति से नर्मदा प्रवाहित होती हैं।

माँ नर्मदा पौराणिक दृष्टि से तो सदैव पूजनीय हैं और नर्मदा में पाए जाने वाले पत्थर-कंकर का भी भक्तगण शंकर के रूप में ले जाकर श्रद्धा के साथ पूजन-अभिषेक करते हैं, इसीलिए तो शास्त्रों में कहा गया है कि 'नर्मदा के जितने कंकर, उतने सब शंकर'। नर्मदाजी के पूजन-अभिषेक के साथ-साथ इसकी प्रदक्षिणा भी अपना विशेष महत्व रखती है। हजारों भक्तगण परिवार के सुखों के लिए नर्मदाजी से माँगी गई मनौती की पूर्णता हेतु इसकी 1680 कि.मी. प्रदक्षिणा 3 वर्ष 3 माह 13 दिन में पैदल चलकर व संत रूप धारण कर पूर्ण करते हैं।

माँ नर्मदा के नाम से परिक्रमावासी प्रतिदिन 5 गृहस्थों से भिक्षावृत्ति कर प्रदक्षिणा करते हैं। नर्मदाजी की 113 सहायक नदियाँ हैं। इसके मार्ग में 5 जल प्रपात, 25 पक्के घाट हैं। ओंकारेश्वर माँ नर्मदाजी का नार्थ कमल (मध्य) भाग है। 12 ज्योतिर्लिंगों में एक ओंकार-अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा किनारे ही विराजमान है।

रेवा कुंड : मांडूगढ़ की रानी रूपमती तो नर्मदाजी के दर्शन के बिना भोजन नहीं करती थी। इसलिए राजा ने रानी रूपमती का महल ऊँचा बनवाकर नर्मदा-दर्शन की व्यवस्था कराई। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर वहाँ एक कुंड में प्रकट होकर माँ ने रानी की इच्छा पूर्ण की। सैकड़ों वर्षों के बाद भी इस रेवा कुंड में नर्मदाजी विराजमान हैं।
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