सिंधी समुदाय का 'महालक्ष्मी पर्व'

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- विनिता मोटलानी

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तीज-त्योहार किसी भी धर्म व संस्कृति की पहचान व धरोहर होते हैं। हमारे देश में विभिन्न धर्म व समुदाय के लोग एकजुट होकर रहते हैं। यहाँ के लोग सभी धर्मों के त्योहार एकजुट होकर मनाते हैं। यूँ तो श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त दान करने की परंपरा है किंतु आठवें श्राद्ध के दिन सिंधी समुदाय के लोग 'महालक्ष्मी पर्व' को मनाते है। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाता है।

जैसा कि माना जाता है कि हर त्योहार को मनाने के ‍पीछे कोई न कोई किवंदति होती है तो महालक्ष्मी पर्व से जुड़ी हुई एक कथा है-

एक राजा था। उसे किसी ने पीला धागा जिसे 'सगिड़ा' कहा जाता है, दिया था। राजा ने वह धागा ‍अपनी रानी को दिया और कहा कि इसे बाँध देना। रानी ने वह धागा फेंक दिया। उस धागे को नौकरानी बानी ने उठाया और माथे से लगाकर बाँध दिया। रानी ने इस तरह से उसका अनादर किया और बानी‍ ने उसको आदर सहित बाँध लिया। इससे बानी की किस्मत खुल गई वह नौकरानी से महारानी बन गई। उसके पास सारे धन-वैभव आ गए। वह बहुत‍ सुख से रहने लगी।

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इसके बाद तो मानों रानी का भाग्य ही फूट गया। वह घूमते-घूमते बगीचे में गई तो सारे पेड़-पौधे सूख गए। पास में खड़ी गाय ने दूध ना बंद कर दिया। नदी किनारे गई तो नदी सूख गई। और तो और उस पर हार चुराने का आरोप भी लग गया। तब राजा ने उसको महल से निकाल दिया। अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए रानी दिन बीता रही‍ थी तभी एक साधु को उस पर दया आ गई और वह उसे अपनी कुटिया में ले आए।

एक दिन राजा का कोई सेवक वहाँ से गुजरा तो उसने रानी को देखा। परंतु उसकी वेशभूषा की वजह से वह सोचने लगा कि यह तो रानी लग रही है। उसे दुविधा में देख रानी बोली 'हाँ! तुम सही पहचान रहे हो मैं रानी ही हूँ। उसने जाकर राजा को खबर दी। तब राजा स्वयं उसे लेने आए परंतु साधु ने कहा अभी आप जाओ, मैं स्वयं इसे भेज दूँगा। तब साधु ने रानी को दूध और शक्कर दिया, जिसे सिंधी लोग 'अक्खा' कहते हैं और कहाँ जाते समय रास्ते में जो-जो आए उसमें डालती जाना अर कभी भी लक्ष्मीजी के सगिड़े का अनादर मत करना। रानी ने ऐसा ही किया तब क्रमश: बाग हरा-भरा हो गया, गाय दूध देने लगी, नदी पानी से पूर हो गई और गुम हुआ हार भी मिल गया। इस तरह रानी का भाग्य पुन: जाग उठा। ऐसे ही लक्ष्मीज‍ी अपने सभी भक्तों का भला करके उन्हें धन--धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं।

इस प्रकार घर के सभी सदस्यों को 'सगिड़ा' पहना कर अष्टमी के उसे मीठी पूड़ी पर लपेटकर ब्राह्मण के यहाँ पूजा करके फिर अक्खा डालकर दिया जाता है। इस दिन तरह-तरह के मीठे पकवान बनाए जाते है, जिनका लक्ष्मीजी को भोग लगाकर बाँटकर खाया जाता है। इनमें प्रमुख है सतपुड़ा, सिवइयाँ, मीठे गच, मीठे चावल, खीर ‍आदि है।

इस तरह यह त्योहार संदेश देता है कि धन का घमंड कभी नहीं करना चाहिए। जो भी लक्ष्मीजी का अनादर करता है वे रूष्ट होकर चली जाती है, जो नम्रता और आदर से लक्ष्मी का आह्‍्‍वान करता है उनके यहाँ लक्ष्मी सदा निवास करती है।

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