वन्य पशुओं की शामत, शौक के लिए जंगलों में होगा 'शिकार'

Webdunia
मंगलवार, 17 जनवरी 2012 (12:59 IST)
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घटते जंगलों और लुप्त होते वन्य पशुओं की काली खबरों के बावजूद मध्यप्रदेश सरकार राजे-रजवाड़ों और रईसों के खूनी मनोरंजन यानी शिकार को कानूनी जामा पहनाने जा रही है। 'शिकार के शौकीनों' पर मेहरबान मध्यप्रदेश का वन विभाग जल्द ही वन क्षेत्र में शिकार की सशर्त अनुमति देने जा रहा है। हालांकि इस निर्णय पर सवाल उठना शुरू हो गए हैं।



* पशुप्रेमी और पर्यावरणविद् इस निर्णय पर कड़ी आपत्ति उठा रहे हैं।
* पिछले वर्ष हुई बाघ गणना में म.प्र. को मिला टाइगर स्टेट का दर्जा ही संकट में पड़ गया था।
* प्राकृतिक भोजन श्रंखला के बिगड़ने का खतरा है जिससे मानव-पशु मुठभेड़ बढ़ेंगी।

वनमंत्री से खास बातचीत की नईदुनिया के बृजेश शर्मा ने...
मध्य प्रदेश के वनमंत्री सरताज सिंह ने 'नईदुनिया' से विशेष बातचीत में कहा कि वन पशुओं की चार श्रेणियां निर्धारित की गई हैं। नीलगाय और जंगली सूअर की प्रजाति को छोड़कर दीगर केटेगिरी के लिए केन्द्र सरकार से अनुमति लेकर ही काम किए जा सकते हैं। जबकि कुछ केटेगिरी में हमने शिकार में रिलेक्स देने का निर्णय लिया है।

इस केटेगिरी में जंगली सूअर और नीलगाय प्रजाति आती है। उन्होने कहा कि शिकार की अनुमति पहले भी थी लेकिन नियम और कानून कठिन थे। जिसके कारण एक भी जानवर नहीं मारे गए। अब हमनें शिकार में सरलीकरण का कार्य किया है, लॉ विभाग से अनुमति भी आ गई है। जिससे अब सूअर और नीलगाय के शिकार के लिए अब अनुमति मिल सकेगी। प्रदेश सरकार, शिकार करने की अनुमति देने की प्रक्रिया का सरलीकरण कर रही है।

प्रदेश में बढ़े बाघ शावक : जब वनमंत्री से पूछा गया कि प्रदेश के अभ्यारण्य और पार्कों में बाघों की संख्या कम हो रही है, इसके लिए कोई और कार्ययोजना है। तो उनका कहना है कि प्रदेश में बाघों की संख्या कम नहीं हो रही है बल्कि शावक बढ़ रहे हैं। हमने अपनी आपत्ति भी सर्वेक्षण के दौरान दर्ज कराई थी कि 100 बीट छूट गई हैं, जहां संख्या नहीं मिल सकी है। जिस पर हमें अनुमति तो मिली लेकिन बाद में यह कहा गया कि अब चूंकि आंकड़े पूरे हो चुके हैं, इसलिए उन्हें अगली गणना में शामिल किया जाएगा।

सीमित हों पर्यटक : अभ्यारण्य-राष्ट्रीय पार्कों से पर्यटकों से प्राप्त आय पर वाणिज्यकर विभाग मनोरंजन कर लगा रहा है, उसे आय में से 20 प्रश कर चाहिए। सवाल पर वनमंत्री ने कहा कि डिपाटमेंटल लड़ाई है, उनका सोच भी सही हो सकता है, इसमें कर लगना चाहिए लेकिन हमारा पक्ष है कि इस पर टैक्स नहीं लगना चाहिए। हम पर्यटकों की संख्या को सीमित रखना चाहते हैं, पार्कों में जो रिसोर्ट बने हैं उनमें एक रात के लिए लोग 50 हजार रुपए देने तैयार हो जाते हैं और थोड़ा-बहुत शुल्क बढ़ा देने में मैं समझता हूं कि इसमें कोई आफत नहीं हो सकती। जबकि वहां खर्च निकालना भी मुश्किल होता है। हमारे सारे प्रयास वाइल्ड लाइफ को बचाने के लिए हैं। स्कूली बच्चों को पार्क में घुमाने के लिए चार गाड़ियों की खरीदी की गई है।

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