मेरी पसंद, मेरा जीवनसाथी

ये मेरी लाइफ है

गायत्री शर्मा
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' विवाह' एक ऐसा बंधन होता है। जो एक बार जुड़ता है तो ताउम्र तक रिश्तों को बाँधे रखता है।

सहजता से लोग इस बंधन में बँध जाते हैं, पर जब निभाने की बारी आती है तब कदम पीछे हट जाते हैं। अक्सर जल्दबाजी में किए गए विवाह में ऐसे मामले सामने आते हैं।

पुराने वक्त में हमारे बड़े-बुजुर्ग बच्चों के विवाह संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय लेते थे। उनकी मर्जी से विवाह होते थे और सामाजिक रुसवाई के डर से निभाए जाते थे। न तो लड़के को और न ही लड़की को अपना जीवनसाथी चुनने की आजादी रहती थी।

बदल गया है ज़माना :-
अब वक्त ने अपनी करवट बदली है तथा समाज ने अपनी सोच। अब विवाह संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय युवाओं द्वारा लिए जाने लगे हैं। बड़े-बुजुर्ग बस मुहर के रूप में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं।

एक-दूसरे को जानना जरूरी :-
दो शरीर के एक होने से ज्यादा जरूरी दो दिलों का एक होना है। जब तक दो व्यक्ति एक-दूसरे को पूरी तरह समझ नहीं पाते, तब तक वे अच्छे दंपति नहीं बन सकते हैं। आपसी समझ व विचारधारा का मेल ही विवाह को दीर्घायु बनाता है।

एक-दूसरे को जानने के लिए यदि विवाह से पूर्व लड़का-लड़की एक-दूसरे से मिलें व विचारों को जानें तो इसमें हर्ज ही क्या है?

ये है मेरा फैसला :-
गर्मजोशी से परिपूर्ण युवा विवाह जैसे मामलों में अपने मन की न होने पर बगावत तक उतर आते हैं। बच्चों की पसंद को एक सिरे से दरकिनार करना माँ-बाप के लिए बहुत महँगा पड़ जाता है।

इस बार हो सकता है आपके बच्चे का फैसला सही हो और आपका गलत। किसी को भी इन्कार करने से पहले उसकी बात को समझना चाहिए।

आखिर विवाह करके आपके बच्चों को ही अपने जीवनसाथी का साथ निभाना है। तो क्यों न इस महत्वपूर्ण फैसले में उसकी पसंद का भी ख्‍याल रखा जाए।

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