कौन हैं साँई अवतार!

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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शिरडी के साँई बाबा के बारे में कहा जाता है कि वे किस धर्म या जाति के थे यह किसी को भी पता नहीं। वे मस्जिद में रहते थे और भजन गाते थे। भिक्षुओं की तरह भिक्षाटन करते और धूनी रमाते थे।

लोगों से कहते अल्लाह मालिक है, भगवान मालिक है। उनके चमत्कारों की चर्चा दूर-दूर तक फैलने के कारण उनके आसपास उनके भक्तों की भीड़ लगी रहती थी। ऐसी मान्यता है कि 1918 में साँई बाबा ने समाधि लेने के पूर्व कहा था कि वे जल्द ही फिर से जन्म लेंगे अर्थात अवतार लेंगे, लेकिन उनके यह कहने के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं।

समय-समय पर कई लोगों ने खुद को साँई बाबा बताया और अपना एक साम्राज्य खड़ा कर लिया क्योंकि साँई की प्रसिद्धि ही ऐसी है कि कोई भी साँई नाम की ओर ‍खिंचा चला जाता है। साँई कहने मात्र से ही कष्ट दूर हो जाते हैं, लेकिन हम निम्नलिखित कथित अवतारों को साँई मानें या नहीं, यह फैसला तो आपको ही करना है।

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सत्य साँई बाबा : सत्य साँई बाबा का जन्म 23 नवम्बर 1926 को आंध्रप्रदेश के पुट्टपर्ती गाँव में हुआ। जन्म नाम सत्यनारायण राजू। सत्यनारायण राजू ने ही सर्वप्रथम 1940 को स्वयं को सत्य साँई बाबा घोषित किया। बड़े-बड़े झबरीले बाल और शांत स्वभाव के राजू के भक्तों की संख्या लाखों में है। देशी-विदेशी सभी तरह के भक्त प्रशांति निलयम में इकट्ठा होकर बाबा का दर्शन लाभ लेते हैं। इनके चरणों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्‍यमंत्री शीश नवाते मिल जाएँगे।

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साँई दास बाबा : 13 अक्टूम्बर 1945 को श्रीकांत मिश्रा का जन्म हुआ। ये बैतूल के रहने वाले हैं। इनके भी बाल सत्य साँई बाबा जैसे झबरीले हैं। ये भी मोटे-तगड़े लेकिन शांत स्वभाव के हैं। लोग इन्हें भी साँई का अवतार कहते हैं लेकिन इन्होंने स्वयं को साँई का दास मान रखा है।

अनिरुद्ध बापू : कहते हैं कि साँई बाबा ने समाधि लेने के पूर्व अपनी कुछ वस्तुएँ अपने प्रिय शिष्य को दी थी और कहा था कि मैं जब फिर से जन्म लूँगा तो यह वस्तुएँ लेने आऊँगा। तब से ही ये वस्तुएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुरक्षित रखी गईं, फिर एक दिन एक व्यक्ति ने आकर कहा मेरी वस्तुएँ मुझे दो और उक्त वस्तुओं के उसने नाम भी बताए। वह व्यक्ति ही साँई हैं ऐसा अनिरुद्ध के भक्त कहते हैं।

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अनिरुद्ध जोशी का जन्म 18 नवंबर 1956 में महाराष्ट्र के मुंबई में त्रिपुरारी पूर्णिमा के दिन हुआ। डॉ. अनिरुद्ध जोशी ने भी स्वयं को साँई घोषित कर रखा है। उनके भक्त उन्हें अनिरुद्ध बापू या साँई कहते हैं। ये उक्त साँई जैसा चोगा नहीं पहनते बल्कि सूट-बूट में रहते हैं। इनके भक्त शनिवार के दिन इनकी आराधना करते हैं। उन्होंने अपने नाम का मंत्र भी निकाला है।
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