सुखी रहने के लिए लें धर्म की शरण!

धर्म के मर्म को समझना जरूरी

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दुनिया का हर व्यक्ति केवल सुख ही चाहता है। दुख से सब दूर भागते हैं। यदि हमें सुखी रहना है तो सबसे पहले धर्म से जुड़ना होगा। किसी के मन को दुखाना भी पाप है। भागदौड़ भरी जिंदगी में आज हर व्यक्ति विवेक नहीं रख पाता है। इसलिए पाप बंध को बांधता चला जाता है और पाप बंधने के कारण सुखी नहीं हो पाता।

इसलिए सुखी रहने के लिए धर्म की शरण में जाकर धर्म के मर्म को समझना होगा। धर्म की शुरुआत व्यक्ति को सबसे पहले अपने घर से ही करना चाहिए। यदि हम विवेकपूर्ण जीवन जिएंगे तो पाप से बच पाएंगे और जो पाप से बच पाएगा, वहीं सही मायनों में धर्म से भी जुड़ पाएगा। मर्यादाओं को भंग करना पाप की श्रेणी में आता है। इसी तरह किसी के मन को दुखाना भी पाप है।

हमें अपने जीवन काल में सुख प्राप्ति के लिए जिनवाणी को आचरण में उतारना होगा, क्योंकि जिनवाणी अमृत रूप है। हमारा सौभाग्य है कि हमें जिनवाणी श्रवण का सुअवसर मिला है। जीवन में यदि सुख प्राप्त करना है तो जिनवाणी को आचरण में उतारना होगा।

धर्म आधारित जीवन जीते हुए ही मनुष्य वैराग्य की ओर अग्रसर हो सकता है। संपूर्ण जीवन लोभ, मोह, मद, मान और माया में ही व्यतीत हो जाता है और प्रभु आराधना का समय ही नहीं मिल पाता तथा व्यक्ति संसार से प्रस्थान भी कर जाता है। संसार में रहते हुए वैराग्य के प्रसंग जीवन में आते हैं। फिर भी विरक्ति नहीं होती। इसलिए निरंतर साधना व स्वाध्याय करते रहना चाहिए।

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सुखी और सफल जीवन के लिए भौतिक सुख नहीं, आध्यात्मिक सुख ज्यादा जरूरी है, जो वैराग्य से ही प्राप्त हो सकता है।

संसार के सभी जीव सुख चाहते हैं। सभी लोग सुख प्राप्त करने के लिए ही पुरुषार्थ करते हैं, लेकिन सच्चा सुख कहां है, इसका हमें ध्यान नहीं है। जो जीवात्मा अरिहंत परमात्मा की वाणी को आत्मसात करती है, उसकी सभी प्रकार की आधि-व्याधि नष्ट हो जाती है। जिसने आत्मस्वरूप की पहचान कर ली है, वही धर्मध्यान में लीन होगा।

हमारे आर्तध्यान और रौद्रध्यान से जीवन भटक जाता है। धर्मध्यान को अपनाकर व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति में भी समभाव को धारण कर सकता है। आज धर्मध्यान की जगह धन का ध्यान ज्यादा किया जा रहा है। पैसा साधन जरूर है, पर वह साध्य नहीं है। विडंबना यह है कि आज व्यक्ति धन को ही साध्य मानने की भूल कर रहा है।

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