पवित्र हज

सच्चे मुसलमान का फर्ज...

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लेखक- अजीज असांरी, वीडियो- सबीर कासिम
एक अच्छे और सच्चे मुसलमान के लिए रोज़ा रखना, पाँच वक्त की ऩमाज पढ़ना, ज़कात देना और तमाम उम्र में कम से कम एक बार हज करना लाज़मी है।

ज़िलहज के महीने की दस तारीख़ को हज का फ़रीज़ा अदा किया जाता है। सारी दुनिया के मुसलमान इस तारीख़ से पहले ही सऊदी अरब के शहर मक्का पहुँच जाते हैं। दुनिया के प्रत्येक देश से मक्का जाने वालों के लिए मक्का से कुछ मील पहले एक सीमा तय की गई है, जिसे मीक़ात कहते हैं। दुनिया के तमाम हाजी एहराम बाँधकर ही इस सीमा में दाखिल होते हैं।

एहराम दो बग़ैर सिली सफेद चादर का लिबास होता है। एक चादर कमर से नीचे तक तहेमत की तरह लपेट ली जाती है और दूसरी बदन के ऊपरी हिस्से पर एक खास तरीक़े से ओढ़ ली जाती है। मीक़ात की सीमा जब शुरू होती है उस व़क्त ज़्यादातर हाजी हवाई जहाज़ में उड़ रहे होते हैं, इसलिए जहाँ से हवाई जहाज़ की यात्रा शुरू होती है, वहीं से एहराम बाँध लिया जाता है। एहराम बाँध लेने के बाद कई पाबंदियाँ शुरू हो जाती हैं। बाल नहीं तोड़ सकते, किसी जानदार को मार नहीं सकते, वगैरह-वगैरह।

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एहराम के बाद हज का पहला ज़रूरी काम होता है 'तवाफ़'। 'ख़ानाए काबा' के सात चक्कर लगाने पर एक तवाफ़ होता है। अपनी सेहत और ताक़त के हिसाब से हाजी तवाफ़ करते हैं ख़ाना ए काबा के चारों तरफ़।

ख़ाना ए काबा एक चौकोर आकार का बड़ा कमरानुमा है, जिस पर काले रंग का ग़िलाफ़ हमेशा रहता है। इसी के एक कोने में संगे असवद लगा हुआ है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह एक जन्नत से आया हुआ पत्थर है। तवाफ़ की शुरुआत इसी के सामने से शुरू होती है और यहीं समाप्त।

पैगम्बर हज़रत इ़ब्राहीम ने काबे की तामीर की शुरुआत की। आप ही ने ख़ुदा की राह में अपने चहेते बेटे हज़रत इस्माईल की क़ुरबानी दी। यह बात अलग है कि इस्माईल के बजाय दुम्बा क़ुरबान हुआ और हज़रत इस्माईल को कोई नुकसान नहीं पहुँचा।

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तवाफ़ के बाद हज का एक और अहम फ़रीज़ा (फर्ज) अदा करना पड़ता है, जिसे 'सई' कहते हैं। सफ़ा और मरवाह क़रीब आधा मील की दूरी पर दो पहाड़ियाँ हैं। इन दोनों पहाड़ियों के बीच में चलने और दौड़ लगाने को 'सई' कहते हैं। इसका संबंध भी हज़रत इब्राहीम और उनके परिवार से है। अपने दूध पीते बच्चे हज़रत इस्माईल और अपनी बीवी हाजरा, दोनों माँ-बेटे को रेगिस्तान की पहाड़ियों के बीच तन्हा हज़रत इब्राहीम ने छोड़ दिया था।

  ऐसा कहा जाता है कि यहाँ हज़रत इस्माईल जहाँ अपनी एड़ियाँ रगड़ रहे थे, पानी का एक चश्मा उबल पड़ा। तब से आज तक यह पानी निकल रहा है। इसे आब-ए-जमजम कहते हैं। तमाम हाजी इस पानी को अक़ीदत से पीते हैं।      
बेटा प्यास से तड़प रहा था, माँ सफ़ा-मरवाह की पहाड़ियों के बीच दौड़कर और उन पर चढ़कर इधर-उधर देख रही थीं क‍ि कोई दिख जाए तो उससे कुछ पानी लेकर अपने मासूम बच्चे को पिला दें।

ऐसा कहा जाता है कि यहाँ हज़रत इस्माईल जहाँ अपनी एड़ियाँ रगड़ रहे थे, पानी का एक चश्मा उबल पड़ा। तब से आज तक यह पानी निकल रहा है। इसे आब-ए-जमजम कहते हैं। तमाम हाजी इस पानी को अक़ीदत से पीते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह पानी दवा और गिज़ा दोनों का काम करता है। हाजी इसे ख़ूब पीते हैं और जब वापस आते हैं तो अपने साथ लेकर आते हैं और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी देते हैं।

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हज के लिए क़ुरबानी करना भी हज हाजी के लिए ज़रूरी होता है। मक्का में ऐसी कुछ जमाअतें हैं, जो हाजियों की मदद के लिए उनसे जानवर की कीमत लेकर यह काम कर देती हैं। हाजी ख़ुद भी यह काम करना चाहें तो कर सकते हैं। जो लोग हज करने नहीं जाते, वे अपने वतन में अपने घरों पर क़ुरबानी करते हैं।

हज का एक और अहम काम है शैतान को कंकरियाँ मारना। मीना और मुज़दल्फ़ा से वापसी पर हाजी कंकरियाँ उठा लाते हैं और जहाँ शैतान का स्थान है, वहाँ फेंकते हैं। इसे शैतान को कंकरियाँ मारना कहा जाता है।

३०-३५ लाख लोग हज के मौक़े पर काबा में जमा होते हैं। जिन अहम कामों का अभी ज़िक्र किया वहाँ बहुत भीड़ जमा हो जाती है। कभी-कभी दुर्घटना भी हो जाती है, इसलिए हाजियों को बहुत समझदारी और होशियारी से अपने आप की सुरक्षा करते हुए सारे काम पूरे करना चाहिए। वहाँ की सरकार हर प्रकार की सहायता करती है। फिर भी बुजुर्गों और महिलाओं का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
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