भूखी और चौबीस खंभा माता का रहस्य

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स्टोरी : अनिरुद्ध जोशी
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धर्मयात्रा की इस बार की कड़ी में हम आपको लेकर चलते हैं उज्जैन। वैसे तो उज्जैन के लगभग सभी मंदिर राजा विक्रमादित्य की जीवन गाथा से जुड़े हैं किंतु भूखी माता और चौबीस खंभा देवी का महत्व इसलिए है क्योंकि इससे जुड़ी है राजा विक्रमादित्य के राजा बनने और सिंहासन बत्तीसी की कहानी। आओ जानते हैं कि क्या है इन दोनों मंदिरों की स्थापना का रहस्य।

भूखी माता मंदिर :
इस मंदिर से राजा विक्रमादित्य के राजा बनने की किंवदंती जुड़ी हुई है। मान्यता है कि भूखी माता को प्रतिदिन एक युवक की बलि दी जाती थी। तब जवान लड़के को उज्जैन का राजा घोषित किया जाता था, उसके बाद भूखी माता उसे खा जाती थी। एक दुखी मां का विलाप देख नौजवान विक्रमादित्य ने उसे वचन दिया कि उसके बेटे की जगह वह नगर का राजा और भूखी माता का भोग बनेगा।

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राजा बनते ही विक्रमादित्य ने पूरे शहर को सुगंधित भोजन से सजाने का आदेश दिया। जगह-जगह छप्पन भोज सजा दिए गए। भूखी माता की भूख विक्रमादित्य को अपना आहार बनाने से पहले ही खत्म हो गई और उन्होंने विक्रमादित्य को प्रजापालक चक्रवर्ती सम्राट होने का आशीर्वाद दिया। तब विक्रमादित्य ने उनके सम्मान में इस मंदिर का निर्माण करवाया।

यहां के पुजारी अमरसिंह पिता बंसीलाल मालवीय ने कहा कि कई माताओं में से एक नरबलि की शौकिन थी। राजा विक्रमादित्य ने इस समस्या के निदान के लिए देवी को वचन में लेकर नदी पार उनके मंदिर की स्थापना की। वचन में उन्होंने सभी देवी शक्तियों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। कई तरह के पकवान और मिष्ठान बनाकर विक्रमादित्य ने एक भोजशाला में सजाकर रखवा दिए। तब एक तखत पर एक मेवा-मिष्ठान्न का मानव पुतला बनाकर लेटा दिया और खुद तखत के ‍नीचे छिप गए।

रात्रि में सभी देवियां उनके उस भोजन से खुश और तृप्त हो गईं। देवियां आपस में बातें करने लगीं कि यह राजा ऐसे ही हमें आमंत्रित करता रहा तो अच्छा रहेगा। जब सभी जाने लगीं तब एक देवी को जिज्ञासा हुई कि तखत पर कौन-सी चीज है जिसे छिपाकर रखा गया है।

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अन्य देवियों ने कहा कि जाने दो, कुछ भी हो हमें क्या, हम तो तृप्त हो गए हैं चलते हैं, लेकिन वह देवी नहीं मानी और तखत पर रखे उस पुतले को तोड़कर खा लिया। खुश होकर देवी ने कहा- किसने रखा यह इतना स्वादिष्ट भोजन। तब विक्रमादित्य तखत के नीचे से निकलकर सामने आ गए और उन्होंने कहा कि मैंने रखा है।

देवी ने कहा कि- मांग लो वचन, क्या मांगना है। विक्रमादित्य ने कहा कि- माता से मैं यह वचन मांगता हूं कि कृपा करके आप नदी के उस पार ही विराजमान रहें, कभी नगर में न आएं। देवी ने राजा की चतुराई पर अचरज जाहिर किया और कहा कि ठीक है, तुम्हारे वचन का पालन होगा। सभी अन्य देवियों ने इस घटना पर उक्त देवी का नाम भूखी माता रख दिया।

चौबीस खंभा देवी :
यह है उज्जैन नगर में प्रवेश करने का प्राचीन द्वार। पहले इसके आसपास परकोटा या नगर दीवाल हुआ करती थी। अब वे सभी लुप्त हो गई हैं, सिर्फ प्रवेश द्वार और उसका मंदिर ही बचा है।

अमृतलाल पुजारी ने कहा कि यहां पर दो देवियां विराजमान हैं- एक महामाया और महानाया। इसके अलावा विराजमान हैं बत्तीस पु‍तलियां। यहां पर रोज एक राजा बनता था और उससे ये प्रश्न पूछती थीं। राजा इतना घबरा जाता था कि डर के मारे मर जाता था।

जब राजा विक्रमादित्य का नंबर आया तो उन्होंने अष्टमी के दिन नगर पूजा चढ़ाई। नगर पूजा में राजा को वरदान मिला था कि बत्तीस पुतली जब तुमसे जवाब मांगेंगी तो तुम उन्हें जवाब दे पाओगे। जब राजा ने सभी पुतलियों को जवाब दे दिया तो पुतलियों ने भी वरदान दिया कि राजा जब भी तू न्याय करेगा तब तेरा न्याय डिगने नहीं दिया जाएगा।

श्रीकृष्ण जोशी ने बताया कि इंद्र के नाती गंधर्व सेन गंधर्वपुरी से आए थे, जो विक्रमादित्य के पिता थे। अवंतिका नगरी के प्राचीन द्वार पर विराजमान हैं दो देवियां जिन्हें नगर की सुरक्षा करने वाली देवियां कहा जाता है। इस प्राचीन मंदिर में सिंहासनारूढ राजा विक्रमादित्य की मूर्ति के अलावा बत्तीस पुतलियों की मूर्तियां भी विराजमान हैं। ये सब परियां हैं जो आकाश-पाताल की खबर लाकर देती हैं।

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