जैन तीर्थ सिद्धवरकूट

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जैन धर्मावलंबियों का सिद्धवरकूट प्रसिद्ध तीर्थ है। यह तीर्थ ओंकारेश्वर से यह स्थान एक कि.मी. पूर्व दिशा में स्थित है। यहाँ दक्षिण से आती कावेरी नदी नर्मदाजी में मिलकर पुनः उत्तर दिशा को जाती है। यह स्थान दो धर्मों जैन और हिन्दू का संगम स्थान है। इसके पास ही चौबीस अवतार मंदिर, पशुपतिनाथ का मंदिर और लेटी हुई कालका की मूर्ति भी है।

सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट विंध्याचल की तलहटी में प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर दिगंबर जैन समाज का आस्था, श्रद्धा और तपस्या का स्थान है। यहाँ भगवान महावीर स्वामी, संभवनाथ स्वामी, चंद्रप्रभु स्वामी और श्री बाहुबली स्वामी सहित अनेक प्राचीन प्रतिमाएँ आकर्षण का केंद्र हैं।

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इस सिद्ध क्षेत्र से दो चक्रवर्ती और दक्षकुमार एवं असंख्य मुनि मोक्ष गए हैं इसलिए यह क्षेत्र मोक्षदायक भी है। जैन धर्म की इस प्राचीन धरोहर में 8 मंदिर, 1 डेहरी, 1 मानस्तंभ और 5 चैत्यालय यात्रियों की सुविधा धर्मशाला सहित निर्मित हैं।

प्रतिवर्ष फाल्गुन मास में अष्टमी से पूर्णिमा तक सिद्धचक्र मंडल विधान की पूजा-अर्चना के साथ मेला लगता है।

ग्राम पंथ्याजी (सिद्धवरकूट से लगा क्षेत्र) में चौबीस अवतारों का प्राचीन पुरातत्वीय महत्व का मंदिर वर्तमान में पुरातत्व विभाग के संरक्षण में श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र है। शासन द्वारा इस क्षेत्र को पर्याप्त संरक्षण दिया जाना आज की आवश्यकता है।

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