ख्वाबों के इस सावन को

Webdunia
सहबा जाफरी

कोई अब्र उड़े, कोई कली खिले
कोई शाम सुहानी घिरी चले
कहीं सावन रुत के खजाने हो
कहीं चंदा शाने-शाने हो

किसी कौस की तिरछी परचम पर
कोई बादल वारी जाता हो
किसी वादी के इक कोने में
कोई चरवाहा कुछ गाता हो

कहीं मीठे सुर में कोयल भी
कुछ गुनगुन गुनगुन गाती हो
कोई बदली आकर धीमे से
कुछ पाज़ेबों से टकराती हो

फिर मेघा आकर धीरे से
सूरज के नैना टँकता हो
कोई राँझा जैसे चुपके से
इक हीर को दिल में रखता हो

सारे रंग ख्यालों को
ए काश! कोई तस्वीर मिले
ख्वाबों के इस सावन को
इस बार कोई ताबीर मिले।
Show comments

गर्भवती महिलाओं को क्यों नहीं खाना चाहिए बैंगन? जानिए क्या कहता है आयुर्वेद

हल्दी वाला दूध या इसका पानी, क्या पीना है ज्यादा फायदेमंद?

ज़रा में फूल जाती है सांस? डाइट में शामिल ये 5 हेल्दी फूड

गर्मियों में तरबूज या खरबूजा क्या खाना है ज्यादा फायदेमंद?

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय

Metamorphosis: फ्रांत्स काफ़्का पूरा नाम है, लेकिन मुझे काफ़्का ही पूरा लगता है.

21 मई : राजीव गांधी की पुण्यतिथि, जानें रोचक तथ्य

अपनी मैरिड लाइफ को बेहतर बनाने के लिए रोज करें ये 5 योगासन

क्या है Male Pattern Baldness? कहीं आप तो नहीं हो रहे इसके शिकार