तुम्हारी शादी

Webdunia
बुधवार, 2 दिसंबर 2009 (13:02 IST)
विजय कुमार सप्पत्ती

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तुम्हें याद हो न हो,
मुझे तो हर बात याद है।
कैसी ख्वाबों की दुनिया थी
तेरी और मेरी...

तुम्हें याद है
शहर की हर गली में,
तुम; मेरा साया ढूँढती थी!

तु्म्हें याद है,
तेरे लिए, मेरी बाँहों में
कुल! जहान का सकून था -

तुम्हें याद है,
मेरी वजूद ही; तेरे लिए
सारी दुनिया का वजूद था

सब कुछ, सच में ...
कुछ पिछले जन्मों की बात लगती है ...

सुना है आज
तेरी शादी है
कोई अजनबी,
तेरे संग ब्याह कर रहा था...

सच मैं भी तुझे,
कभी बहुत चाहा था ...
जिस हाथ ने तेरी माँग भरी,
काश उस हाथ की उँगलियाँ मेरी होतीं!
जिन कदमों के ‍संग तूने फेरे लिए,
काश उन कदमों के साये मेरे होते!
जो मंत्र तुम दोनों के गवाह बने
काश उन्हें मैंने भी दोहराया होता!

कोई अजनबी तेरे संग ब्याह कर रहा था!
शहर वाले तेरी शादी का खाना खा रहे थे;
मुझे लगा,
आज मेरी तेरहवीं है!!!
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