हिंदू त्योहार‍ को जानिए

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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हिंदू त्योहार (Hindu festivals) कुछ खास ही हैं लेकिन भारत के प्रत्येक समाज या प्रांत के अलग-अलग त्योहार, उत्सव, पर्व, परंपरा और रीतिरिवाज हो चले हैं। यह लंबे काल और वंश परम्परा का परिणाम ही है कि वेदों को छोड़कर हिंदू अब स्थानीय स्तर के त्योहार और विश्वासों को ज्यादा मानने लगा है। सभी में वह अपने मन से नियमों को चलाता है। कुछ समाजों ने मांस और मदिरा के सेवन हेतु उत्सवों का निर्माण कर लिया है। रात्रि के सभी कर्मकांड निषेध माने गए हैं।

उन त्योहार, पर्व या उत्सवों को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा, व्यक्ति विशेष या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र और आचार संहिता में मिलता है। ऐसे कुछ पर्व हैं और इनके मनाने के अपने नियम भी हैं। इन पर्वों में सूर्य-चंद्र की संक्रांतियों और कुम्भ का अधिक महत्व है। सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है।

मकर संक्रांति : माघ माह में कृष्ण पंचमी को मकर सक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है। लोग भगवान सूर्य का आशीर्वाद लेने के लिए गंगा और प्रयाग जैसी पवित्र नदियों में डुबकियां लगाते हैं, पतंग उड़ाते हैं गाय को चारा खिलाते हैं। इस ‍दिन तिल और गुड़ खाने का महत्व है। जनवरी में मकर संक्रांति के अलावा शुक्ल पक्ष में बसंत पंचमी को भी मनाया जाता।

मकर संक्रांति पर अधिक जानकारी हेतु खास पेज...मकर संक्रांति पर्व

श्रावण मास : इसके अलावा हिन्दू धर्म के प्रमुख तीन देवताओं के पर्व को मनाया जाता है उनमें शिव के लिए महाशिवरात्रि और श्रावण मास प्रमुख है और उनकी पत्नी पार्वती के लिए चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि प्रमुख त्योहार है। इसके अलावा शिव पुत्र भगवान गणेश के लिए गणेश चतुर्थी का पर्व गणेशोत्सव का नाम से मनाया जाता है जो भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आता है।


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कार्तिक मास : भगवान विष्णु के लिए कार्तिक मास नियु‍क्त है। इसके अलावा सभी एकादशी, चतुर्थी और ग्यारस को विष्णु के लिए उपवास रखा जाता है। देवोत्थान एकादशी उनमें प्रमुख है।

आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी को चातुर्मास संपन्न होता है और इसी दिन भगवान अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। भगवान के जागने की खुशी में ही देवोत्थान एकादशी का व्रत संपन्न होता है। इसी माह में विष्णु की पत्नी लक्ष्मी के लिए दीपावली का त्योहार प्रमुखता से मनाया जाता है।

भगवान विष्णु को समर्पित एक पेज.....सभी तरह के एकादशी व्रत और कथा


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पुरुषोत्तम मास : इसे अधिक मास भी कहते हैं। धार्मिक शास्त्र और पुराणों के अनुसार हर तीसरे साल अधिक मास यानी पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास में भगवान विष्णु का पूजन, जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। खास तौर पर भगवान कृष्‍ण, भगवद्‍गीता, श्रीराम की आराधना, कथा वाचन और विष्‍णु भगवान की उपासना की जा‍ती है। इस माह भर में उपासना करने का अपना अलग ही महत्व माना गया है।

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राम नवमी : यह त्योहार भगवान विष्णु के सातवें जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, भगवान श्रीराम जो चैत्र मास के नौवें दिन पैदा हुए थे। श्रीराम ने दानव राजा रावण को मारा था। यह त्योहार अप्रैल में आता है।

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कृष्ण जन्माष्टमी : यह त्योहार कृष्ण जयंती और कृष्णाष्टमी के नाम से भी प्रसिद्ध है, यह त्योहार भगवान कृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार अगस्त में आता है।

कृष्ण जन्माष्टमी के बारे में विस्तृत जानकारी हेतु आगे क्लिक करें....जन्माष्टमी।

हनुमान जयंती : पंडितों और ज्योतिषियों के अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा पर भगवान राम की सेवा के उद्देश्य से भगवान शंकर के ग्यारहवें रुद्र ने अंजना के घर हनुमान के रूप में जन्म लिया था। इसी दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस दिन का हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है।

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श्राद्ध-तर्पण : परमेश्वर, देवी-देवताओं के अलावा हिन्दू धर्म में पितृ पूजन नहीं, श्राद्ध करने का महत्व है। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। श्राद्ध पक्ष का सनातन हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है।

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गुरुपूर्णिमा : परमेश्वर, देवी-देवता, पितर के अलावा हिन्दू धर्म में गुरु का भी महत्व है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहते हैं। भारत भर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था।

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