ब्रह्म काल : हिन्दू कालगणना को जानिए

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हिन्दू धर्म में समय की बहुत ही व्यापक धारणा है। क्षण के हजारवें हिस्से से भी कम से शुरू होने वाली कालगणना ब्रह्मा के 100 वर्ष पर भी समाप्त नहीं होती। हिन्दू मानते हैं कि समय सीधा ही चलता है। सीधे चलने वाले समय में जीवन और घटनाओं का चक्र चलता रहता है। समय के साथ घटनाओं में दोहराव होता है फिर भी घटनाएं नई होती हैं।

इस पहले भाग को जरूर पढ़े...हिन्दू इतिहास काल का संक्षिप्त परिचय

सतयुग के बाद फिर से सतयुग आएगा लेकिन पहले सतयुग से यह दूसरा सतयुग अलग होगा। राजा अलग होंगे, प्रजा अलग होगी, आबोहवा अलग होती, सब कुछ अलग होगा। जो यह कहते हैं कि हिन्दू काल-अवधारणा चक्रीय है, उन्हें फिर से अध्ययन करना चाहिए।

जो जन्मा है वह मरेगा। पेड़, पौधे, प्राणी, मनुष्य, पितर और देवताओं की आयु भी नियुक्त है, उसी तरह समूचे ब्रह्मांड की भी आयु है। इस धरती, सूर्य, चन्द्र सभी की आयु है। उत्पत्ति, पालन और विनाश का चक्र चलता ही रहता है। हिन्दू ऋषियों ने सभी की आयु का मान निकालकर उसे समय में व्यक्त किया है।

अगले पन्ने प र, हिन्दू काल धारण ा...


तृसरेणु समय की सबसे सूक्ष्मतम इकाई है। यही से समय की शुरुआत मानी जा सकती है। यह इकाई अति लघु श्रेणी की है। हालांकि इससे भी छोटी इकाई होती है अणु।

1. एक तृसरेणु = 6 ब्रह्माण्डीय अणु।
2. एक त्रुटि = 3 तृसरेणु या सेकंड का 1/1687.5 भाग।
3. एक वेध = 100 त्रुटि।
4. एक लावा = 3 वेध।
5. एक निमेष = 3 लावा या पलक झपकना।
6. एक क्षण = 3 निमेष।
7. एक काष्ठा = 5 क्षण अर्थात 8 सेकंड।
8. एक लघु = 15 काष्ठा अर्थात 2 मिनट। आधा लघु अर्थात 1 मिनट।
9. पंद्रह लघु = एक नाड़ी, जिसे दंड भी कहते हैं अर्थात लगभग 30 मिनट।
10. दो दंड = एक मुहूर्त अर्थात लगभग 1 घंटे से ज्यादा।
11. सात मुहूर्त = एक याम या एक चौथाई दिन या रात्रि।
12. चार याम या प्रहर = एक दिन या रात्रि।
13. पंद्रह दिवस = एक पक्ष। एक पक्ष में पंद्रह तिथियां होती हैं।
14. दो पक्ष = एक माह। (पूर्णिमा से अमावस्या तक कृष्ण पक्ष और अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष)
15. दो माह = एक ॠतु।
16. तीन ऋतु = एक अयन
17. दो अयन = एक वर्ष।
18. एक वर्ष = देवताओं का एक दिन जिसे दिव्य वर्ष कहते हैं।
19. 12,000 दिव्य वर्ष = एक महायुग (चारों युगों को मिलाकर एक महायुग)
20. 71 महायुग = 1 मन्वंतर (लगभग 30,84,48,000 मानव वर्ष बाद प्रलय काल)
21. चौदह मन्वंतर = एक कल्प।
22. एक कल्प = ब्रह्मा का एक दिन। (ब्रह्मा का एक दिन बीतने के बाद महाप्रलय होती है और फिर इतनी ही लंबी रात्रि होती है)। इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु 100 वर्ष होती है। उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है।

* मन्वंतर की अवधि : विष्णु पुराण के अनुसार मन्वंतर की अवधि 71 चतुर्युगी के बराबर होती है। इसके अलावा कुछ अतिरिक्त वर्ष भी जोड़े जाते हैं। एक मन्वंतर = 71 चतुर्युगी = 8,52,000 दिव्य वर्ष = 30,67,20,000 मानव वर्ष।

नोट : इस कल्प में 6 मन्वंतर अपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब 7वां मन्वंतर काल चल रहा है जिसे वैवस्वत: मनु की संतानों का काल माना जाता है। 27वां चतुर्युगी बीत चुका है। वर्तमान में यह 28वें चतुर्युगी का कृतयुग बीत चुका है और यह कलियुग चल रहा है।

अंतिम पन्ने पर, कल्प का वर्णन और उसके इतिहास की भूमिका...



महत कल्प : इस कल के इतिहास का विवरण मिलना मुश्किल है। बहुत शोध के बाद कहीं मिले, क्योंकि इस काल के बाद प्रलय हुई थी तो सभी कुछ नष्ट हो गया। लेकिन पुराणकार मानते हैं कि इस कल्प में विचित्र-विचित्र और महत् (अंधकार से उत्पन्न) वाले प्राणी और मनुष्य होते थे। संभवत: उनकी आंखें नहीं होती थी।

हिरण्य गर्भ कल्प : इस काल में धरती का रंग पीला था, इसीलिए इसे हिरण्य कहते हैं। हिरण्य के दो अर्थ होते हैं एक जल और दूसरा स्वर्ण। हालांकि धतुरे को भी हिरण्य कहा जाता है। माना जाता है कि तब स्वर्ण के भंडार बिखरे पड़े थे। इस काल में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा, हिरण्यगर्भ, हिरण्यवर्णा लक्ष्मी, देवता, हिरप्यानी रैडी (अरंडी), वृक्ष वनस्पति एवं हिरण ही सर्वोपयोगी पशु थे। सभी एकरंगी पशु और पक्षी थे।

ब्रह्मकल्प : इस कल्प में मनुष्य जाति सिर्फ ब्रह्म (ईश्‍वर) की ही उपासक थी। क्रम विकास के तहत प्राणियों में विचित्रताओं और सुंदरताओं का जन्म हो चुका था। जम्बूद्वीप में इस काल में ब्रह्मर्षि देश, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मलोक, ब्रह्मपुर, रामपुर, रामगंगा केंद्र स्थल की ब्राह्मी प्रजाएं परब्रह्म और ब्रह्मवाद की उपासखी। इस काल ऐतिहासिक विवरण हमें ब्रह्मपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है।

पद्मकल्प : पुराणों अनुसार इस कल्प में 16 समुद्र थे। यह कल्प नागवंशियों का था। इस काल में उनकी अधिकता थी। कोल, कमठ, बानर (बंजारे) व किरात जातियां थीं और कमल पत्र पुष्पों का बहुविध प्रयोग होता था। सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की नारियां पद्मिनी प्रजाएं थीं। तब के श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति आज के श्रीलंका जैसी नहीं थी। इस कल्प का विवरण पद्म पुराण में विस्तार से मिलता है।

बाराहकल्प : वर्तमान में वराह कल्प चल रहा है। इस कल्प में विष्णु ने वराह रूप में दो अवतार लिए पहला नील वराह और दूसरा आदि वराह। इसी कल्प में विष्णु के 24 अवतार हुए और इसी कल्प में वैवस्वत मनु का वंश चल रहा है। इसी कल्प में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने नई सृष्टि की थी। वर्तमान में हम इसी कल्प के इतिहास की बात कर रहे हैं। वराह पुराण में इसका विवरण मिलता है।

अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत मनु, चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वंतर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अंतरदशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी संवत् प्रारंभ होने से 5,630 वर्ष पूर्व हुआ था।

संदर्भ : पुरा ण, सूर् य सिद्धां त मणि
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