प्राचीन काल में तिब्बत हिन्दू धर्म का प्रमुख केंद्र था। इसे वेद-पुराणों में त्रिविष्टप कहा गया है। तिब्बत प्राचीन काल से ही योगियों और सिद्धों का घर माना जाता रहा है तथा अपने पर्वतीय सौंदर्य के लिए भी यह प्रसिद्ध है। संसार में सबसे अधिक ऊंचाई पर बसा हुआ प्रदेश तिब्बत ही है। तिब्बत मध्य एशिया का सबसे ऊंचा प्रमुख पठार है। वर्तमान में यह बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र है।
तिब्बत में ही भगवान शिव का निवास स्थान कैलास पर्वत और मानसरोवर स्थित है। इसे धरती का स्वर्ग कहा गया है। महाभारत के महाप्रस्थानिक पर्व में स्वर्गारोहण में स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत हिमालय के उस राज्य को पुकारा जाता था जिसमें नंदनकानन नामक देवराज इंद्र का देश था। इससे सिद्ध होता है कि इंद्र स्वर्ग में नहीं धरती पर ही हिमालय के इलाके में रहते थे। वहीं शिव और अन्य देवता भी रहते थे।
राहुलजी सांस्कृतायन के अनुसार तिब्बत के 84 सिद्धों की परम्परा 'सरहपा' से आरंभ हुई और नरोपा पर पूरी हुई। सरहपा चौरासी सिद्धों में सर्व प्रथम थे। इस प्रकार इसका प्रमाण अन्यत्र भी मिलता है लेकिन तिब्बती मान्यता अनुसार सरहपा से पहले भी पांच सिद्ध हुए हैं। इन सिद्धों को हिन्दू या बौद्ध धर्म का कहना सही नहीं होगा क्योंकि ये तो वाममार्ग के अनुयायी थे और यह मार्ग दोनों ही धर्म में समाया था। बौद्ध धर्म के अनुयायी मानते हैं कि सिद्धों की वज्रयान शाखा में ही चौरासी सिद्धों की परंपरा की शुरुआत हुई, लेकिन आप देखिए की इसी लिस्ट में भारत में मनीमा को मछींद्रनाथ, गोरक्षपा को गोरखनाथ, चोरंगीपा को चोरंगीनाथ और चर्पटीपा को चर्पटनाथ कहा जाता है। यही नाथों की परंपरा के 84 सिद्ध हैं।
इन नामों के अंत में पा जो प्रत्यय लगा है, वह संस्कृत 'पाद' शब्द का लघुरूप है। नवनाथ की परंपरा के इन सिद्धों की परंपरा के कारण ही मध्यकाल में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के अस्तित्व की रक्षा होती रही। इन सिद्धों के कारण ही अन्य धर्म के संतों की परंपरा भी शुरू हुई। इन सिद्धों के इतिहास को संवरक्षित किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है।