उज्जैन निवासी स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं कि वे भगवान शिव के सान्निध्य में रहते हैं। श्रावण के हर सोमवार का नजारा इस शहर में कुछ इस तरह होता है कि चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, सुबह अपने राजा के सम्मान में व्रत रखते हैं।
प्रजा अपने राजा से मिलने के लिए इस तरह व्याकुल होती है कि शहर के चौराहे-चौराहे पर स्वागत की विशेष तैयारी की जाती है। शाम चार बजे राजकीय ठाट-बाट और वैभव के साथ राजा महाकाल विशेष रूप से फूलों से सुसज्जित चांदी की पालकी में सवार होते हैं। जैसे ही राजा महाकाल पालकी में विराजमान होते हैं। ठंडी हवा के एक शीतल झोंके से या हल्की फुहारों से प्रकृति भी उनका भीना स्वागत करती है।
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राजा महाकाल सबसे मिलते हैं,सबको दर्शन देते हैं। एक तरफ सुरक्षा का दायरा और दूसरी तरफ भक्ति का चरम उत्कर्ष, जिसने यह नजारा पहली बार देखा उसकी तो भावावेश में आंखें ही छलछला जाती है।
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सवारी के साथ पधारे गजराज अपनी सूंड को ऊंची कर राजा के सम्मान में हर्ष व्यक्त करते हैं। पवित्र मंत्रोच्चार के साथ सवारी वापस मंदिर पहुंचती है। नगरवासी दिन भर अपने राजा के सम्मान में किया व्रत सवारी के दर्शन के बाद ही खोलते हैं।
देश के अलग-अलग प्रांतों से लोग सोमवार की इस दिव्य सवारी के दर्शन करने आते हैं, और मनचाहा वरदान लेकर जाते हैं। इस भव्य सवारी को देखने के बाद ही राजा महाकालेश्वर की दिव्यता को अनुभूत किया जा सकता है।
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