पुरुषों की फिल्में महिलाओं का टीवी

अनहद
फिल्मों और टीवी धारावाहिकों की कहानी का मूल फर्क क्या है? शायद यह कि सिनेमा की कहानियाँ पुरुष प्रधान हैं और टीवी की महिला प्रधान। टीवी आने के कुछ दिनों बाद महिलाओं को महसूस हुआ कि अरे इस पर वही सब दिखता है, जो हमारे आस-पास है, हमारी जिंदगी में है।

हर शादीशुदा महिला की जिंदगी में सास, जेठानी, ननद और अन्य रिश्तेदारों का जो महत्व है, उसे न तो श्याम बेनेगल समझ सकते हैं और न सत्यजीत रॉय। बचपन से ही अच्छे पति और ममतामयी सास की दुआएँ जिस देश में लड़कियाँ करती हों, उस देश में टीवी पर सास-बहू टाइप सीरियल क्यों न कामयाब होंगे?

हमारे लोक गीतों में सास ननद और उनके कष्टों की चर्चा अच्छी-खासी है। टीवी पर एकता कपूर के सीरियल में जब सास-बहू की कहानी पेश की गई तो महिलाओं ने हाथोंहाथ लिया। एकता कपूर के धारावाहिक की सास-बहुएँ बेशक उच्च वर्ग की थीं, मगर थीं तो सास-बहू ही।

क्या दौर बदल गया है? हाँ इतना हुआ है कि उच्च वर्ग के सास-बहू झमेले से महिलाएँ ऊब गई हैं। पर निम्न और निम्न मध्यवर्ग की कहानियों में सास-बहू मौजूद हैं। इतना हुआ है कि सास दादी सास हो गई है, पर सास की जगह पर सास है और बहू की जगह पर बहू। इन धारावाहिकों की आलोचना करने वाले भूल जाते हैं कि महिलाएँ भी हमारी पसंद पर इसी तरह आक्षेप कर सकती हैं। अगर टीवी उनके पैसे से खरीदा गया होता और हम अपनी पसंद के प्रोग्राम उस पर देख रहे होते, तो बौद्धिक आलोचना के पात्र हम होते।

महिलाएँ जिस जगत में जीती हैं, उसी जगत के कार्यक्रम उन्हें अगर पसंद आते हैं, तो इसमें आलोचना की क्या ज़रूरत है? आखिरकार फिल्में भी मारधाड़ की बनती हैं या नहीं? किसी को एक्शन फिल्म पसंद हो, तो वो अपनी पसंद छुपाने की बजाय गर्व करता है। मगर महिलाओं को यदि भावुक फिल्में, रोमांटिक फिल्में पसंद हों, तो उनका मज़ाक उड़ाया जाता है। मनोरंजन के जगत में महिलाओं से किए जाने वाले इस भेदभाव पर शायद किसी ने ध्यान नहीं दिया है।

मुनाफा कमाने वाले बाज़ार ने ध्यान दिया है। टीवी पर महिलाओं की पसंद के तमाम कार्यक्रम हैं। अनेक चैनल हैं, जो महिलाओं की पसंद को ध्यान में रखकर कार्यक्रम बनवाते हैं। कलर्स टीवी पर हाल ही में एक और कार्यक्रम शुरू हुआ है, जिसका नाम है "भाग्य विधाता"। अखबारों में इसके रोचक विज्ञापन छपे हैं।

बिहार में शादी के लिए दूल्हों का अपहरण भी किया जाता है। शायद विज्ञापन में उसी तरफ इशारा है। बाद में शायद कहानी भी उस तरफ का रुख कर ले। इसके पहले एपिसोड में दिखाया गया कि शादी के लिए लड़की को देखने आने वाले किस तरह लड़की और लड़की के परिवार वालों को अपमानित करते हैं। इसी तरह के कार्यक्रमों के कारण हम टीवी को महिलाओं का मनोरंजन कह सकते हैं। फिल्मों ने पुरुष की दुनिया, उसके आदर्श, उसके विचार, उसकी महत्वकांक्षाएँ सामने रखीं। टीवी महिलाओं का एजेंडा है।

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