ओसामा का परिवार

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9 /11 को अमेरिका में जो कुछ हुआ अमेरिका का मानना है कि भूचाल पैदा करने वाली यह हरकत सउदी आतंकशाह ओसामा बिन लादेन ने की है। अगर ऐसा ही है तो इसका मतलब यह हुआ कि ओसामा और अमेरिका की टक्कर में ओसामा एक बार फिर बीस साबित हुआ। ओसामा और अमेरिका की यह तनातनी पिछले एक दशक से चल रही है। पिछले एक दशक से ओसामा अमेरिका की आँख की किरकिरी बना हुआ है। अमेरिका इस किरकिरी को मसल डालना चाहता है, लेकिन अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद वह इसमें सफल नहीं हो रहा।

ओसामा बिन लादेन और अमेरिका पहली बार एक-दूसरे के सामने 1990 में तब आए जब लादेन ने खाड़ी में अमेरिकी सेनाओं का विरोध किया। इसके बाद 1991 में अमेरिका के इशारे पर सऊदी अरब सरकार ने बिन लादेन को सऊदी अरब से भागने पर मजबूर कर दिया। 1992 में बिन लादेन के आतंकवादियों ने अमेरिकी सैनिकों पर सोमालिया में हमला किया और एक तरह से अमेरिका के विरुद्ध ऐलान-ए-जंग कर दिया।

1993 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर बम विस्फोट हुआ। इस विस्फोट में 6 लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए। यह विस्फोट भी लादेन के इशारे पर हुआ था। 1995 में लादेन के लड़ाकों ने मिस्र के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक पर हमला किया, लेकिन मुबारक बच गए। 1996 में अमेरिका के भारी दबाव के कारण सूडान ने ओसामा को अपने यहाँ से चले जाने के लिए कहा। लादेन ने सूडान छोड़कर अफगानिस्तान में शरण ली। उसने अमेरिका द्वारा उसे सूडान से निकलवाने का बदला सऊदी अरब में मौजूद अमेरिकी सैनिकों के एक शिविर में बमबारी करके लिया। इस बमबारी में अमेरिका के 19 जवान मारे गए।

अमेरिका ने लादेन के इस हमले का बदला लेने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। हर बार लादेन अमेरिकी रणनीति पर भारी पड़ा। यही नहीं 1998 में उसने एक बार फिर अमेरिका को ललकारा, जब केन्या और तंजानिया स्थित अमेरिकी दूतावासों को भयानक बम विस्फोटों के जरिए उड़ा दिया गया। यह तब तक का ओसामा का सबसे बड़ा दुस्साहस था। अमेरिका के विरुद्ध किसी भी आतंकवादी संगठन ने कभी जुर्रत नहीं की थी, लेकिन ओसामा ने 11 सितंबर 2001 को न्यूयॉर्क और वाशिंगटन में कहर बरपा दिया। अमेरिका ने इसे खुल्लम-खुल्ला जंग कहा है, उसके और बिन लादेन के बीच।

लादेन की खूंखार जीवन गाथा में भी एक त्रासद व्यथा छिपी है। 27 अक्टूबर 1950 को सऊदी अरब के रियाद शहर में मसालों के एक व्यापारी मुहम्मद बिन लादेन के घर में उनकी नौवीं और अंतिम पत्नी से पचासवीं संतान पैदा हुई, जिसका नाम ओसामा बिन लादेन रखा गया।

मोहम्मद बिन लादेन की यह अंतिम संतान थी। जिस समय ओसामा पैदा हुआ था, उस समय उसके पिता मोहम्मद बिन लादेन की उम्र 69 साल थी और उनके सबसे बड़े बेटे यानी लादेन के सबसे बड़े भाई की उम्र 52 साल थी। 17 साल बाद जब 6 फुट 7 इंच लंबा लादेन प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए लंदन या बेरुत जाने की तैयारी में था, उसी वर्ष उसके पिता ने इस संसार से विदा ली। पिता की मृत्यु के बाद लोग ओसामा को जूनियर लादेन के नाम से पुकारने लगे।

सीनियर लादेन की मृत्यु 1967 में हुई। तब तक पूरा लादेन परिवार एक साथ रहता था, जिसमें छोटे-बड़े मिलाकर कुल 277 सदस्य थे। लादेन आगे की पढ़ाई की तैयारी कर रहा था, उस समय उसका सबसे बड़ा भाई अब्दुल अजीज 69 साल का था और 5 बेटों सहित उसके निजी परिवारजनों की कुल संख्या 21 थी। अब्दुल अजीज का पोता इरशाद आजम उस समय 20 साल का था, अर्थात अपने चचेरे दादा से 3 साल बड़ा!

इस तरह आपसी संबंधों के मामले में लादेन परिवार विचित्रताओं का अजायबघर था। ये विचित्रताएँ इसलिए भी बहुत हास्यास्पद ढंग से रेखांकित होती थीं, क्योंकि परिवार के सारे लोग एक साथ रहते थे। सऊदी अरब में संयुक्त परिवार की कोई कट्टर परंपरा नहीं थी, लेकिन लादेन परिवार के एक साथ रहने के पीछे भी एक कहानी थी।

लादेन जूनियर के पिता मोहम्मद बिन लादेन अपने पिता के साथ सन्‌ 1894 में यमन से सऊदी अरब आए थे। उस समय यह परिवार आज की तरह अरब जगत का मशहूर भवन निर्माता परिवार नहीं था। तब मोहम्मद बिन लादेन और उनके पिता सऊदी अरब में कालीमिर्च, अजवाइन, सौंठ और कई अन्य गरम मसाले बेचते हुए आए थे। मसाला बेचना लादेन के पूर्वजों का पुश्तैनी धंधा था। ये लोग मसाले बेचते हुए खाड़ी के तमाम देशों में भटका करते थे। साल के 9 महीने अक्सर वे एक देश से दूसरे देश में घूमते रहते थे। उन दिनों यमन गरम मसालों का एक प्रमुख उत्पादक देश था।

शायद लादेन परिवार का यह घुमंतू जीवन अभी सदियों और चलता कि उन्नीसवीं शताब्दी के ढलते सालों में वर्तमान सऊदी अरब के तत्कालीन शेख परिवारों को इन लोगों के मसाले बहुत पसंद आए और उन्होंने लादेन परिवार को शाही नगर रियाद में स्थायी रूप से बस जाने का आमंत्रण दे दिया, जिसे इस परिवार ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। हालाँकि यमन और सऊदी अरब दोनों ही इस्लामिक राज्य हैं, लेकिन दोनों के खानपान, रीति-रिवाजों, बोली, भाषा और परंपराओं में तब बहुत फर्क था।

यहाँ तक कि यह फर्क एक कट्टर सांस्कृतिक आग्रह निर्मित करता था। इन्हीं सांस्कृतिक आग्रहों के चलते लादेन के पूर्वजों ने यह तय किया था कि वे लोग रियाद में रहते हुए भी पक्के यमनी बने रहेंगे और इसीलिए यह निर्णय लिया गया कि परिवार चाहे जितना बड़ा हो जाए, रहेंगे हमेशा सभी साथ-साथ।

यह आग्रह सिर्फ मोहम्मद बिन लादेन के जिंदा रहने तक ही चल सका। बाद की पीढ़ियों ने इस आग्रह को ढोने से इंकार कर दिया। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि एक तो बाद की पीढ़ियाँ यमन में न पैदा होकर सऊदी अरब में ही पैदा हुई थीं और दूसरी बात यह थी कि अब यह परिवार यमन से खरीदकर लाए गए मसालों का व्यापार नहीं करता था, बल्कि आधुनिक और पेट्रो उत्पादों से संपन्न हुए सऊदी अरब के विकास का एक भागीदार था।

सन्‌ 1932 में जब आधुनिक सऊदी अरब का अस्तित्व सामने आया और यहाँ आधुनिक सभ्यता के जीवन स्रोत पेट्रोल के भारी भंडार मिले तो सऊदी अरब का चेहरा रातों-रात बदल गया। बदलाव की इसी बयार में लादेन परिवार भी मसालों का काम-धंधा छोड़कर भवन निर्माण के क्षेत्र में कूद पड़ा। दरअसल पेट्रोल के भारी भंडारों के मिलने के बाद सबसे तीव्रता से जिस क्षेत्र में बदलाव आया था, वह आवास क्षेत्र ही था। जब ओसामा बिन लादेन ने अपना होश संभाला, उन दिनों लादेन परिवार सऊदी अरब का एक प्रमुख भवन निर्माता परिवार था। देश के अरबपतियों में हालाँकि तब तक इस परिवार का शुमार नहीं था, लेकिन करोड़पति परिवारों में इसकी गिनती पहली कतार में होती थी।

ओसामा एक बहुत विशाल एवं संपन्न परिवार में पैदा हुआ था और यही दोनों चीजें उसके आतंकवादी जीवन की तरफ प्रवृत्त होने में सहायक बनीं। ओसामा के पिता अपनी नौवीं पत्नी से कोई लगाव नहीं रखते थे। इसकी वजह यह थी कि वे मुहम्मद बिन लादेन की दूसरी पत्नियों की तरह न तो कुलीन घरानों से थी और न ही संपन्न घराने की। ओसामा की नानी एक विधवा दर्जिन थी, जिसने गरीबी के कारण अपनी जवान बेटी को बूढ़े मुहम्मद बिन लादेन के साथ ब्याह दिया था।

अपनी विपन्न और निम्न सामाजिक पृष्ठभूमि का ओसामा की माँ को खामियाजा यह भुगतना पड़ा कि वह लादेन परिवार में तिरस्कार का पात्र बन गई। लादेन परिवार का कोई भी सदस्य उसके साथ बराबरी और इज्जत का बर्ताव नहीं करता था। ओसामा के पैदा होने के बाद भी उसकी यही स्थिति बनी रही। विशाल महलनुमा घर में उसे सिर्फ एक कमराभर मिला हुआ था। इसे ही वह अपना घर समझ सकती थी। यह बात अलग थी कि गर्मियों में जब लादेन परिवार लंदन या पेरिस घूमने चला जाया करता था, उन दिनों पूरे परिवार की देखरेख का जिम्मा ओसामा की मां पर ही होता था।

घर में मिली उपेक्षा और जलालत के कारण ओसामा की माँ धार्मिक आस्थाओं की तरफ झुक गई थी। अपनी मां की तरह ओसामा को भी अपने विशाल परिवार के सदस्यों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। इसीलिए वह बचपन में अपना ज्यादा से ज्यादा समय माँ के पास बिताता था और इसी वजह से मां की तरह वह भी ईश्वर की ओर उन्मुख हुआ।

अल्लाह और इस्लाम में लादेन की कट्टरवादी आस्था और पूरी दुनिया को इस्लामिक दुनिया में बदल देने के उसके जुनून की यही पृष्ठभूमि है। दरअसल असहाय स्थिति में जीने का सबसे बड़ा संबल ईश्वर ही होता है। बचपन में लादेन अपने परिवार से किस तरह कटा था, इसको इसी से जाना जा सकता है कि वह अपनी कई बहनों और भाइयों को आज भी नहीं पहचानता।

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