नरेश कुमार शाद के क़तआत

Webdunia
बुधवार, 18 जून 2008 (12:04 IST)
* 'दहर' में हम 'वफ़ा शआरों' को-------दुनिया, सचाई का साथ देने वाले
दोस्ती के भरम ने मार दिया
दुश्मनों से तो बच गए लेकिन
दोस्तों के 'करम' ने मार दिया

* दर्द मन्दों की सर्द आहों से
मुख्तलिफ़ मुख्तलिफ़ निगाहों से
दोस्ती का फ़रेब खाया है
आप जैसे ही 'खैरख्वाहों' से-------शुभचिंतकों

* 'सालहा साल' की तलाश के बाद----------कई साल
ज़िन्दगी के चमन से छांटे हैं `
आप को चाहिए तो पेश करूँ
मेरे दामन में चन्द काँटे हैं

* मैंने हर ग़म खुशी में ढाला है
मेरा हर इक चलन निराला है
लोग जिन 'हादिसों' से मरते हैं-- -------दुर्घटनाओं
मुझ को उन हादिसों ने पाला है

* ज़िन्दगी अपने आईने में तुझे
अपना चहरा नज़र नहीं आता
ज़ुल्म करना तो तेरी आदत है
ज़ुल्म सहना मगर नहीं भाता

* तूने तो जिस्म ही को बेचा है
एक 'फ़ाक़े' को टालने के लिए----------भूक
लोग 'यज़दाँ' ओ बेच देते हैं--------खुदा
अपना मतलब निकालने के लिए

* हर 'हसीं काफ़िराँ' के माथे पर---------बहुत सुन्दर
अपनी रहमत का ताज रखता है
तू भी 'परवरदिगार' मेरी तरह----------ईश्वर
आशिक़ाना 'मिज़ाज' रखता है----------तबीयत
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