मुनफरीद अशआर

Webdunia
गुरुवार, 1 मई 2008 (20:32 IST)
यूँ ज़िन्दगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं ----जिगर

बे सहारे मैं जी गई कैसे
तुमको क्या, खुद मुझे यक़ीन नहीं --एक खातून

मालूम थीं मुझे तेरी मजबूरियाँ मगर
तेरे बग़ैर नींद न आई तमाम रात ----माइल नक़वी

हाथ रखकर मेरे सीने पे जिगर थाम लिया
तुमने इस वक़्त तो गिरता हुआ घर थाम लिया---अमीर मीनाई

वीराँ है मैकदा खुम ओ साग़र उदास है
तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के------फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मेरा खत उसने पढ़ा, पढ़ के नामाबर से कहा
यही जवाब है इसका कि कुछ जवाब नहीं----अमीर मीनाई

अश्कों के निशाँ परचा ए सादा पे हैं क़ासिद
अब कुछ न बयाँ कर ये इबारत ही बहुत है----एहसान अली

सब्र ए अय्यूब किया, गिरया ए याक़ूब किया
हमने क्या क्या न तेरे वास्ते मेहबूब किया------शेख शर्फ़ुद्दीन मज़मूँ

क्या हुआ मर गया अगर फ़रहाद
रूह पत्थर से सर पटकती है--------शाह मुबारक आबरू

हम भी कुछ खुश नहीं वफ़ा करके
तुम ने अच्छा किया वफ़ा न की -------मोमिन

ये बज़्म-ए-मै है याँ कोताहदस्ती में है मेहरूमी
जो बढ़कर खुद उठा ले हाथ में मीना उसी का है---शाद अज़ीम आबादी

बिना-ए-काबा पड़ती है जहाँ हम खिश्त ए खुम रख दें
जहाँ साग़र पटक दें, चश्मा-ए-ज़म-ज़म निकलता है --- रियाज़

मैं समझता हूँ तेरी इशवागरी को साक़ी
काम करती है नज़र, नाम है पैमाने का ------जलील

कौन भला रोता फिरता है, आधी आधी रातों को
इस बादल के परदे में भी कोई दिलवाला होगा ------नामालूम

पता यूँ तो बताते हैं वो सब को लामकाँ अपना
मगर मालूम, रहते हैं वो टूटे हुए दिल में -------अनीस दाऊद नगरी

जग में आकर इधर उधर देखा
तू ही आया नज़र जिधर देखा ------मीर दर्द

जिसने बनाई बांसुरी गीत उसी के गाए जा
साँस जहाँ तक आए जाए, एक ही धुन बजाए जा ---आरज़ू

अगर बख्‍शे ज़हे क़िस्मत, न बख्शे तो शिकायत क्या
सर ए तसलीम खम है जो मिज़ाज ए यार में आए -----नामालूम

आशिक़ी से मिलेगा ए ज़ाहिद
बन्दगी से खुदा नहीं मिलता ------दाग़

खुदा जाने ये दुनिया जल्वा गाहे नाज़ है किसकी
हज़ारों उठ गए लेकिन वही रौनक़ है मजलिस की ---असीर

समझता हूँ कि दुनिया में हमेशा रंज सहना है
मगर फिर क्या करूँ आसी, इसी दुनिया में रहना है ----आसी

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ खरीदार नहीं हूँ ---------अकबर इलाहाबादी

यही है ज़िन्दगी अपनी, यही है बन्दगी अपनी
कि उनका नाम आया और गरदन झुक गई अपनी ---माहिरुल क़ादरी

पूछती है वो नरगिस ए मखमूर
किसको दावा है, पारसाई का -----नामालूम

शब को मै खूब सी पी, सुबहा को तौबा करली
रिन्द के रिन्द रहे, हाथ से जन्नत न गई ------जलाल

बात रिन्दी की मुझको आती है
पारसाई की पारसा जाने ---------जोश मल्सियानी

वो है मुख्‍तार सज़ा दे कि जज़ा दे फ़ानी
दो घड़ी होश में आने के गुनाहगार हैं हम -----फ़ाबदायूंनी नी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

ये है दुनिया में खाने की सबसे शुद्ध चीज, जानिए क्या हैं फायदे

मकर संक्रांति 2025: पतंग उड़ाने से पहले जान लें ये 18 सावधानियां

भीगे हुए बादाम या सूखे बादाम, सेहत के लिए क्या है ज्यादा फायदेमंद

क्या आपको महसूस होती है सूर्यास्त के बाद बेचैनी, हो सकते हैं ये सनसेट एंग्जाइटी के लक्षण

थपथपाएं माथा, सेहत रहेगी दुरुस्त, जानें क्या है सही तरीका

सभी देखें

नवीनतम

समावेशी भाषा के रूप में हिन्दी

प्रियंका चोपड़ा की चमकदार स्किन का राज है घर में आसानी से बनने वाला ये फेस पैक

World Hindi Day 2025 : विश्व हिन्दी दिवस आज, जानें इस दिन के बारे में रोचक जानकारी

ये हैं कैंसर से लड़ने वाले सुपरफूड: अपनी थाली में आज ही करें शामिल

ये हैं 113 वर्षीय भारत की वृक्ष माता सालुमरादा थिमक्का, बच्चे नहीं हुए तो पेड़ों को दिया जीवन, मिला पद्मश्री सम्मान