लखनऊ के कुछ शायरों के यादगार अशआर

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दुनिया का वरक़ दीदा-ए-अरबाब-ए-नज़र में
इक ताश का पत्ता है कफ़-ए-शोबदागर में ---सफ़ी

अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था इश्क़
भूलता ही नहीं आलम तेरी अँगड़ाई का --------- अज़ीज़

गई थी कहके के लाती हूँ ज़ुल्फ़-ए-यार की बू
फिरी तो बाद-ए-सबा का दिमाग़ भी न मिला -----जलाल

एक ख़ामोशी हमारे जी को देती है मलाल
वरना सब बातें पसन्द आईं तेरी तस्वीर की----रशीद

किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
झूम कर आई घटा, टूट के बरसा पानी -----आरज़ू

आपके पाँव के नीचे दिल है
इक ज़री आपको ज़ेहमत होगी----------सिराज

खनक जाते हैं पैमाने तो पेहरों कान बजते हैं
अरे तोबा, बड़ी तोबा शिकन आवाज़ होती है -----सालिक

ज़माना बड़े ग़ौर से सुन रहा था
हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते ---------साक़िब

बाग़बाँ ने आग दी जब आशयाने को मेरे
जिनपे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे----साक़िब

मुट्‍ठियों में ख़ाक लेकर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
ज़िन्दगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे-----साक़िब

आधी से ज़्यादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ
अब भी अगर आ जाओ तो ये रात बड़ी है -------साक़िब

इक मेरा आशयाँ है के जल कर है बेनिशाँ
इक तूर है के जबसे जला नाम हो गया-------साक़िब

दिल के क़िस्से कहाँ नहीं होते
हाँ, वो सब से बयाँ नहीं होते--------साक़िब
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