कौन है लाफिंग- बुद्घा

Webdunia
- डॉ. नरेश पुरोहि त
Devendra SharmaND
मानव समाज में हताशा, निराशा, असमानता, अभाव आदि का मंजर बहुत पुराना है। इन विपदाओं से निजात पाने हेतु मानव अक्सर ऐसे काल्पनिक देवताओं या अवतारों का इजाद कर लेते हैं, जो उसे दुखों से मुक्ति न भी दिला सकें तो कम से कम जिंदगी के प्रति मोह तो बरकरार रख ही सकें। सभी समाजों में ऐसे देवताओं की सृष्टि मनुष्य ने ही की है। ऐसा ही एक चमत्कारी चीनी देवता हैं 'हँसोड़ बुद्ध', जिसे अँगरेजी में 'लाफिंग बुद्धा', चीनी में 'पु ताइ' एवं जापान में 'ह तेई' के नाम से जाना जाता है।

आर्थिक सुधार के इस युग में चमत्कारी समृद्धि प्राप्त करने हेतु समाज में इस देवता की शान इतनी बढ़ गई है कि होटलों, दुकानों, जुआघरों, कॉर्पोरेट कार्यालयों, घरों एवं कमाई की छोटी-बड़ी जगहों में इसको स्थापित कर देने का रिवाज चल पड़ा है। किसी ने ठीक ही कहा कि 'हँसोड़ बुद्ध' जगह-जगह समृद्धि की तोंद पर हाथ फेरते दिखाई पड़ रहे हैं। ये अपने कपड़े की पोटली से समृद्धि बाँटने वाले, दुखों को चुटकी में हर लेने वाले एवं तृप्ति प्रदान करने वाले संकटमोचक के रूप में प्रसिद्ध हैं।

ऐसा कहा जाता है कि ' पु ताइ' नाम का यह भिक्षु चीनी राजवंश त्यांग (502-507) काल में मौजूद था। वह घुमंतू तबीयत एवं मस्त-मलंग किस्म का था और जहाँ जाता, वहीं अपनी तोंद और थुलथुल बदन के प्रताप से समृद्धि एवं खुशियाँ बाँट आता था। बच्चे विशेष तौर पर उसकी पसंद थे और वह भी बच्चों की पसंद था।
  मानव समाज में हताशा, निराशा, असमानता, अभाव आदि का मंजर बहुत पुराना है। इन विपदाओं से निजात पाने हेतु मानव अक्सर ऐसे काल्पनिक देवताओं या अवतारों का इजाद कर लेते हैं, जो उसे दुखों से मुक्ति न भी दिला सकें।      


इस हँसोड़ बुद्ध की पहचान है : सफाचट कपाल, गुब्बारे की तरह बाहर निकली हुई तोंद, चेहरे पर हरदम हँसी एवं गले पर कपड़े की पोटली, जिसमें धान की पौध एवं सोने की गिन्नियों से लेकर बच्चों हेतु मिठाई तक तरह-तरह का माल भरा रहता था। इनका मन जिस पर आ गया, उसे वे उपहारों से मालामाल कर देते थे।

जो माल पाने से वंचित रह जाते थे, वे उनके दर्शन भर से तृप्त हो जाते थे एवं 'जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान' मानकर अपना इहलौकिक गम गलत कर लेते थे। समृद्धि के चमत्कार की उनकी हैसियत इतनी जबर्दस्त है कि वे चीनी वास्तुशास्त्र का अभिन्न अंग बन बैठे हैं।

चीन का 'छान' एवं जापानी का 'जेन' शब्द संस्कृत के 'ध्यान' का अपभ्रंश माना जाता है। वास्तव में चीनी समाज में इस 'ध्यान' संप्रदाय के नामी महाभिक्षु 'बोधिधर्म' का अत्यंत सम्मानजनक स्थान रहा है। माना जाता है कि चीन की 'कुंग फू' युद्धकला के जनक भी वही हैं एवं 'शाओलिन शारि' मंदिर उन्हीं के प्रताप की स्मृति है।

जापान में 'हँसोड़ बुद्ध' समृद्धि एवं खुशहाली के पाँच स्थानीय देवताओं में से एक माने जाते हैं। हालाँकि मूलतः वे ताओवादी संत थे, परंतु एक हजार साल पहले बौद्ध बन चुके थे। तब बौद्ध धर्म में महायान शाखा का जोर होचला था एवं इस धर्म में अवतारों और 'अर्हतों' की भी परिकल्पना की जाने लगी थी। यही सारी बातें 'पु ताइ' से आ जुड़ीं। 'हँसोड़ बुद्ध' एक जनदेवता की हैसियत रखते थे लेकिन आम मनुष्य की कल्पना में उनका ऐसा जादू चला कि उनकी हैसियत के बारे में कई प्रवाद फैलाए जाने लगे।

जैसे वे गौतम बुद्ध से आमने-सामने मिले थे एवं उन्हें मैत्रेय यानी भाती बुद्ध केनाम से नवाजा गया था। मैत्रेय बुद्ध चीनी भाषा में मी लो फो कहलाते हैं। 'हँसोड़ बुद्ध' आज चीन एवं जापान में ही नहीं, बल्कि अन्य एशियाई देशों के अलावा पश्चिमी देशों में भी घर-घर में छा चुके हैं। इस परिकल्पना में कहीं न कहीं बिना कुछ किए-धरे समृद्धि पा लेने का चमत्कारी संतोष निहित है।
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