डाकिया डाकलाया, चिट्ठी आई है, जैसे फिल्मी गानों को सुनकर आज भी हमारे मन में उस बीते दौर की यादें ताजा हो जाती हैं। जब हाथ से लिखी चिट्ठी के लिए लोग पोस्टमैन का बेकरारी से इंतजार करते थे। लेकिन आज के इस हाइटेकदौर में डाकविभाग की जगह निजी कोरियर कंपनियों ने ले ली है। वहीं चिट्ठियों की जगह मोबाइल से भेजे जाने वाले एसएमएस व ईमेल प्रचलन में आने से लोगों को संदेश भेजना केवल एकहल्की सी क्लिकका काम हो गया है। सारी दुनिया आज छोटे से मोहल्ले में बदल गई है। संसार के किसी भी देश में कुछ सेकंड में संदेश भेजा जा सकता है। इससे जाहिर तौर पर डाक विभाग को बेहद नुकसान हुआ है। अब से ठीक 174 वर्ष पहले वर्ष 1837 में स्थापित भारतीय डाकतार विभाग के हाल बहुत बुरे हैं।
बचत बैंककेसहारे पोस्ट आफिस
गाडरवारा तहसील क्षेत्र में पोस्ट आफिस की अनेकग्रामीण शाखाओं के साथ नगर में इसकी दो शाखाएं संचालित हो रही हैं। लेकिन शहर के दोनों पोस्ट आफिसों में डाक सामग्री से अधिक बचत बैंक के काम होते हैं। जवाहरगंज पोस्ट आफिस के प्रभारी श्री राय ने बताया कि डाक सामग्री का अधिक विक्रय केवल रक्षाबंधन एवं सरकारी पोस्टें निकलने पर किया जाता है। बाकी दिनों में ज्यादातर काम बचत बैंक के लेनदेन का ही होता है।
पोस्टमैन बांट रहे सरकारी डाक
आजकल पोस्टमैन निजी पत्रों से ज्यादा सरकारी पत्र डिलीवर करते नजर आ रहे हैं। इनमें स्टेट बैंक के एटीएम, पैनकार्ड, टेलीफोन बिल, सरकारी आदेश जैसे पत्र ही अधिक होते हैं। वहीं प्रकाशन संस्थाओं द्वारा भेजे पत्र पत्रिकाओं के अलावा पार्सल से पोस्टमैनों को काम मिला हुआ है। केवल शहरी ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी हर जेब में मोबाइल पहुंचने से लोग पत्र लेखन कला को भी भूलते जा रहे हैं।
विभागीय लेट लतीफी का परिणाम
शहर के अनेक प्रबुद्घ नागरिकों के मतानुसार पोस्ट आफिस की दुर्दशा के लिए विभाग के स्वर्णकाल के दिनों में की गई मनमानी एवं पत्रों,पार्सल, मनीआर्डर की डिलेवरी में लेट लतीफी प्रमुख वजह है। गाडरवारा से भी आसपास के गांवों तक उन दिनों कई पत्रों ने महीनों में यात्रा पूरी की थी। इससे कोरियर कंपनियों ने अपने पैर जमा लिए और आज पोस्ट आफिस की बजाय कोरियर कंपनियों को ही भरोसेमंद माना जाता है।