ज्योतिष कन्या 'खना' का यह त्याग अचरज में डाल देगा, पढ़ें कथा

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गणित में लीलावती का जिस सम्मान के साथ नाम लिया जाता है उसी तरह ज्यो‍‍तिष में सखी खना का नाम बहुत प्रसिद्ध है। खना लंका द्वीप के एक ज्योतिषी की कन्या थीं। यह 7वीं-8वीं सदी की बात है। उज्जयिनी में महाराज विक्रमादित्य का राज्य था। 
 
उनके दरबार में बड़े-बड़े कलाकार, कवि, पंडित, ज्योतिषी आदि विद्यमान थे। वराह ज्योतिषियों के अगुआ थे। उनकी गणना नवरत्नों में होती थी। इतिहासज्ञ वराहमिहिर के नाम से परिचित हैं। मिहिर वराह का लड़का था। मिहिर का जन्म होने पर वराह ने गणना कर देखा कि मिहिर की आयु केवल 10 साल की थी, परंतु यह उसकी भूल थी। 
 
उसने गणना करते समय एक शून्य छोड़ दिया था, उसकी आयु 100 साल की थी। वराह ने उसे एक हांडी में बंद कर शिप्रा नदी में फेंक दिया। हांडी व्यापारियों ने हाथ लगी; उन्होंने उसे पाल-पोसकर बड़ा किया और काम में लगा दिया। मिहिर होनहार तो था ही, ज्योतिष विद्या उसकी पैतृक संपत्ति थी; वह घूमता-फिरता लंका में एक ज्योतिषी के घर पहुंचा। उसने ज्योतिष का अध्ययन किया। ज्योतिषी की कन्या से उसका विवाह हो गया, जो ज्योतिष में पारंगता थी। कालांतर में उसने भारत यात्रा की। उज्जयिनी में भी आकर उसने वराह तक को परास्त किया। किसी तरह वराह को पता चल गया कि यह उसका ही पुत्र है।
 
अब ज्योतिष के कड़े से कड़े से कड़े प्रश्न हल हो जाया करते थे। कभी-कभी घर के भीतर बैठी खना ससुर को बड़ी से बड़ी भूल का ज्ञान करा देती थी। नगर वाले नहीं जानते थे कि मिहिर की पत्नी इतनी विदुषी है। वराह उनकी विद्वता पर मन ही मन कुढ़ता था। उसे यह बात कभी नहीं अच्छी लगती थी कि समय-समय पर मेरी गणना में भूल निकाला करे। खना को ऐसी-ऐसी गणनाएं आती थीं जिनका वराह या मिहिर को थोड़ी मात्रा में भी ज्ञान नहीं था।
 
एक दिन राजा ने ता‍रागणों के संबंध में वराह से कठिन प्रश्न किया। उसने मौका मांगा। संध्या समय घर लौटकर वह प्रश्न हल करने लगा, परंतु किसी प्रकार से मीमांसा न हुई। रात में भोजन करते समय बात की बात में खना ने उसे समझा दिया। वराह यह सोचकर प्रसन्न हुआ कि पुत्रवधू की विद्या से राजसभा में मेरा मान बना रहेगा। दूसरे दिन राजा ने हल की विधि पूछी। वराह को कहना ही पड़ा कि प्रश्न का हल खना ने किया है। राजा तथा सभा-सदस्य चकित हो उठे। राजा ने कहा- 'उसे आदर के साथ सभा में लाइए, हम और प्रश्न करेंगे।' वराह को यह बात अच्छी न लगी। उसने घर आकर पुत्र को खना की जीभ काट लेने की आज्ञा दी। मिहिर पिता के आज्ञापालन और सती-साध्वी विदुषी खना के प्रेम से घिर गया। खना ने मिहिर को समझाया कि स्त्री के मोह या प्रेम से अधिक महत्व पिता की आज्ञा का पालन करने में है। उसने कहा कि 'मेरी मृत्यु किसी दुर्घटना से होगी इसलिए आप निर्भय होकर जीभ काट लें।' 
 
मिहिर ने पतिव्रता की बात मान ली। उसने उसकी जीभ काट ली। इस तरह साध्वी खना ने पति को स्वधर्मपरायणता की सच्ची सीख दी और ससुर को अपनी कुलवधू को राजदरबार में उपस्थित करने से बचा लिया। 
किसान और देहाती जन खना के बताए सिद्धांतों और गणनाओं से पानी बरसने, सूखा पड़ने आदि का भविष्य बतलाते हैं। 
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