चक्रवात, भूकंप, बाढ़, वर्षा आदि आपदाओं का जीव-जंतुओं को पूर्वाभास हो जाता है। चक्रवात, भूकंप आने से पूर्व जीव-जंतु भयवश इधर-उधर घबराते हुए मंडराते हैं। विचित्र आवाजें निकालते हैं, मालिक को उस स्थान को छोड़ने को विवश कराते हैं।
इसका एक उदाहरण 26 जनवरी 2001 को भुज (गुजरात) में मिला। जब भूकंप आने से पहले घर में बंधे कुत्ते ने घबराते हुए तेजी से भौंकना, उछलना प्रारंभ कर दिया। लगातार कुत्ते के भौंकने और उछलने की क्रिया जारी रहने पर जब मालिक उसे लेकर घर के बाहर निकला ही था कि कुछ ही पल में उसका मकान भूकंप के झटके में गिर गया।
बिल्ली को हम आवाज और व्यवहार में विविधता प्रकट करने के कारण अशुभ मानते हैं। विचित्र तरीकों से रोना और यात्रा अथवा विशेष अवसर पर जाते समय रास्ता काटने को संकट का प्रतीक मानते हैं।
प्रात:कालीन समय में बिल्ली के विचित्र तरीके से रह-रहकर रोने या झगड़ते दिखाई देने पर संबंधित घर में गर्भिणी स्त्री के गर्भपात या गर्भस्राव की शंका होती है।
समुद्री नाविक यात्रा के समय बिल्लियों को अपने साथ ले जाते हैं। सन् 1912 में जब टाइटेनिक नाम जहाज अपनी यात्रा पर चल रहा था, तभी जहाज में मौजूद बिल्लियों ने कूदना आरंभ कर दिया। कुछ ही समय में सारी की सारी बिल्लियां नीचे कूद गईं। जहाज में बैठे लोगों का इस ओर ध्यान नहीं गया। कुछ ही समय उपरांत जहाज एक बड़े हिमखंड से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
इसी प्रकार सन् 1955 में 'जोतिया' नामक जहाज अपनी यात्रा पर निकला। जहाज निकलने के साथ ही जहाज में मौजूद सभी बिल्लियां रोने व चिल्लाने लगीं। यह जहाज भी यात्रा के मध्य में नष्ट हो गया।
अनेक बार रात्रि को कुत्ते ऊपर मुंह करके रोते हैं। उनके रोने की आवाज का क्रम निरंतर जारी रहता है। सुबह पास में किसी घर से मौत का समाचार मिलता है।
कौवों के आचरणों में भी अनेक शुभ-अशुभ संकेत होते हैं। कौआ यदि किसी मनुष्य के मस्तक अथवा कंधे पर बैठ जाता है तो संबंधित मनुष्य को धनहानि होती है या उसकी मृत्यु हो जाती है।
पक्षियों के क्रियाकलापों और उनके साथ घटी घटनाएं वर्षा, अल्पवर्षा और अतिवर्षा और सूखे आदि का संकेत हैं। रविवार के दिन यदि कौआ कुएं में गिरकर मर जाता है तो माना जाता है कि इस वर्ष वर्षा बहुत कम, बाढ़ अथवा तीव्र गर्मी रहेगी और वस्तुओं के भाव ऊंचे रहेंगे।
वर्षा ऋतु में कौओं के झुंड का बिना आवाज निकाले अपने घोसले में लौटना तेज वर्षा होने का संकेत देता है, तो इसके विपरीत दिन की घनघोर घटाओं और चमकती बिजली के बीच यदि कबूतरों के झुंड आकाश में ऊंची उड़ान भरने के स्थान पर चुपचाप वृक्षों पर बैठे रहें तो उन घटाओं और बिजली चमकने का कोई अर्थ नहीं होता अर्थात वे घटनाएं बिना पानी बरसाते ही गुजर जाती हैं।
गिरगिट को वर्षा का अति संवेदनशील वर्षामापक यंत्र माना जाता है जिसके शरीर के वर्ण (रंग) का परिवर्तन वर्षा, अल्पवर्षा तथा पूर्ण वर्षा का संकेत देता है। वर्षा के साथ इसका शरीर गहरे लाल (सिंदूरी), काले एवं पीले रंग का हो जाता है। शनै:-शनै: शरीर हल्का होकर हरा होना वर्षा समाप्ति का संकेत दे देता है।
इस प्रकार जीव-जंतुओं के आचरण एवं व्यवहार और उससे संबंधित संवेदनशीलता की जानकारी कम्प्यूटर और उपग्रह के युग में भी चुनौती वाली आपदाओं से अपने को सुरक्षित रखने में सफल हो सकते हैं ।