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कुंडली में कब बनते हैं हंस योग, क्या मिलता है इसका शुभ फल...

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हंसे सद्भिरभ्रष्टुतः क्षितिपतिः शंखब्जमत्स्यांकुशै 
श्र्चिन्हैः पाद्करांकित शुभवपुर्मृष्टान्नमुग्धार्मकः||- फल दीपिका
 
हंस योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है। इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल बृहस्पति की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में हंस योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होते हैं।
 
पंचमहापुरुष योग में से एक हंस योग होता है। पंच मतलब पांच, महा मतलब महान और पुरुष मतलब सक्षम व्यक्ति। कुंडली में पंच महापुरुष मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि होते हैं। इन पांच ग्रहों में से कोई भी मूल त्रिकोण या केंद्र में बैठे हैं तो श्रेष्ठ हैं। केंद्र को विष्णु का स्थान कहा गया है। महापुरुष योग तब सार्थक होते हैं जबकि ग्रह केंद्र में हों। 
 
विष्णु भगवान के पांच गुण होते हैं। भगवान राम चंद्र और श्रीकृष्ण की कुंडली के केंद्र में यही पंच महापुरुष विराजमान थे। उपरोक्त पांच ग्रहों से संबंधित पांच महायोग के नाम इस तरह हैं:- 1.मंगल का रूचक योग, 2.बुध का भद्र योग, 3.गुरु का हंस योग, 4.शुक्र का माल्वय योग और 5.शनि का शश योग होता है।
 
हंस योग क्या है?
यह योग गुरु अर्थात बृहस्पति से संबंधित है। कर्क में 5 डिग्री तक ऊंचा, मुल त्रिकोण धनु राशि 10 डिग्री तक और स्वयं का घर धनु और मीन होता है। पहले भाव में कर्क, धनु और मीन, 7वें भाव में मकर, मिथुन और कन्या, 10वें भाव में तुला, मीन और मिथुन एवं चौथे भाव में मेष, कन्या और धनु में होना चाहिए तो हंस योग बनेगा। जब जब बृहस्पति ऊंचा या मूल त्रिकोना में, खुद के घर में या केंद्र में कहीं स्थित है तो भी विशेष परिस्थिति में यह योग बनेगा।
 
बृहस्पति यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में कर्क, धनु अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में हंस योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को सुख, समृद्धि, संपत्ति, आध्यात्मिक विकास तथा कोई आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान कर सकता है।
 
हंस योग की संभावना कितनी है?
लगभग हर 12वीं कुंडली में हंस योग का निर्माण होता है। कुंडली में 12 घर तथा 12 राशियां होती हैं तथा इनमें से किसी भी एक घर में गुरु के स्थित होने की संभावना 12 में से 1 रहेगी तथा इसी प्रकार 12 राशियों में से भी किसी एक राशि में गुरु के स्थित होने की संभावना 12 में से एक ही रहेगी।
 
इस प्रकार 12 राशियों तथा बारह घरों के संयोग से किसी कुंडली में गुरु के किसी एक विशेष राशि में ही किसी एक विशेष घर में स्थित होने का संयोग 144 में से एक कुंडलियों में बनता है जैसे कि लगभग प्रत्येक 144वीं कुंडली में गुरु पहले घर में मीन राशि में स्थित होते हैं। 
 
हंस योग के निर्माण पर ध्यान दें तो यह देख सकते हैं कि कुंडली के पहले घर में गुरु तीन राशियों कर्क, धनु तथा मीन में स्थित होने पर हंस योग बनाते हैं। इसी प्रकार गुरु के किसी कुंडली के चौथे, सातवें अथवा दसवें घर में भी हंस योग का निर्माण करने की संभावना 144 में से 3 ही रहेगी तथा इन सभी संभावनाओं का योग 12 आता है जो कुल संभावनाओं अर्थात 144 का 12वां भाग है जिसका अर्थ यह हुआ कि हंस योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग हर 12वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है।
 
हंस योग का जातक कैसा होता है?
हंस योग का जातक सुंदर व्यक्तित्व का धनी होगा और उसका रंग साफ एवं चेहरे पर तेज होगा। उसका माथा चौड़ा और लंबी नाक होगी। छाती भी चौड़ी और अच्छी होगी। आंखें चमकदार होगी। त्वचा चमकदार स्वर्ण की तरह होगी। दूसरों के लिए अच्छी बातें करने और बोलने वाला व्यक्ति होगा एवं उसके मित्रों संख्या अधिक होगी। वह हमेशा सकारात्मक भाव और विचारों से भरा होगा।
 
हंस योग का जातक क्या करता है?
हंस योग के कुछ जातक किसी धार्मिक अथवा आध्यात्मिक संस्था में उच्च पद पर आसीन होते हैं, जबकि कुछ अन्य जातक व्यवसाय, उत्तराधिकार, वसीयत, सराहकार अथवा किसी अन्य माध्यम से बहुत धन संपत्ति प्राप्त कर सकते हैं। वह ज्योतिष, पंडित या दार्शनिक भी हो सकता है। उच्चशिक्षित न भी हो तो भी वह ज्ञानी होता है।
 
सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य 
हंस प्रभाव के जातके सामान्यतया सुख तथा ऐश्वर्य से भरपूर जीवन जीते हैं तथा साथ ही साथ ऐसे जातक समाज की भलाई तथा जन कल्याण के लिए भी निरंतर कार्यरत रहते हैं तथा इन जातको में भी प्रबल धार्मिक अथवा आध्यात्मिक अथवा दोनों ही रुचियां देखीं जातीं हैं। अपने उत्तम गुणों तथा विशेष चरित्र के चलते हंस योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक समाज में सम्मान तथा प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं।

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