क्या सचमुच ही नया वर्ष, नया वर्ष ही होता है या कि यह एक भ्रम है?

अनिरुद्ध जोशी
हर देश का अपना एक नया वर्ष होता है। भारत में तो कुछ ऐसे प्रांत जिनका एक नया वर्ष प्रचलित नए वर्ष से भिन्न है। नया वर्ष अर्थात नया कैलेंडर अर्थात विक्रम संवत, अंग्रेजी ईस्वी संवत, हिजरी संवत, शक संवत, वीर निर्वाण संवत्, पारसी संवत, बौद्ध संवत, सिख संवत, यहूदी संवत् आदि। इस तरह दुनिया में लगभग 100 से ज्यादा कैलेंडर प्रचलित हैं। मतलब 100 से ज्यादा नए वर्ष हैं। अब आप ही सोचीये कि क्या यह सभी विज्ञान सम्मत हैं? ऐसे में हम नया वर्ष कौनसा मानें? वर्तमान में दुनियाभर में अंग्रेजी ईस्वी संवत ज्यादा प्रचलित है तो लोग इसी के अनुसार वर्ष की शुरुआत 1 जनवरी से मानते हैं परंतु क्या यह विज्ञान सम्मत हैं? ऐसे में यह अनुमान लगाना की अगला वर्ष कैसा रहेगा या भविष्यवाणी करना कितना उचित है?
 

 
1. वर्ष की शुरुआत के माह : दुनियाभर के समाज, धर्म और देशों में अलग-अलग समय में नववर्ष मनाया जाता है। दुनिया में जितने कैलेंडर इस समय चलन में हैं, इनमें से ज्यादातर के नए साल की शुरुआत फरवरी से अप्रैल के बीच होती है। भारत के अधिकतर कैलेंडर में नववर्ष मार्च से अप्रैल के बीच आता है और दूसरे दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है। रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का प्रथम दिन घोषित किया गया।

 
2. समय चक्र : भारत में प्रचलित विक्रम संवत के अनुसार सूर्योदय से दिन शुरू होता है। सूर्यास्त के बाद उस दिन की रात प्रारंभ होती है। उस रात का अंतिम प्रहर बीत जाने पर जब नया सूर्योदय होता है तब दिन और रात का एक चक्र पूरा हो जाता है। अर्थात सूर्योदय से अगले दिन के सूर्योदय तक एक दिन पूर्ण माना जाता है जबकि अंग्रेजी या ग्रेगोरियन कैलेंडर अनुसार रात की 12 बजे से नया दिन प्रारंभ होता है जोकि किसी भी लिहाज से विज्ञान सम्मत नहीं माना जाता। इस सत्य को स्वीकारना होगा की रात में दिन नहीं बदलता और जनवरी में नया वर्ष प्रारंभ नहीं होता। आपनी धारणा है यह कि यह नया वर्ष है तो निश्तित ही आप मानते रहिये और उस अनुसार ही शुभाशुभ मानिये, परंतु सच को जानना भी जरूरी है।

 
3. विज्ञान सम्मत कौनसा कैलेंडर है : यदि कोई कैलेंडर आपकी मान्यता, विश्वास, धार्मिक घटना, संदेशवाहक के जन्म, जयंती आदि पर आधारित है तो वह कैलेंडर भी मात्र एक कैलेंडर ही होता है उसका संबंध विज्ञान से नहीं इतिहास से होता है। जबकि विज्ञान के अनुसार जब धरती अपना एक चक्र पूर्ण कर लेती है तब से नया वर्ष प्रारंभ होता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि मार्च में बदलने वाले कैलेंडर को ही प्रकृति और विज्ञान सम्मत माना जाता है जिसके कई कारण है। मार्च में प्रकृति और धरती का एक चक्र पूरा होता है। दूसरा यह कि जनवरी में प्रकृति का चक्र पूरा नहीं होता। धरती के अपनी धूरी पर घुमने और धरती के सूर्य का एक चक्कर लगाने लेने के बाद जब दूसरा चक्र प्रारंभ होता है असल में वही नववर्ष होता है। नववर्ष में नए सिरे से प्रकृति में जीवन की शुरुआत होती है। वसंत की बहार आती है। प्राचीन जमाने के जितने भी कैलेंडर हैं वे सभी मार्च से ही प्रारंभ होते थे परंतु राजाओं ने अपने तरीके से कैलेंडर को विकसित किया।
 
 
पृथ्वी की दो गतियां हैं: घूर्णन और परिक्रमण। पृथ्‍वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूरब की ओर घूमती रहती है जिसे पृथ्वी की घूर्णन अर्थात दैनिक गति कहते हैं। एक घूर्णन पूरा करने में पृथ्वी 23 घंटे, 56 मिनट और 4.09 सेकेंड का समय लेती है। इस घूर्णन या दैनिक गति की वजह से ही दिन और रात होते हैं। 
 
इसी प्रकार धरती अपने कक्ष पर घूमते हुए ही साथ-साथ सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है जिसे परिक्रमण अर्थात वार्षिक गति कहते हैं। पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा 365 दिन 6 घंटे 48 मिनट और 45.51 सेकेंड में पूरा करती है। इस परिक्रमा या वार्षिक गति से ही मौसम में हमें बदललाव देखने को मिलते हैं। धरती की अपनी धुरी उसकी कक्षा से 66.5 डिग्री तक झुकी हुई है। पृथ्वी की झुकी हुई धुरी और परिक्रमा की गति की वजह से बसंत, गर्मी, ठंड और बरसात की ऋतुएं आती हैं। वसंत को पहली ऋतु माना जाता है। 
 
किसी भी धर्म का कोई दिन बड़ा नहीं होता जबकि 21 जून को ही दिन बड़ा होता है। दरअसल, इसी दिन सूर्य, पृथ्वी के नॉर्थ पोल पर होता और जिसके कारण सूर्य की रोशनी भारत के बीचोबीच गुजरने वाली 'कर्क' रेखा पर सीधी पड़ती है और इसी वजह से सूर्य की किरणें दूसरे दिन के मुकाबले ज्यादा समय तक धरती पर रहती है। इसी कारण से इस दिन को साल का सबसे बड़ा दिन और रात छोटी होती है। यह खगोलिय घटना भारत में हर साल 21 जून को होती है
 
कहते हैं कि 21 मार्च को धरती अपना एक चक्र पूर्ण कर लेती है। 21 मार्च और 23 सितंबर को दिन और रात बराबर होते हैं और 21 से 23 दिसम्बर को दिन छोटा और रात बड़ी होना प्रारंभ हो जाती है। इसीलिए इस दिन को 'विंटर सॉल्स्टिस' के रूप में मनाते हैं। 20 से 23 जून के बीच 'समर सॉल्स्टिस' यानि ग्रीष्म संक्रांति के रूप में मनाते हैं। भारत में समर सॉल्स्टिस' की शुरुआत 21 जून से होती है लेकिन नॉर्थ पोल के दूसरे देशों में यह 21, 22, 23 जून को भी हो सकते हैं। 21 जून से पुथ्वी के नॉर्थ पोल में एक तरफ गर्मी की शुरुआत होती है तो वही साउथ पोल में ठीक इसका उल्टा यहां रात बड़ी हो जाती है और इसी के साथ यहां रह रहे लोगों के लिए ठंड की शुरुआत हो जाती है। साउथ पोल में रह रहे लोगों के लिए रात बड़ी और दिन छोटे होने लगते हैं।


अंग्रेजी कैलेंडर : अंग्रेजी कैलेंडर की शुरुआत रोम के प्राचीन कैलेंडर से हुई। प्राचीन रोमन कैलेंडर में प्रारंभ में 10 माह ही होते थे और वर्ष का शुभारंभ 1 मार्च से होता था। बहुत समय बाद 713 ईस्वी पूर्व के करीब इसमें जनवरी तथा फरवरी माह जोड़े गए। सर्वप्रथम 153 ईस्वी पूर्व में 1 जनवरी को वर्ष का शुभारंभ माना गया एवं 45 ईस्वी पूर्व में जब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर द्वारा जूलियन कैलेंडर का शुभारंभ हुआ, तो यह सिलसिला बरकरार रखा गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला साल यानी ईसा पूर्व 46 ई. को 445 दिनों का करना पड़ा था। 1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ईस्वी के ग्रेगोरियन कैलेंडर के आरंभ के बाद हुआ। दुनियाभर में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था। चूंकि, ब्रिटिश साम्राज्य ने लगभग हर जगह राज किया, इसलिए दुनिया में इस कैलेंडर का प्रचलन हो चला।

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