pitru shradha paksha 2025: भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तक अर्थात पितरों के लिए 16 दिनों का श्राद्ध पक्ष रहता है। यदि इन दिनों में श्राद्ध नहीं कर पा रहे हैं तो वर्ष के अन्य बचे दिनों में से 80 दिन ऐसे आते हैं जबकि श्राद्ध किया जा सकता है। अथार्त एक वर्ष में कुल 96 श्राद्ध के दिन रहते हैं। आओ जानते हैं कि वे कौन कौनसे दिन रहते हैं।
16 श्राद्ध: भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक निरंतर श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
12 अमावस्या तिथियां: प्रत्ये माह अमावस्या रहती है। इसका अर्थ है कि 12 माह में 11 अमावस्या। इन सभी दिनों में श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
12 संक्रातियां: सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को संक्रांति कहते हैं। 12 राशियों में सूर्य गोचर करता है। वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं।
12 वैधृति योग: ज्योतिष शास्त्र में एक अशुभ योग है, जो सूर्य और चंद्रमा के बीच 14वें नक्षत्र अंतर के कारण बनता है। वर्ष में यह 12 बार आता है। वैधृति योग के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए शांति पूजा की जाती है। इस पूजा में भगवान सूर्य, अग्नि और रुद्र की पूजा की जाती है। इस समय में पितरों का श्राद्ध भी कर सकते हैं।
12 व्यतिपात योग: तिपात योग हिन्दू पंचांग का एक महत्वपूर्ण और अशुभ योग है। इस योग में पूजा पाठ और श्राद्ध कर्म के अलावा कोई भी शुभ मांगलिक कार्य नहीं करते हैं।
14 मन्वादि तिथियां अथवा मन्वन्तर: जैसे 12 माह होते हैं उसी प्रकार समय की लंबी कालावधि 14 मन्वन्तर होते हैं। इन मन्वन्तरों की तिथियों के दिन श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
3 अन्य योग: पूर्वेदु, अष्टक एवं अन्वष्टक दिवस के दिन भी श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
4 युग: 4 युगों की तिथियों के दिन श्राद्ध कर सकते हैं। अर्थात यह युग जब प्रारंभ हुए थे उस तिथि को श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
7 कल्पादि तिथियां: कल्प के प्रारंभ होने की तिथियां।
4 ग्रहण तिथियां: वर्ष में चंद्र और सूर्य ग्रहण मिलाकर कुल 4 ग्रहण होते हैं। इस तरह कुल 96 दिन होते हैं।
अन्य दिवस: भीष्म अष्टमी दिवस, वार्षिक श्राद्ध दिवस, गजच्छाया योग, सम्पात दिवस, किसी उपयुक्त ब्राह्मण का आगमन होने पर भी श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।