विवाह से पूर्व वर कन्या की जन्म पत्रिकाओं के मिलान करने को 'मेलन-पद्धति' कहा गया था। कालांतर में यही पद्धति अलग-अलग क्षेत्रों में 'मिलान पत्रक', 'गुण मिलान', 'मिलान' तथा 'मेलापक' के रूप में प्रचलित हुई। ज्योतिष शास्त्र को सूचक शास्त्र भी कहा गया है।
अतः दाम्पत्य जीवन रथ में बंधने से पूर्व दो अपरिचित व्यक्तियों का स्वभाव, गुण, व्यवहार और आचरण आदि के बारे में सूचना प्राप्त कर ली जाए, तो दोनों के दाम्पत्य जीवन के लिए उपकारी होता है। सुखमय दाम्पत्य जीवन के लिए वर कन्या की जन्म पत्रिकाओं को मिलाकर निम्न 5 बिंदुओं पर विचार किया जाता है :
1. दोनों प्राणियों का स्वास्थ्य अच्छा रहे।
2. परिवार के संचालन में भोगोपभोग की उपलब्धता रहे।
3. दोनों को रतिसुख प्राप्त हो।
4. दोनों में से किसी का भी अनिष्ट न हो और
5. पारिवारिक व्यय के लिए अर्थ की व्यवस्था हो।
उक्त बातें जन्म पत्रिका में क्रमशः लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव से देखी जाती हैं। प्रथम से जातक का स्वास्थ्य, चतुर्थ से घर के उपयोग की वस्तुओं (टीवी, फर्नीचर, फ्रीज व बर्तन आदि) का सुख, सप्तम से परस्पर स्त्री-पुरुष का सहवास सुख, अष्टम से दीर्घकालीन जीवन तथाद्वादश या बारहवें भाव से क्रय-विक्रय की शक्ति आदि पर विचार किया जाता है।
प्रत्येक ग्रह अपने भगण काल या परिभ्रमण के समय पत्रिका के बारह में से किसी न किसी भाव में होता है। ऐसे में यदि इन 5 भावों में पाप ग्रह हों या यह 5 भाव पाप ग्रहों से दृष्ट हों व युतिसंबंध रखते हों, तो दाम्पत्य जीवन का 5 भागित बारह अर्थात 40 प्रतिशत से अधिक जीवन प्रभावित होता है। ऐसे में हमारे देवज्ञों ने सुखी, समृद्ध तथा आनंदमय दाम्पत्य जीवन व्यतीत करने के लिए मिलान करने की परंपरा प्रारंभ की होगी।
इससे परिणय सूत्र में बंधने वाले वर-वधू के जन्मकालीन ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यता, मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है।
शास्त्रों में मेलापक के दो भेद बताए गए हैं। एक ग्रह मेलापक तथा दूसरा नक्षत्र मेलापक। इन दोनों के आधार पर वर-वधू की शिक्षा, चरित्र, भाग्य, आयु तथा प्रजनन क्षमता का आकलन किया जाता है। नक्षत्रों के 'अष्टकूट' तथा नौ ग्रह (परंपरागत) इस रहस्य को व्यक्त करते हैं।