नवग्रहों का विशेष संबंध है श्री गणेश से

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गजाननजी को ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह से संबद्ध किया जाता है। इनकी उपासना नवग्रहों की शांतिकारक व व्यक्ति के सांसारिक-आध्यात्मिक दोनों तरह के लाभ की प्रदायक है।


 

अथर्वशीर्ष में इन्हें सूर्य व चंद्रमा के रूप में संबोधित किया है।

सूर्य से अधिक तेजस्वी प्रथम वंदनदेव हैं। इनकी रश्मि चंद्रमा के सदृश्य शीतल होने से एवं इनकी शांतिपूर्ण प्रकृति का गुण शशि द्वारा ग्रहण करके अपनी स्थापना करने से वक्रतुण्ड में चंद्रमा भी समाहित हैं।

पृथ्वी पुत्र मंगल में उत्साह का सृजन एकदंत द्वारा ही आया है। 
 
बुद्धि, विवेक के देवता होने के कारण बुध ग्रह के अधिपति तो ये हैं ही, जगत का मंगल करने, साधक को निर्विघ्नता पूर्ण कार्य स्थिति प्रदान करने, विघ्नराज होने से बृहस्पति भी इनसे तुष्ट होते हैं।

धन, पुत्र, ऐश्वर्य के स्वामी गणेशजी हैं, जबकि इन क्षेत्रों के ग्रह शुक्र हैं। इस तथ्य से आप भी यह जान सकते हैं कि शुक्र में शक्ति के संचालक आदिदेव हैं।

धातुओं व न्याय के देव हमेशा कष्ट व विघ्न से साधक की रक्षा करते हैं, इसलिए शनि ग्रह से इनका सीधा रिश्ता है।

गणेशजी के जन्म में भी दो शरीर का मिलाप (पुरुष व हाथी) हुआ है। इसी प्रकार राहु-केतु की स्थिति में भी यही स्थिति विपरीत अवस्था में है अर्थात गणपति में दो शरीर व राहु-केतु के एक शरीर के दो हिस्से हैं। 

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