वैशाख माह का अंतिम प्रदोष व्रत, जानें महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

WD Feature Desk
शुक्रवार, 9 मई 2025 (10:30 IST)
When is Pradosh Vrat in May 2025 : हिन्दू पंचांग कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह का अंतिम प्रदोष व्रत आज शुक्रवार, 9 मई 2025 को मनाया जा रहा है। इस व्रत में भगवान भोलेनाथ का पूजन किया जाता है। चूंकि वैशाख पूर्णिमा सोमवार, 12 मई 2025 को है, इसलिए यह शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत होगा।

आज के इस व्रत को शुक्र प्रदोष के नाम से जाना जाता है। बता दें कि मई माह 2025 में दूसरा प्रदोष व्रत 24 मई, दिन शनिवार को मनाया जाएगा, शनिवार के दिन पड़ने वाले इस व्रत को शनि प्रदोष के नाम जाना जाएगा। धार्मिक मान्यतानुसार प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त के बाद और रात्रि के प्रारंभ होने से पहले की जाती है।ALSO READ: बदरीनाथ धाम के कपाट खुलते ही भगवान की मूर्ति ने दिए भविष्य की घटनाओं के संकेत, सच जानकर चौंक जाएंगे
 
आइए यहां जानते हैं वैशाख माह के अंतिम प्रदोष व्रत शुक्र प्रदोष के बारे में जानकारी...
 
शुक्र प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त : 
• त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 9 मई 2025 को दोपहर 02:56 मिनट से 
• त्रयोदशी तिथि समाप्त: 10 मई 2025 को शाम 05:29 मिनट तक।
• प्रदोष काल में पूजा का शुभ मुहूर्त: 9 मई 2025 को शाम 07:01 से रात 09:08 मिनट तक।
प्रदोष पूजा की अवधि - 02 घंटे 06 मिनट्स।
 
शुक्र प्रदोष पूजा विधि:
प्रदोष व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने की विधि इस प्रकार है:
1. प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
3. पूजा की तैयारी में प्रदोष काल में पूजा स्थल को साफ करें और भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग स्थापित करें। 
4. भगवान भोलेनाथ यानी शिवलिंग का जल, दूध, दही, शहद और घी से अभिषेक करें।
5. भगवान शिव को चंदन, बेलपत्र, धतूरा, फूल और माला अर्पित करें या श्रृंगार करें।
6. धूप और दीप जलाएं।
7. नैवेद्य के स्वरूप में भगवान शिव को फल और मिठाई का भोग लगाएं।
8. भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें, जैसे 'ॐ नमः शिवाय' या 'महामृत्युंजय मंत्र'।
9. शुक्र प्रदोष व्रत की कथा सुनें।
10. भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें।
11. तथा पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
12. इस दिन व्रत रखकर मात्र फलाहार करें। इस दिन कुछ लोग पूरे दिन निर्जला व्रत भी रखते हैं, आप अपनी सुविधानुसार शाम की पूजा के बाद भोजन ग्रहण कर सकते हैं।
 
कथा : शुक्र प्रदोष व्रत की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक नगर में तीन मित्र थे- राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और सेठ पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे, लेकिन सेठ पुत्र का विवाह के बाद गौना नहीं हुआ था। एक दिन तीनों मित्रों ने स्त्रियों की चर्चा की, जिस पर ब्राह्मण कुमार ने कहा कि नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है। 
 
सेठ पुत्र ने यह सुनकर तुरंत अपनी पत्नी को लाने का निश्चय किया, जबकि उसके माता-पिता ने शुक्र अस्त होने के कारण उसे रोका था। अपनी जिद पर अड़े सेठ पुत्र ने ससुराल जाकर अपनी पत्नी को विदा कराया। रास्ते में उनकी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया, बैल की टांग टूट गई और पत्नी को भी चोट आई। आगे बढ़ने पर डाकुओं ने उन्हें लूट लिया। घर पहुंचने पर सेठ पुत्र को सांप ने डस लिया और वैद्य ने उसके तीन दिन में मरने की भविष्यवाणी की।
 
ब्राह्मण पुत्र को जब यह पता चला तो उसने सेठ से अपने पुत्र को पत्नी सहित वापस ससुराल भेजने को कहा। सेठ ने वैसा ही किया। उधर, ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। एक दिन उसे रास्ते में एक घायल राजकुमार मिला, जिसे वह अपने घर ले आई। गंधर्व कन्या अंशुमति ने राजकुमार को देखा और उससे विवाह कर लिया। 
 
ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सहायता से राजकुमार ने अपने शत्रुओं को पराजित कर अपना राज्य वापस पा लिया और ब्राह्मण पुत्र को मंत्री बनाया। इस प्रकार, प्रदोष व्रत के प्रभाव से सभी के कष्ट दूर हुए। मान्यतानुसार यह व्रत श्रद्धापूर्वक करने से भगवान समस्त मनोकामना पूर्ण करते हैं।
 
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