अधिकमास की विनायक चतुर्थी का क्या है महत्व, कैसे करें व्रत, जानें मुहूर्त

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Sawan Chaturthi Vrat 2023 : वर्ष 2023 में अधिकमास में आने वाली सावन की पहली विनायक चतुर्थी का व्रत 21 जुलाई, दिन शुक्रवार को रखा जाएगा। आइए जानते हैं महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में... 
 
चतुर्थी का महत्व : हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। बता दें कि प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी विनायक चतुर्थी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी के नाम से जानी जाती है। 
 
हिन्दू धर्म-पुराणों के अनुसार अधिकमास या पुरुषोत्तम मास हर तीन साल में एक बार आता है। साथ ही यह श्रावण के महीने में पड़ने के कारण इसका अधिक महत्व बढ़ गया है। बता दें कि श्रावण में शिव-पार्वती जी का पूजन किया जाता है।

मान्यतानुसार इस माह में किए गए धार्मिक कार्यों फल किसी अन्य माह की तुलना में दस गुना अधिक फल मिलता है। इतना ही नहीं अधिकमास की विनायक चतुर्थी पर श्री गणेश का पूजन पूरे मनोभाव से करने से हर संकट और बाधा से मुक्ति मिलती है, संतान प्राप्ति होती है तथा घर में कभी धन की कमी महसूस नहीं होती है। 
 
धार्मिक मान्यता के अनुसार चतुर्थी भगवान श्री गणेश की तिथि मानी गई है। इस दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन दोपहर-मध्याह्न के समय श्री गणेश की पूजा की जाती है। 
भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, विघ्नहर्ता यानी आपके सभी दु:खों को हरने वाले देवता।

इसीलिए भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए विनायक/विनायकी चतुर्थी और संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता हैं। इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-दौलत, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है। और इनकी कृपा से जीवन के असंभव कार्य भी शीघ्र ही संभव हो जाते हैं।
 
21 जुलाई, 2023, शुक्रवार : विनायक चतुर्थी के शुभ मुहूर्त- 
 
श्रावण शुक्ल चतुर्थी तिथि का प्रारंभ- 21 जुलाई 2023, शुक्रवार को 06.58 ए एम से, 
श्रावण शुक्ल चतुर्थी की समाप्ति- 22 जुलाई 2023, शनिवार को 09.26 ए एम पर।
अधिक विनायक चतुर्थी पूजन का सबसे शुभ समय- 11.05 ए एम से 01.50 पी एम
कुल अवधि- 02 घंटे 45 मिनट्स
अभिजित मुहूर्त- 12.00 पी एम से 12.55 पी एम तक।
योग- रवि 
 
कैसे करें व्रत?
 
1. श्री विनायक चतुर्थी के दिन ब्रह्म मूहर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें, लाल रंग के वस्त्र धारण करें। 
2. दोपहर पूजन के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने या चांदी से निर्मित गणेश प्रतिमा स्थापित करें। 
3. संकल्प के बाद षोडशोपचार पूजन कर श्री गणेश की आरती करें। 
4. तत्पश्चात श्री गणेश की मूर्ति पर सिन्दूर चढ़ाएं। 
5. अब गणेश मंत्र- 'ॐ गं गणपतयै नम:' बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। 
6. श्री गणेश को बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। 
7. इनमें से 5 लड्‍डुओं का ब्राह्मण को दान दें तथा 5 लड्‍डू श्री गणेश के चरणों में रखकर बाकी को प्रसाद स्वरूप बांट दें। 
8. पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्त्रोत का पाठ करें। 
9. ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें। अपनी शक्ति हो तो उपवास करें अथवा शाम के समय खुद भोजन ग्रहण करें। 
10. शाम के समय गणेश चतुर्थी कथा, श्रद्धानुसार गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्रनामावली, गणेश चालीसा, गणेश पुराण आदि का स्तवन करें। 
11. संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करके श्री गणेश की आरती करें।
12. 'ॐ गणेशाय नम:' मंत्र की कम से कम 1 माला अवश्य जपें।
 
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