New Year 2023: जानें 1 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है नया साल?

अनिरुद्ध जोशी
बुधवार, 21 दिसंबर 2022 (12:51 IST)
हर वर्ष पूरे विश्‍व में नए साल का जश्न 1 जनवरी को मनाया जाता है। साल 2022 समाप्त होने वाला है 31st के बाद अगला वर्ष 2023 प्रारंभ होगा। 1 जनवरी को इस बार रविवार है। आखिर नया साल 1 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है? क्या है अंग्रेजी कैलेंडर के पीछे का इतिहास? क्या नाम है इस कैलेंडर का? जानिए इस संबंध में रोचक जानकारी।
 
इस वक्त विक्रम संवत 2079 और अंग्रेजी संवत 2022 का दिसंबर माह का अंतिम सप्ताह चल रहा है। बहुत प्राचीन काल से ही मार्च में नए वर्ष के प्रारंभ होने का दुनियाभर में प्रचलन था। इसीलिए मार्च में आज भी दुनियाभर में बहीखाते बदलने, खाताबंदी करने या कंपनियों में मार्च एंडिंग के कार्य निपटाने का प्रचलन जारी है, लेकिन बदलते वक्त ने मार्च को छोड़कर जनवरी को वर्ष का प्रथम माह बना दिया और 1 जनवरी को वर्ष का प्रथम दिन। आखिर क्या रहे इसके पीछे के कारण?
 
एक अप्रैल को छुट्टी होती थी। दो अप्रैल से फिर से नया कामकाज प्रारंभ होता था। लेकिन अंग्रेजों के शासन ने संपूर्ण दुनिया पर एक नया कैलेंडर लाद कर रख दिया। दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है, यहां तक की ईस्वी सन बाला कैलेंडर (जो आजकल प्रचलन में है) वो भी मार्च से प्रारम्भ होता था।
 
रोमन से बना ग्रेगेरियन कैलेंडर | romanized gregorian calendar:
 
प्राचीन रोमन कैलेण्डर में मात्र 10 माह होते थे और वर्ष का शुभारम्भ 1 मार्च से होता था। बहुत समय बाद 713 ईस्वी पूर्व के करीब इसमें जनवरी तथा फरवरी माह जोड़े गए। सर्वप्रथम 153 ईस्वी पूर्व में 1 जनवरी को वर्ष का शुभारम्भ माना गया एवं 45 ईस्वी पूर्व में जब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर द्वारा जूलियन कैलेण्डर का शुभारम्भ हुआ, तो यह सिलसिला बरकरार रखा गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला साल, यानि, ईसा पूर्व 46 ई. को 445 दिनों का करना पड़ा था।
 
1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ईस्वी के ग्रेगेरियन कैलेंडर के आरम्भ के बाद हुआ। दुनिया भर में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था। ईसाईयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडॉक्स चर्च रोमन कैलेंडर को मानता है। इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। यही वजह है कि आर्थोडॉक्स चर्च को मानने वाले देशों रूस, जार्जिया, येरुशलम और सर्बिया में नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है।
 
रोम का सबसे पुराना कैलेंडर वहां के राजा न्यूमा पोंपिलियस के समय का माना जाता है। यह राजा ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में था। आज विश्वभर में जो कैलेंडर प्रयोग में लाया जाता है। उसका आधार रोमन सम्राट जूलियस सीजर का ईसा पूर्व पहली शताब्दी में बनाया कैलेंडर ही है। जूलियस सीजर ने कैलेंडर को सही बनाने में यूनानी ज्योतिषी सोसिजिनीस की सहायता ली थी। इस नए कैलेंडर की शुरुआत जनवरी से मानी गई है। इसे ईसा के जन्म से छियालीस वर्ष पूर्व लागू किया गया था। जूलियस सीजर के कैलेंडर को ईसाई धर्म मानने वाले सभी देशों ने स्वीकार किया। उन्होंने वर्षों की गिनती ईसा के जन्म से की। जन्म के पूर्व के वर्ष बी.सी. (बिफोर क्राइस्ट) कहलाए और (बाद के) ए.डी. (आफ्टर डेथ) जन्म पूर्व के वर्षों की गिनती पीछे को आती है, जन्म के बाद के वर्षों की गिनती आगे को बढ़ती है। सौ वर्षों की एक शताब्दी होती है।
कुछ लोगों अनुसार सबसे पहले रोमन सम्राट रोम्युलस ने जो कैलेंडर बनवाया था वह 10 माह का था। बाद में सम्राट पोम्पीलस ने इस कैलेंडर में जनवरी और फरवरी माह को जोड़ा। इस कैलेंडर में बारहवां महीना फरवरी था। कहते हैं कि जब बाद में जुलियस सीजर सिंहासन पर बैठा तो उसने जनवरी माह को ही वर्ष का पहला माहीना घोषित कर दिया।
 
इस कैलेंडर में पांचवां महीने का नाम 'क्विटिलस' था। इसी महीने में जुलियस सीजर का जन्म हुआ था। अत: 'क्विटिलस' का नाम बदल कर जुला रख दिया गया। यह जुला ही आगे चलकर जुलाई हो गया। जुलियस सीजर के बाद 37 ईस्वी पूर्व आक्टेबियन रोम साम्राय का सम्राट बना। उसके महान कार्यों को देखते हुए उसे 'इंपेरेटर' तथा 'ऑगस्टस' की उपाधि प्रदान की गई। उस काल में भारत में विक्रमादित्य की उपाधी प्रदान की जाती थी।... 
 
आक्टेबियन के समय तक वर्ष के आठवें महीना का नाम 'सैबिस्टालिस' था। सम्राट के आदेश पर इसे बदलकर सम्राट 'ऑगस्टस आक्टेवियन' के नाम पर ऑगस्टस रख दिया गया। यही ऑगस्टस बाद में बिगड़कर अगस्त हो गया। उस काल में सातवें माह में 31 और आठवें माह में 30 दिन होते हैं। चूंकि सातवां माह जुलियस सीजर के नाम पर जुलाई था और उसके माह के दिन ऑगस्टस माह के दिन से ज्यादा थे तो यह बात ऑगस्टस राजा को पसंद नहीं आई। अत: उस समय के फरवरी के 29 दिनों में से एक दिन काटकर अगस्त में जोड़ दिया गया। इससे स्पष्ट है कि अंग्रेजी कैलेंडर का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
 
इस कैलेंडर में कई बार सुधार किए गए पहली बार इसमें सुधार पोप ग्रेगरी तेरहवें के काल में 2 मार्च, 1582 में उनके आदेश पर हुआ। चूंकि यह पोप ग्रेगरी ने सुधार कराया था इसलिए इसका नाम ग्रेगेरियन कैलेंडर रखा गया। फिर सन 1752 में इसे पुन: संशोधित किया गया तब सितंबर 1752 में 2 तारीख के बाद सीधे 14 तारीख का प्रावधान कर संतुलित किया गया। अर्थात सितंबर 1752 में मात्र 19 दिन ही थे। तब से ही इसके सुधरे रूप को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।
 
इस कैलेण्डर को शुरुआत में पुर्तगाल, जर्मनी, स्पेन तथा इटली में अपनाया गया। सन 1700 में स्वीडन और डेनमार्क में लागू किया गया। 1752 में इंग्लैण्ड और संयुक्त राय अमेरिका ने 1873 में जापान और 1911 में इसे चीन ने अपनाया। इसी बीच इंग्लैण्ड के सभी उपनिवेशों (गुलाम देशों) और अमेरिकी देशों में यही कैलेंडर अपनाया गया। भारत में इसका प्रचलन अंग्रेजी शासन के दौरान हुआ। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

ज़रूर पढ़ें

Dev uthani ekadashi 2024: देव उठनी एकादशी पर इस बार जानिए पितृदोष से मुक्ति के 5 अचूक उपाय

Tulsi vivah 2024: तुलसी विवाह पूजा की विधि स्टेप बाय स्टेप में, 25 काम की बातें भी जानिए

शुक्र के धनु राशि में गोचर से 4 राशियों को होगा जबरदस्त फायदा

Tulsi vivah Muhurt: देव उठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त क्या है, जानें विधि और मंत्र

Kartik Purnima 2024: कार्तिक पूर्णिमा पर क्यों करते हैं दीपदान, जानिए इसके 12 फायदे

सभी देखें

नवीनतम

Aaj Ka Rashifal: 08 नवंबर का दैनिक राशिफल, कैसा गुजरेगा आज आपका दिन, पढ़ें 12 राशियां

08 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

08 नवंबर 2024, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

Tulsi vivah 2024: तुलसी विवाह पूजा की विधि स्टेप बाय स्टेप में, 25 काम की बातें भी जानिए

अगला लेख