हर बाधा दूर करते हैं श्रीगणेश

प्रथम पूज्य श्रीगणेश का महत्व

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प्राचीन समय में हल्दी को गणेश जी की मूर्ति के रूप में पूजा जाता था। हल्दी को मंगलकारी, धन व ज्ञान का प्रतीक माना जाता था। जिस देवता की स्तुति इन शब्दों से की जाती हो, ऐसे पूजनीय रिद्धि-सिद्धि के स्वामी विघ्नहर्ता के जप में हर शुभ मांगलिक कार्य व पूजन में सर्वप्रथम पूजे जाने वाले भालचंद्र यानी श्रीगणेश जी वैवाहिक कार्यों में भी सर्वप्रथम न सिर्फ पूजनीय हैं, अपितु वैवाहिक निमंत्रणों में निमंत्रित किए जाने वाले प्रथम अतिथि भी हैं।

समस्त मांगलिक कार्यों में प्रथम पूजनीय होने व हर विघ्न और कष्ट को दूर करने की उनकी महत्ता के कारण ही मंगलमूर्ति भी कहे जाते हैं।

यह माना जाता है कि श्रीगणेश जी समस्त दिशाओं में उपस्थित हैं एवं उनके पूजन के साथ शुरू किया गया कोई भी कार्य निर्विघ्न रूप से पूर्ण होता है। अतः सबसे पहले उनकी स्तुति व पूजन कर कार्य शुरू किए जाते हैं। चाहे वैवाहिक कार्यक्रम हो अथवा गृह प्रवेश सभी में श्रीगणेश जी को याद किया जाता है।

यहां तक कि वैवाहिक व अन्य मांगलिक कार्यों के विभिन्न चित्र सर्वप्रथम अंकित किए जाते हैं अथवा उनकी स्तुति से निमंत्रण-पत्र का आरंभ होता है।

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हमारे समाज में प्राचीन समय से यह मान्यता रही है कि श्रीगणेश जी के पूजन से शुरू किए गए कार्य में कभी कोई बाधा नहीं आती और कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न होता है। श्रीगणेश को समस्त गणों का अधिपति माना जाता है और इसी वजह से वे गणपति के नाम से भी जाने जाते हैं।

गणेश जी के मांगलिक कार्यों में प्रथम पूजन को लेकर यह कथा प्रचलित है कि एक बार समस्त देवी-देवताओं को पृथ्वी का चक्कर लगाने को कहा गया, किंतु श्रीगणेश जी अपने भारी शरीर व छोटे से वाहन मूषक के कारण दुविधा में थे कि वे चक्कर कैसे पूर्ण करें। उन्होंने अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए माता-पिता पार्वती व शिवजी की परिक्रमा कर ली और सभी के पूछने पर कारण बताया कि माता-पिता तो समस्त संसार के तुल्य हैं।

वे ब्रह्मा के सहायक हैं, अतः उनकी पूजा का विशेष महत्व है। प्राचीन समय में हल्दी को गणेश जी को मूर्ति स्वरूप पूजा जाता था। गणेश जी की उपस्थिति ओंमकार में मानी जाती है।

ऐसा माना जाता है कि गणेश जी के शुभागमन के साथ सारी बाधाएं खुद-ब-खुद खत्म हो जाती हैं। श्रीगणेश जी सभी का कल्याण करने वाले माने जाते हैं।

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